एंटीमाइक्रोबियल दवाओं को दशकों से चमत्कारी दवाइयां माना गया है। काफी समय से ये जानलेवा संक्रमणों का इलाज करने में सक्षम रही हैं। इसी धारणा के चलते एंटीबायोटिक्स का ज़रूरत से ज़्यादा और दुरुपयोग हुआ है। साधारण ज़ुकाम से लेकर दस्त तक में, ये आम लोगों की पहली पसंद बन गए हैं, जिससे एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) की समस्या बढ़ गई है।
एएमआर: क्या और कैसे 
एएमआर एक ऐसी स्थिति है जिसमें सूक्ष्मजीव सामान्यत: दी जाने वाली एंटीमाइक्रोबियल दवाओं के प्रतिरोधी हो जाते हैं। सूक्ष्मजीवों के विरुद्ध काम करने वाली एंटीमाइक्रोबियल दवाएं विभिन्न प्रकार की होती हैं: बैक्टीरिया के लिए एंटीबायोटिक्स, फफूंद के लिए एंटीफंगल, वायरस के लिए एंटीवायरल और एक-कोशिकीय प्रोटोज़ोआ जीवों के लिए एंटीप्रोटोज़ोआ दवाएं। 
एएमआर का सबसे सामान्य रूप एंटीबायोटिक प्रतिरोध है, जिसमें बैक्टीरिया एंटीबायोटिक्स के विरुद्ध प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं। मतलब है कि यदि कोई व्यक्ति प्रतिरोधी बैक्टीरिया से संक्रमित हो जाए तो वह एंटीबायोटिक दवा उस संक्रमण को ठीक नहीं कर पाएगी। ऐसा अनुमान है कि हर साल करीब 47 लाख लोग प्रतिरोधी संक्रमणों से मर जाते हैं, जिन्हें अन्यथा इलाज से ठीक किया जा सकता था। 
एंटीबायोटिक दवाओं का अत्यधिक व अंधाधुन्ध उपयोग त्वरित प्रतिरोध के विकास का कारण बना है। इसके चलते दवा कंपनियां नए एंटीबायोटिक्स के विकास में निवेश करने के प्रति भी हतोत्साहित हुई हैं। वर्तमान स्थिति में, जहां एंटीबायोटिक्स की संख्या सीमित है, यह ज़रूरी है कि हम उपलब्ध एंटीबायोटिक्स का सही तरीके से उपयोग करके उन्हें कारगर बनाए रखें।
भारत एंटीबायोटिक्स का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इनके अति उपयोग के दो प्रमुख कारण हैं - भारत में संक्रामक रोगों का अधिक बोझ और एंटीबायोटिक्स तक सामुदायिक पहुंच पर नियंत्रण का अभाव।
भारत में अधिकांश लोग सीमित स्वास्थ्य सेवाओं के कारण त्रस्त हैं। नतीजतन, रोगी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए अनाधिकृत चिकित्सकों पर निर्भर रहते हैं। ऐसे चिकित्सकों के चलते सामान्य शारीरिक समस्याओं के लिए स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक्स, मल्टीविटामिन्स और दर्द निवारक दवाओं का मिश्रण लेना आम बात है। यहां तक कि योग्य चिकित्सक भी अक्सर अनावश्यक और गलत एंटीबायोटिक्स लिखते हैं।
इसके अलावा, साफ पानी, स्वच्छता व सफाई की कमी, और मवेशियों को बढ़ावा देने के लिए एंटीबायोटिक्स का अनियंत्रित उपयोग, हमारे देश में एएमआर की समस्या को और बढ़ाता है।
फार्मासिस्ट और एएमआर
फार्मासिस्ट समुदाय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे लोगों और डॉक्टरों के बीच एक कड़ी हैं। अक्सर, लोग डॉक्टरों के मुकाबले फार्मासिस्ट से अधिक आसानी से संपर्क कर सकते हैं। डॉक्टर से परामर्श लेने के लिए पहले अपॉइंटमेंट लेना पड़ता है, फिर घंटों इंतज़ार करना पड़ता है, यहां तक कि व्यक्ति को काम से छुट्टी भी लेनी पड़ सकती है। इसके विपरीत, लोग किसी स्थानीय मेडिकल स्टोर पर जाकर अपनी समस्या बताकर दवा ले सकते हैं और जल्दी से निकल सकते हैं। जैसा कि एक फार्मासिस्ट ने बताया कि बगैर डॉक्टरी पर्ची के एंटीबायोटिक्स/दवाइयां खरीदना एक सामान्य प्रथा है क्योंकि लोगों के पास निजी डॉक्टर से परामर्श करने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते हैं।
