प्राचीन विश्व के लोग लगभग उन्हीं बीमारियों से पीड़ित होते थे जो आजकल भी देखी जाती हैं। इनमें हृदय रोग से लेकर कैंसर तक शामिल हैं। इसका मतलब यह कि मिस्र में संरक्षित ममियां (संरक्षित रखे गए शव) इन बीमारियों के इतिहास के अध्ययन के लिए जानकारी का अच्छा स्रोत है। मगर इनमें कैंसर के अध्ययन को लेकर एक दिक्कत आती है। किसी को पता नहीं कि ममीकृत कैंसर कैसा दिखता है।
इसका समाधान खोजने की कोशिश में जेनिफर विलोबाय ने एक अजीबोगरीब तरीके पर अमल किया। विलोबाय लंदन (कनाडा) के वेस्टर्न विश्वविद्यालय में शोध छात्र हैं। उन्होंने एक कैंसर सेंटर से आग्रह किया कि वह उन्हें मरे हुए चूहों के शव उपलब्ध करा दे। इनमें से अधिकांश चूहों की मौत ट्यूमर्स के कारण हुई थी जबकि कुछ चूहे बगैर ट्यूमर वाले भी थे।
इनमें से कुछ चूहों को उन्होंने एक गर्म स्थान पर रेत में दफना दिया ताकि कुछ दिनों बाद यह पता चल सके कि गर्म वातावरण में प्राकृतिक रूप से संरक्षित चूहों के ट्यूमर कैसे दिखते हैं। इसी के साथ कुछ चूहों को वही उपचार मिला जो प्राचीन मिस्र के लोग ममी बनाते वक्त किया करते थे। अर्थात उनके आंतरिक अंग निकाल दिए गए (भेजा नहीं निकाला जा सका क्योंकि उसे नाक के ज़रिए बाहर निकालना संभव नहीं था)। इसके बाद उनके पेट में नेट्रॉन नामक पदार्थ भर दिया गया और शरीर के बाहर भी नेट्रॉन का लेप कर दिया गया। मिस्र के लोग नेट्रॉन का उपयोग एक निर्जलक के रूप में करते थे।
50 दिन तक सुखाने के बाद विलोबाय ने इन उपचारित चूहों को ताड़ के रेज़िन में डुबोया और कपड़े में लपेट दिया। कपड़े में लिपटे शवों को मधुमक्खी के मोम का लेप लगा दिया गया। ममी का निर्माण शास्त्रोक्त विधि से परिपूर्ण करने के लिए उन्होंने इन पर इत्र-फुलैल भी लगाया और प्रार्थना भी कही।
जब उन्होंने दोनों तरह के चूहों के शवों का अध्ययन कैट स्कैन के माध्यम से किया तो पाया कि कैंसर की गठानें स्पष्ट नज़र आ रही थीं। वर्ल्ड कॉन्ग्रेस ऑफ ममी स्टडीज़ के सम्मेलन में विलोबाय ने बताया कि मुलायम ऊतकों की अपेक्षा कैंसर की गठानें कहीं अधिक ठोस नज़र आती हैं और एक्सरे के साथ इनकी अंतर्क्रिया भी भिन्न होती है।
विलोबाय के शोध का फायदा यह है कि अब शोधकर्ता प्राचीन मिस्र के मानव शवों में कैंसर गठानों का भी अध्ययन कर सकेंगे। इससे हमें इस रोग के इतिहास को समझने में मदद मिलेगी। (स्रोत फीचर्स)