ऑस्ट्रेलिया की संघीय अदालत ने फैसला किया है कि मध्य क्वींसलैण्ड की एक कोयला खदान (कार्माइकल खदान) का ग्रेट बैरियर रीफ पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसलिए वहां खनन कार्य को रोकने की कोई ज़रूरत नहीं है। अदालत ने उस याचिका को भी खारिज कर दिया जिसमें खदान स्थल के एक पारंपरिक मालिक ने दावा किया था कि कार्माइकल खदान प्रोजेक्ट वांगन और जगालिंगू लोगों के देशज अधिकारों का उल्लंघऩ करता है।
सन 2014 में ऑस्ट्रेलियन कंज़रवेशन फाउंडेशन ने अदालत में याचिका दायर की थी कि भूतपूर्व पर्यावरण मंत्री ग्रेग हंट द्वारा इस खदान को दी गई मंज़ूरी से ग्रेट बैरियर रीफ के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। ग्रेट बैरियर रीफ यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व विरासत स्थल है। ऑस्ट्रेलिया ने विश्व विरासत संधि का अनुमोदन किया है और ऑस्ट्रेलिया सरकार उसका पालन करने को बाध्य है। कार्माइकल खदान को दी गई मंज़ूरी उस बाध्यता का उल्लंघन है।
क्वींसलैण्ड की यह कोयला खदान ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी कोयला खदान है और यहां से निकाला गया कोयला भारत के ताप बिजली घरों को निर्यात किया जाएगा। ऑस्ट्रेलियन कंज़र्वेशन फाउंडेशन के अनुसार भारतीय बिजली घरों में इस कोयले को जलाने से प्रति वर्ष 12.8 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होगी। कार्बन डाईऑक्साइड एक ग्रीनहाउस गैस है जो धरती के गर्माने के लिए ज़िम्मेदार है। फाउंडेशन के मुताबिक समुद्र के पानी का तापमान बढ़ना समुद्री कोरल के लिए एक बड़ा खतरा है। ग्रेट बैरियर रीफ मूलत: कोरल से बनी है।
इस याचिका के जवाब में ऑस्ट्रेलिया सरकार ने दावा किया है कि कार्माइकल खदान का कोयला जलाने से वैश्विक तापमान में वृद्धि होगी इसका कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है क्योंकि दुनिया में कितना कोयला जलाया जाएगा यह कई बातों पर निर्भर करता है। बहरहाल, ऑस्ट्रेलियन कंज़रवेशन फाउंडेशन ने आश्चर्य व्यक्त किया है कि 2016 में कोई सरकार यह दावा कैसे कर सकती है कि कोयला जलाने से जलवायु परिवर्तन नहीं होगा। फाउंडेशन ने घोषणा की है कि वह कार्माइकल खदान को रुकवाने की हर संभव कोशिश करेगा। (स्रोत फीचर्स)