हालांकि, यह ‘सुविधा’ अक्सर जोखिमों के साथ आती है। भारत में कई मामलों में, मेडिकल स्टोर में बैठने वाला व्यक्ति एक पंजीकृत फार्मासिस्ट भी नहीं होता है। चूंकि ऐसे अप्रशिक्षित व्यक्तियों के पास दवाइयों के सुरक्षित और प्रभावी उपयोग के बारे में आवश्यक जानकारी नहीं होती, इसलिए रोगियों की जान को खतरा भी हो सकता है।
भारत में स्वास्थ्य सेवा के लिए फार्मेसियों पर निर्भरता जन स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे की खामियों को भी उजागर करती है। एक फार्मासिस्ट ने बताया कि यदि सभी फार्मासिस्ट बिना डॉक्टरी पर्ची के दवाइयां देना बंद कर दें, तो देश में हंगामा मच जाएगा क्योंकि सरकार के पास हर रोगी के लिए पर्याप्त सुविधाओं का अभाव है। हम जानते ही हैं कि हमारे सिविल अस्पतालों का क्या हाल है; लंबी कतारें और हमेशा ही भीड़। ऐसे में यदि मेडिकल स्टोर (रिटेल फार्मेसी) वाले दवाइयां देना बंद कर दें, तो सब कुछ रुक जाएगा।
एएमआर से जुड़ी गलत धारणाएं 
एक और बड़ी समस्या यह है कि भारत में एंटीबायोटिक्स को सभी संक्रमणों का ‘एक समाधान’ माना जाता है। अधिकांश लोग बैक्टीरियल, वायरल और फफूंद संक्रमणों के बीच अंतर नहीं कर पाते और यह नहीं जानते कि एंटीबायोटिक्स केवल बैक्टीरिया संक्रमणों के लिए प्रभावी होती हैं। 
समझ की इसी कमी के कारण एंटीबायोटिक्स का गलत उपयोग होता है; जैसा कि मेडिकल स्टोर पर हम अक्सर लोगों को एंटीबायोटिक्स मांगते देखते हैं। एक फार्मासिस्ट ने बताया कि जो रोगी खुद से दवा लेने आते हैं, वे सीधे एंटीबायोटिक्स मांगते हैं, और यदि हम दवा नहीं देते तो वे बहस करने लगते हैं। कभी-कभी तो लोग पुरानी पर्ची लेकर दवाइयां खरीदने आते हैं।
लोग अक्सर मानते हैं कि एंटीबायोटिक्स लेने से वे जल्दी ठीक हो जाएंगे, और जल्दी काम पर लौट पाएंगे जिससे वेतन की हानि कम होगी। यह गलतफहमी पढ़े-लिखे और अनपढ़, दोनों तरह के लोगों में समान रूप से होती है। एक अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन में काम करने वाले व्यक्ति ने कहा, “मुझे सर्दी-खांसी हो गई थी... (मैंने एंटीबायोटिक्स लीं) मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था। मैं दिवाली पर बीमार नहीं पड़ सकता था।” इस सोच के चलते लोग डॉक्टरों से एंटीबायोटिक्स मांगते हैं और यदि उनकी मांग पूरी नहीं होती तो वे किसी और डॉक्टर के पास चले जाते हैं। 
एक सर्जन अपने शोध कार्य के दौरान का मामला बताते हैं: “यदि मैं रोगी को समझा पाया तो वह खुश होकर वापस चला जाता है, लेकिन नहीं समझा पाया तो वह किसी और सर्जन के पास जाएगा, और फिर किसी और सर्जन के पास। आखिरकार, वह ऐसे सर्जन के पास जाएगा जो एंटीबायोटिक्स लिख देगा, और तब वह खुश हो जाएगा। इसे हम ‘डॉक्टर शॉपिंग' कहते हैं।”
यह दर्शाता है कि लोगों को एंटीबायोटिक्स के ज़िम्मेदार उपयोग और दुरुपयोग के खतरों के बारे में शिक्षित करना कितना ज़रूरी है।
भारत में एएमआर से संघर्ष
भारत में एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध से निपटने के लिए कई पहल हुई हैं। इनमें शामिल हैं: एंटीबायोटिक उपचार दिशानिर्देश बनाना और लागू करना; एंटीमाइक्रोबियल स्टुवार्डशिप प्रोग्राम (एएमएस, एंटीमाइक्रोबियल के उपयोग को बेहतर बनाने वाला प्रोग्राम) लागू करना; स्वास्थ्य पेशेवरों को एंटीबायोटिक के उचित उपयोग को लेकर शिक्षित-प्रशिक्षित करना; और एएमआर को थामने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय योजनाएं लागू करना।
हालांकि, लगभग 80 प्रतिशत एंटीबायोटिक का उपयोग सामुदायिक स्तर पर होता है, लेकिन इन पहलों में से अधिकांश का ध्यान मुख्य रूप से अस्पतालों पर केंद्रित है। सामुदायिक स्तर पर एंटीबायोटिक उपयोग को बेहतर बनाने के लिए किसी भी हस्तक्षेप से पहले, इन समस्याओं के कारणों को समझना ज़रूरी है। 
