नेचर पत्रिका में ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के भूवैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने ग्रीनलैण्ड में 3.7 अरब वर्ष पुरानी चट्टान में कुछ ऐसी रचनाएं खोजी हैं जो स्ट्रोमेटोलाइट हो सकती हैं। स्ट्रोमेटोलाइट सूक्ष्मजीवों द्वारा बनाई गई रचनाएं होती हैं। जब सूक्ष्मजीव आसपास से तलछट को सोख लेते हैं तो वे गुंबदनुमा परतें जमाते जाते हैं। इन्हें स्ट्रोमेटोलाइट कहते हैं।
मगर इस खोज में विवाद का विषय यह है कि ये चट्टानें काफी तनाव से गुज़र चुकी हैं। ऐसे में अधिकांश भूवैज्ञानिकों को यकीन नहीं है कि इन चट्टानों में सजीवों के कोई अवशेष बचे होंगे। कई वैज्ञानिकों का तो कहना है कि जब चट्टानें गर्म होकर पिघलती हैं और फिर ठोस बनती हैं और उनमें क्रिस्टल बनते हैं तो कई बार ऐसी रचनाएं बन जाती हैं जो स्ट्रोमेटोलाइट जैसी दिखती हैं। इनका किसी जीव से कोई सम्बंध नहीं होता।
ये चट्टानें ग्रीनलैण्ड के उसुआ नामक क्षेत्र से मिली हैं जहां वैज्ञानिक वर्षों से जीवन के प्रमाण खोजते रहे हैं। 1999 में प्रकाशित एक शोध पत्र में कार्बन समस्थानिकों के विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया था कि इनमें शुरुआती जीवों के ‘जैव-चिंह’ मिले हैं। मगर ऐसे सारे दावे विवादास्पद ही रहे हैं।

इस बार जो खोज हुई है उसका श्रेय ऑस्ट्रेलिया के वोलोनगोंग विश्वविद्यालय के एलेन नटमैन और उनके साथियों को जाता है। यदि उनका यह दावा सही है कि 3.7 अरब वर्ष पुरानी चट्टानों में जीवों की उपस्थिति के प्रमाण मौजूद हैं तो यह मानना होगा कि पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत वर्तमान मान्यता से लगभग 22 करोड़ साल पहले ही हो गई होगी।
अभी तक वैज्ञानिकों के बीच इन ‘जीवाश्मों’ को लेकर कोई सहमति नहीं बनी है और कई सवालों के जवाब मिले बगैर ऐसी सहमति बन भी नहीं सकती। मगर खोजकर्ताओं का कहना है कि ये जीवाश्म जिस स्थान पर मिले हैं, वहां से कई और प्रमाण भी मिले हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि ये रचनाएं वास्तव में जीवन के ही चिंह हैं। इनके आसपास जिस ढंग के खनिज मिले हैं वे भी इशारा करते हैं कि ये स्ट्रोमेटोलाइट ही हैं। वर्तमान में जिन रचनाओं को स्ट्रोमेटोलाइट माना जाता है, उनके साथ भी इनकी बहुत समानताएं हैं।
अलबत्ता, अन्य वैज्ञानिकों को लगता है कि अभी प्रमाण बहुत कमज़ोर है और इन रचनाओं को बहुत हुआ तो छद्म-स्ट्रोमेटोलाइट ही कहा जा सकता है। (स्रोत फीचर्स)