काफी मात्रा में डैटा को सुरक्षित तरीके से जीवित कोशिका के डीएनए में स्टोर करना अब संभव हो गया है।
उन दिनों में जब दस्तावेज़ों को हाथ से लिखा जाता था, और उस लिखावट को आंखों से पहचानना होता था तब अक्षरों को बहुत सटा-सटा कर नहीं लिखा जा सकता था। पर कंप्यूटर के ज़माने में, बहुत पास-पास लिखे 0 और 1 को उपकरण पढ़ लेते हैं। लिहाज़ा अब डैटा को 0 और 1 के रूप में यानी बाइनरी रूप में बदलकर सी.डी., मेग्नेटिक डिस्क, पेन ड्राइव या हार्ड डिस्क जैसे स्टोरेज डिवाइस में स्टोर किया जा सकता है।

पर आजकल ऐप्लीकेशन को चलाने के लिए जितने ज़्यादा और सुरक्षित डैटा स्टोरेज की ज़रूरत है, उसके मुकाबले यह तरीका भी कम पड़ने लगा है। इन स्टोरेज उपकरणों के साथ एक दिक्कत यह भी है कि लंबे समय तक इनमें डैटा स्टोर करने पर डैटा की गुणवत्ता कम हो जाती है और नई टेक्नॉलॉजी आने पर उन्हें किसी अन्य डिवाइस में ट्रांसफर करना पड़ता है।
अब इस समस्या को दूर किया जा सकता है क्योंकि वैज्ञानिक सजीव कोशिका के डीएनए में डैटा स्टोर करने में सक्षम हो गए हैं। यह इसलिए मुमकिन हो सका है क्योंकि डीएनए टिकाऊ है और इसकी स्टोरेज क्षमता बेहतर है।

हम जानते हैं कि डीएनए लंबे समय तक सुरक्षित रह सकता है। पुरातात्विक अवशेष (जीवाश्मों) में मिले जीवित ऊतक का डीएनए अब तक सुरक्षित है।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल और हार्वर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक सेथ एल. शिपमैन, जेफ निवाला, जैफरी डी. मैकलिस और जॉर्ज एम. चर्च ने नेचर पत्रिका में बताया है कि उन्होंने एक विधि को परिष्कृत कर लिया है जिसमें वे एक संश्लेषित अणु में कूटबद्ध किए गए डैटा को जैविक औज़ारों की मदद से सजीव कोशिका के डीएनए में प्रत्यारोपित कर सकते हैं। इस सिद्धांत के प्रदर्शन के लिए प्रमाण के तौर पर उन्होंने एक सजीव कोशिका में दौड़ते हुए घोड़े की फिल्म स्टोर की है।

शिपमैन और उनके साथियों ने बताया कि डैटा दो चरणों में स्टोर होता है। पहले चरण में, डीएनए अणु की ही तरह डैटा को इकाइयों के एक क्रम के रूप में कूटबद्ध करना होता है। दूसरे चरण में डीएनए अणु को वहां से काटना होता है जहां इस कूटबद्ध डैटा को जोड़ना होता है।

डीएनए में प्रत्यारोपित की जाने वाली ये डीएनए समान संरचनाएं ऐसे अणु से बनी होती हैं जिसे बिलकुल डीएनए अणु की तरह बनाया जाता है। अर्थात डीएनए के समान ही यह श्रृंखलाबद्ध बहुलक संरचना न्यूक्लियोटाइड्स नामक इकाइयों से बनी होती है। डीएनए बहुलक की लंबाई में चार तरह के न्यूक्लिओटाइड्स जुड़े होते हैं: साइटोसिन (C), ग्वानिन (G), एडेनिन (A) और थाइमिन (T) हैं। डीएनए में, ऐसे तीन-तीन न्यूक्लियोटाइड्स का एक-एक समूह 20 में से किसी एक अमीनो अम्ल का कोड होता है। अमीनो अम्ल प्रोटीन को बनाने वाली इकाइयां हैं। तीन-तीन न्यूक्लियोटाइड्स समूह की श्रृंखला अमीनो अम्ल की श्रृंखला को कोड करती है। इस तरह से यह अलग-अलग प्रोटीन का कोड होता है।

