कैंसर के उपचार हेतु आजकल दवाइयों की एक नई किस्म का परीक्षण किया जा रहा है। ये दवाइयां मरीज़ के अपने प्रतिरक्षा तंत्र की कुछ कोशिकाओं को कैंसर से बचाव का रास्ता दिखाती हैं। मगर कुछ प्रयोगों में देखा गया कि ये दवाइयां कुछ मरीज़ों पर कारगर होती हैं जबकि अन्य में नाकाम रहती हैं। ताज़ा अनुसंधान से पता चला है कि इन दवाइयों के कारगर या नाकाम रहने में व्यक्ति की आंतों में बसे सूक्ष्मजीव संसार की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

दरअसल 2 वर्ष पूर्व कुछ वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट किया था कि चूहों में प्रयोग दर्शाते हैं कि कैंसर की प्रतिरक्षा-उपचार की दवाइयों के मामले में चूहों की आंतों के बैक्टीरिया की अहम भूमिका होती है। अब इसी प्रकार के प्रयोग मनुष्यों पर भी किए गए हैं और परिणाम उसी तरह के हैं।

प्रतिरक्षा-उपचार में इस्तेमाल की जाने वाली दवा है पीडी-1 रोधक। यह दवा हमारी एक किस्म की प्रतिरक्षा कोशिका पर एक अणु को निष्क्रिय कर देती है। यह अणु एक किस्म का चेकपॉइन्ट होता है। कैंसर की कोशिकाएं इस चेकपॉइन्ट का उपयोग करके टी-कोशिकाओं को निष्क्रिय कर देती हैं। पीडी-1 रोधक दवाइयां इस चेकपॉइन्ट को ही ठप कर देती हैं जिसके चलते कैंसर कोशिकाएं उसका उपयोग नहीं कर पातीं और प्रतिरक्षा कोशिकाएं अपना काम करती रहती हैं।

2015 में फ्रांस के गुस्ताव रूसी कैंसर कैम्पस के प्रतिरक्षा वैज्ञानिक लॉरेंस ज़िटवोगेल ने यह बताया था कि चूहों के सूक्ष्मजीव संसार को बदलने पर वे पीडी-1 रोधक के प्रति बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं। और तो और, अलग-अलग सप्लायर्स से प्राप्त चूहों की अलग-अलग प्रतिक्रियाओं को भी उनमें उपस्थित सूक्ष्मजीव संसार के आधार पर समझा जा सका था।

ज़िटवोगेल ने 249 कैंसर मरीज़ों का अध्ययन किया है। इनमें फेफड़ों, किडनी और मूत्राशय कैंसर के मरीज़ थे। इनमें से 69 मरीज़ अन्य कारणों (जैसे दंत चिकित्सा, या मूत्र मार्ग संक्रमण) के लिए एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन कर रहे थे या हाल ही में कर चुके थे। परिणाम चौंकाने वाले थे। जो मरीज़ एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन कर रहे थे, उनमें कैंसर जल्दी लौटा या वे पीडी-1 रोधक कैंसर उपचार के बावजूद ज़्यादा समय जीवित न रहे।
ज़िटवोगेल की टीम ने उपचार पर अच्छी प्रतिक्रिया देने वाले और प्रतिक्रिया न देने वाले मरीज़ों की आंतों के बैक्टीरिया की तुलना की। पता चला कि एक बैक्टीरिया एकरमेन्शिया म्यूसिनिफेला प्रतिक्रिया को प्रभावित करता है। इस बैक्टीरिया की उपस्थिति में मरीज़ इलाज का अच्छा रिस्पॉन्स देते हैं।

चूहों पर प्रयोगों के दौरान यह भी देखा गया है कि यदि सूक्ष्मजीव से मुक्त चूहों को अन्य (सूक्ष्मजीव-सहित) चूहों के मल का प्रत्यारोपण किया जाए तो वे भी दवा से लाभान्वित होने लगते हैं।
ज़िटवोगेल का तो विचार है कि यदि पीडी-1 रोधक औषधि दी जा रही है, और उस दौरान एंटीबोयोटिक से परहेज़ किया जाए, तो उपचार का लाभ 25 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत तक हो सकता है। और साथ में यदि आंतों के सूक्ष्मजीव संसार का भी ध्यान रखा जाए, तो यह उपचार कहीं ज़्यादा कारगर साबित होगा। (स्रोत फीचर्स)