यूएस के खाद्य व औषधि प्रशासन ने दवा की एक डिजिटल गोली को मंज़ूरी दी है। इस गोली में एक सेंसर लगा है जो पेट में पहुंचते ही एक संदेश प्रसारित करेगा। यह संदेश मरीज़ के सीने पर चिपकी एक पट्टी महसूस करेगी और उसे आगे प्रसारित कर देगी।
ऐसी गोली बनाने का विचार मरीज़ों द्वारा डॉक्टर की सलाह पर नियमित रूप से दवाई न लेने की समस्या से उभरा है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि मरीज़ों द्वारा समय पर दवा का सेवन ना करना स्वास्थ्य तंत्र के सामने एक बड़ी समस्या है। इसकी वजह से कई बीमारियों का इलाज मुश्किल हो जाता है और खर्चीला भी साबित होता है। ऐसा बताया जा रहा है कि इस समस्या की वजह से लगभग 100 अरब डॉलर का नुकसान होता है।

फिलहाल जिस डिजिटल दवा को मंज़ूरी दी गई है वह सायकोसिस की दवा एबिलीफाय मायसाइट है। इसका उत्पादन दवा कंपनी ओत्सुका द्वारा प्रोटियस डिजिटल हेल्थ नामक कंपनी के सहयोग से किया जा रहा है। गोली में जो सेंसर लगा है वह तांबा, मैग्नीशियम और सिलिकॉन से बना है। जैसे ही यह सेंसर आमाशय के तलर पदार्थों के संपर्क में आता है, वैसे ही यह एक विद्युत संकेत पैदा करता है। इसके कुछ मिनट बाद व्यक्ति की बार्इं पसलियों पर लगी एक पट्टी इस संदेश को पकड़ती है। यह पट्टी हर सात दिन में बदलनी होती है। यह पट्टी गोली निगलने की तारीख व समय को ब्लूटूथ के ज़रिए एक मोबाइल फोन ऐप को प्रेषित कर देती है जहां से यह उन सारे लोगों को भेज दिया जाता है जिनके मोबाइल नंबर उसमें डाले गए हैं। मरीज़ चाहे तो इस तरह के संदेश भी जा सकते हैं कि उसने कब आराम किया वगैरह।

इस नवाचार को लेकर वाद-विवाद शुरू हो चुका है। कुछ विशेषज्ञों का मत है कि हम दवा न लेने की समस्या से निपटने के मामले में एक कदम आगे बढ़े हैं। उनके मुताबिक यह तकनीक खास तौर से उन मरीज़ों के लिए बहुत कारगर साबित होगी जो भूलने की आदत से पीड़ित हैं। यदि वे समय पर दवा लेना भूल जाते हैं तो उनके डॉक्टर या परिजनों को इस बात का पता चल जाएगा और वे मरीज़ को याद दिला सकते हैं।

दूसरी ओर, कई लोगों का मत है कि यह व्यक्ति की निजता का उल्लंघन है। इन लोगों का कहना है कि इस तकनीक का दुरूपयोग होने की पूरी आशंका है। इसी आशंका के मद्दे नज़र फिलहाल यह व्यवस्था की गई है कि मरीज़ की सहमति के बाद ही उसे यह डिजिटल गोली दी जाएगी। इसके लिए मरीज़ को एक सहमति अनुबंध करने और जब चाहे इस अनुबंध को रद्द करने की छूट दी गई है। कुछ लोगों का मत है कि बीमा कंपनियां व्यक्ति पर यह शर्त लागू कर सकती हैं कि उसे ऐसे अनुबंध पर हस्ताक्षर करने ही होंगे। तो इस नई टेक्नॉलॉजी पर बहस चलना लाज़मी है। (स्रोत फीचर्स)