घोड़े की सवारी में दचके तो लगते हैं मगर एक ताज़ा अध्ययन बताता है कि आज से करीब 1200 साल पहले ये दचके बहुत ज़्यादा रहे होंगे। करंट बायोलॉजी नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक आज से करीब 12 सदी पहले घोड़ों में एक उत्परिवर्तन हुआ था जिसके फलस्वरूप घोड़े ज़्यादा सहज गति से चलने लगे थे और उनकी सवारी करना आसान हो गया था।
वैज्ञानिकों ने 2012 में सारे सहज चाल वाले घोड़ों में एक जीन DMRT3 में एक उत्परिवर्तन देखा था और उन्हें लगा था कि इसका सम्बंध उनकी चाल से होना चाहिए। यह जीन टांगों की गति को प्रभावित करता है। मगर उस समय शोधकर्ताओं को यह अंदाज़ नहीं था कि इस उत्परिवर्तन का असर घोड़े की चाल पर कैसा होगा।

अब नवीन अध्ययन में शोधकर्ताओं ने प्राचीन काल के 90 घोड़ों की हड्डियों के अवशेषों में मौजूद डीएनए प्राप्त किया। गौरतलब है कि डीएनए वह पदार्थ होता है जो किसी भी जीव के लिए विशिष्ट होता है और उसके गुणों के निर्धारण में इसकी प्रमुख भूमिका होती है। उक्त 90 घोड़े 3500 ईसा पूर्व तक के थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि DMRT3 में उत्परिवर्तन लगभग 850-900 ईस्वीं के बीच हुआ था। यानी यही वह समय था जब घोड़े की चाल ज़्यादा सुगम व सहज हो गई थी।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि वाइकिंग लोग घोड़ों को युनाइटेड किंगडम से आइसलैण्ड लेकर आए थे। लगभग इसी दौरान यह उत्परिवर्तन हुआ। फिर वाइकिंग लोगों ने घोड़ों की उन नस्लों पर ज़्यादा ध्यान दिया जिनकी चाल सवारी के लिए अनुकूल थी और इस प्रकार से उनकी तादाद बढ़ती गई। आइसलैण्ड से घोड़े एक बार फिर बदली हुई चाल के साथ युरोप पहुंचे थे।
चूहों पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि DMRT3 में उत्परिवर्तन का असर उनके मेरु-रज्जु के विकास पर होता है। इसी DMRT3 में उत्परिवर्तन के चलते वे काफी लंबी छलांग लगा पाते हैं। शोधकर्ताओं का मत है कि लगभग इसी प्रकार का उत्परिवर्तन घोड़ों में 850-900 ईस्वीं के बीच हुआ था और लोगों ने ऐसे घोड़ों को बढ़ावा दिया। (स्रोत फीचर्स)