भारत में बिना पर्ची एंटीबायोटिक दवाइयां बेचने पर प्रतिबंध लगाने के लिए नियम बनाए गए हैं, जैसे शेड्यूल एच और एच1 दवाएं (केवल पर्ची पर मिलने वाली दवाएं) और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया रेड लाइन जागरूकता अभियान। लेकिन, देश के कई हिस्सों में इन नियमों का क्रियान्वयन पर्याप्त नहीं है।  
मेरी एक विदेशी सहकर्मी कुछ साल पहले भारत आई थीं। वे इस बात से हैरान थीं कि एयरपोर्ट की फार्मेसी पर एंटीबायोटिक बिना पर्ची के आसानी से मिल रही थी। जबकि उनके देश में सामुदायिक फार्मेसियों पर एंटीबायोटिक सख्त नियंत्रण में बेची जाती हैं और एंटीबायोटिक के लिए डॉक्टरी पर्ची के लिए कई दिनों तक इंतज़ार करना पड़ता है।
फार्मासिस्ट का संभावित योगदान 
बतौर फार्मासिस्ट, मुझे लगता है कि एंटीबायोटिक उपयोग को बेहतर बनाने में हम कई तरीके से सक्रिय योगदान दे सकते हैं।  
हमारी सबसे महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों में से एक है एंटीबायोटिक्स की ओवर-दी-काउंटर बिक्री पर रोक। यह सुनिश्चित करना बहुत ज़रूरी है कि एंटीबायोटिक्स केवल पंजीकृत डॉक्टर की वैध पर्ची पर ही दी जाएं। इसके लिए पर्ची की तारीख का सत्यापन और यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि पर्ची उसी व्यक्ति की है जो इसे दिखा रहा है। कई बार रोगी पुरानी पर्ची दिखाकर उन्हीं लक्षणों के लिए दोबारा एंटीबायोटिक खरीदना चाहते हैं, या परिवार के किसी अन्य सदस्य की पर्ची दिखाते हैं। ऐसे दुरुपयोग को रोकने के लिए सतर्कता अहम है।   
रोगियों को एंटीबायोटिक के सही उपयोग के बारे में शिक्षित करना हमारी भूमिका का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है। अक्सर, फार्मासिस्ट केवल बुनियादी निर्देश देने तक ही सीमित रहते हैं, जैसे दवा भोजन से पहले लें या बाद में, खुराक की मात्रा और उपचार की अवधि। यह सब महत्वपूर्ण है, लेकिन रोगियों को एंटीबायोटिक के सही व गलत उपयोग के बारे में बताना भी उतना ही ज़रूरी है।
हमें रोगियों को समझाना चाहिए कि एंटीबायोटिक क्यों दी गई है, उसका नाम क्या है, और इसे कुछ खास खाद्य पदार्थों या दवाओं के साथ लेने से बचना चाहिए या नहीं। रोगियों को यह समझाना बहुत ज़रूरी है कि दवा का कोर्स पूरा करना ज़रूरी है, भले ही उन्हें बीच में ही अच्छा लगने लगे। साथ ही, यह भी बताना चाहिए कि एंटीबायोटिक को कभी भी दूसरों को नहीं देना चाहिए, भले ही उनके लक्षण एक जैसे क्यों न लग रहे हों।  
एंटीबायोटिक के सही और तर्कसंगत उपयोग पर अपडेट रहना भी एक अहम ज़िम्मेदारी है, जिसमें क्लीनिकल फार्मासिस्ट्स को पहल करनी चाहिए। मैंने देखा है कि कुछ वरिष्ठ फार्मासिस्ट नई जानकारी अपनाने में हिचकिचाते हैं, जिससे देखभाल की गुणवत्ता पर असर पड़ता है।
चाहे हम कम्युनिटी फार्मेसी में काम करें या अस्पताल में, हमारी भूमिका सिर्फ दवा देने तक सीमित नहीं है। हम ऐसे स्थान पर हैं जहां हम एंटीबायोटिक के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देकर रोगियों के इलाज को बेहतर बना सकते हैं। अपने सहयोगियों के साथ मिलकर अच्छी प्रथाओं को साझा करना और इन्हें अलग-अलग जगहों पर लागू करने के लिए काम करना हमारे प्रयासों को और प्रभावी बना सकता है।  
हमारे योगदान को पूरी तरह प्रभावी बनाने के लिए अस्पताल प्रबंधन एवं सरकारी संस्थानों से मान्यता मिलना बहुत ज़रूरी है। ऐसा समर्थन न केवल क्लीनिकल फार्मासिस्ट्स को बेहतर रोज़गार के अवसर देगा, बल्कि रोगियों की देखभाल के नतीजे भी सुधारने में मदद करेगा। (स्रोत फीचर्स)