जिस तरह डीएनए प्रोटीन के लिए कोड करता है, न्यूक्लियोटाइड्स की छोटी-छोटी श्रृंखलाएं (ओलिगोन्यूक्लियोटाइड्स) डिजिटल सूचनाओं को कोड कर सकती हैं। कंप्यूटर में 8 बिट या 1 बाइट 28 =256 अक्षरों को दर्शा सकता है। डीएनए में, 3 न्यूक्लियोटाइड्स का समूह, 43 = 64 कैरेक्टर कोड कर सकता है (किंतु अमीनो अम्ल तो 20 ही हैं, बाकी के कोड सुरक्षा की नज़र से विकल्प के तौर पर पड़े हैं)। अर्थात ओलिगोन्यूक्लियोटाइड्स को इबारत लिखने, नंबर या पिक्सल वैल्यू दर्शाने के लिए कोड किया जा सकता है।

हार्वर्ड का यह पेपर डीएनए के कृत्रिम हिस्से में कोडिंग के बारे में बताता है। चूंकि खंड की लंबाई सीमित है इसलिए कृत्रिम ओलिगोन्यूक्लियोटाइड्स के एक से ज़्यादा सेट पर कोडिंग की गई। कौन-सा खंड किस पिक्सल के लिए है इसकी पहचान के लिए खंड के एक हिस्से को कोड किया गया। इस तरह खंड में 28 न्यूक्लियोटाइड्स ही बचते हैं कोड करने के लिए।

इस प्रक्रिया में दूसरा चरण है ओलिगोन्यूक्लियोटाइड्स को सजीव कोशिका के डीएनए में डालना। इस चरण को कोशिका की एक विशेषता का इस्तेमाल करके पूरा किया गया। कोशिकाओं द्वारा किसी वायरस के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने का तरीका यह है कि जब कोई वायरस कोशिका पर हमला करता है, तो कोशिका उस वायरस के डीएनए के एक हिस्से की कॉपी बनाकर अपने डीएनए में जोड़ लेती है। डीएनए के इस हिस्से को क्रिस्पर (CRISPR) कहतें हैं। CRISPR को कोशिका के अन्य सामान्य कामों के लिए उपयोग नहीं किया जाता। पर यदि वायरस फिर से हमला करता है तो कोशिका की रक्षा प्रणाली के पास वायरस डीएनए की कॉपी होती है। कोशिका डीएनए में एक और हिस्सा होता है जिसे CASgenes कहते हैं। CASgenesका काम यह होता है कि पहले हासिल किए गए CRISPR की कॉपी बनाए और उसकी मदद से वायरस के डीएनए को तहस-नहस कर दे।

यह विधि इस तरह परिष्कृत हुई कि कोशिका स्वयं अपने डीएनए के हिस्सों को काटकर अलग कर देती है, फिर कटे हुए सिरे आपस में जुड़ जाते हैं, इस तरह डीएनए में पैदा हुई गड़बड़ियों की मरम्मत होती है या नए जीन जोड़े जा सकते हैं। इस विधि को CRISPR-CAS9 कहते हैं।
सजीव कोशिका के डीएनए में डैटायुक्त ओलिगोन्यूक्लियोटाइड्स जोड़ने के लिए हार्वर्ड के समूह ने CRISPR-CAS9 विधि का उपयोग किया। कोशिका विभाजन के समय डीएनए और साथ में बाहर से जोड़े गए ओलिगोन्यूक्लियोटाइड की भी प्रतिकृति बनती है वह सुरक्षित रहता है। आजकल डीएनए में न्यूक्लियोटाइड्स की श्रृंखलाओं को फिर से पढ़ने की काफी अच्छी तकनीकें उपलब्ध हैं। इन तकनीकों की मदद से ओलिगोन्यूक्लियोटाइड्स में संचित सूचना को प्राप्त किया जा सकता है।

मोशन फोटोग्राफी करने वाले 19वीं सदी के फोटोग्राफर एडवर्ड म्यूब्रिाज द्वारा ली गई एक दौड़ते हुए घोड़े की तस्वीरों को सजीव कोशिका के डीएनए में स्टोर करके इस तकनीक का प्रदर्शन किया गया। तस्वीरों को अच्छी गुणवत्ता के साथ संचित किया जा सकता है और वापिस प्राप्त किया जा सकता है। डीएनए में संचित तस्वीरों को एक के बाद एक दिखाया गया तो घोड़े की गतिशील फिल्म नज़र आई। इस कमाल को देखने के लिए: https://uploads.guim.co.uk/2017/07/12/Horse_GIF.gif(स्रोत फीचर्स)