यदि कोई व्यक्ति दोबारा डेंगू का शिकार होता है तो वह पहली बार से ज़्यादा घातक हो सकता है। ऐसा क्यों होता है यह बहस का मुद्दा है। एक मत यह है कि इसकी वजह पहली बार शरीर में बनी एंटीबॉडीज़ हैं। एंटीबॉडी शरीर में किसी संक्रमण के खिलाफ बनती हैं।
हाल ही में अमेरिका और निकरागुआ के वैज्ञानिकों ने एक रिपोर्ट में बताया है कि एंटीबॉडी की वजह से रोग का ज़्यादा घातक होना (ADE) तब हो सकता है जब पहले संक्रमण से विकसित एंटीबॉडी की संख्या एक निश्चित स्तर से कम हो गई हो।

अब तक इस मत को लेकर संदेह थे, मुख्य तौर पर इसलिए क्योंकि ॠक़्क के प्रमाण इंसानों के शरीर में नहीं मिले थे, हालांकिप्रयोगशाला में कोशिकाओं में यह देखा गया था।
यू.एस. सेना से अर्ध-सेवानिवृत वैज्ञानिक डॉ. स्कॉट हैस्टेड दशकों से इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं कि लोगों में दूसरी बार हुए डेंगू के घातक और गंभीर संक्रमण के लिए डेंगू एंटीबॉडी ज़िम्मेदार है। उन्होंने कहा कि कुछ दशकों पहले थाइलैंड में हुए अध्ययनों में इसके साक्ष्य मिले थे। पर वे मानते हैं कि वह काफी छोटा अध्ययन था।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में संक्रामक बीमारियों और प्रतिरक्षा विज्ञान की प्रोफेसर इवा हैरिस और उनके साथियों ने इस अध्ययन में2 से 14 साल के लगभग 6,700 बच्चों का अध्ययन किया। उन्होंने उनको 12 साल तक मॉनीटर किया। हर साल उनके खून की जांच की गई और जब कभी भी किसी बच्चे को बुखार के साथ कमज़ोरी हुई, जो कि डेंगू का लक्षण है, उसकी चिकित्सकीय जांच की गई। इन सालो में 41,000 से भी ज़्यादा नमूनों का विश्लेषण किया गया। वे देखना चाहती थीं कि क्यों कुछ बच्चों में डेंगू का दूसरा हमला गंभीर - डेंगू रक्तरुाावी बुखार या डेंगू शॉक सिंड्रोम - हो जाता है।

डेंगू का वायरस मच्छर के काटने से शरीर में आता है। इस बीमारी में तेज़ बुखार, भारी सिरदर्द, जोड़ों और मांसपेशियों का दर्द होता है। और कुछ-कुछ लोगों में रक्तवाहिनी (नसों) में से खून का रिसाव हो जाता है जिसके कारण मृत्यु तक हो सकती है। आम तौर पर डेंगू का दूसरा संक्रमण घातक होता है।
हैरिस और उनके साथियों ने पाया कि जो बच्चे पहले संक्रमित हो चुके थे उनमें एंटीबॉडी जब एक निश्चित संख्या से कम हो जाती हैं तब डेंगू के गंभीर होने का खतरा ज़्यादा होता है। वास्तव में जिन बच्चों की एंटीबॉडी का स्तर निश्चित स्तर से कम हुआ था उनके लिए बाकी बच्चों के मुकाबले खतरा आठ गुना ज़्यादा था। दूसरी ओर, एंटीबॉडी का उच्च स्तर गंभीर डेंगू से सुरक्षा देता है।

ऐसा माना जाता है कि बहुत कम संख्या में एंटीबॉडी हों तो वे वायरस को बेअसर तो नहीं कर पाते किंतु ये उनको बांध लेते है और संवेदी कोशिकाओं में ले जाते हैं जहां वे संख्या वृद्धि करने लगते हैं।
हैरिस बताती हैं कि यह विचार अजीब लगता है कि कुछ संख्या में एंटीबॉडी का होना, बिलकुल भी ना होने से ज़्यादा खतरनाक होता है। वे इस बात पर ज़ोर देती हैं कि यह खोज डेंगू की गंभीर बीमारी के सारे मामलों की व्याख्या नहीं करती। कुछ लोगों में पहली बार में ही डेंगू का गंभीर संक्रमण हुआ था। यानी यही एकमात्र व्याख्या नहीं है। बल्कि व्यक्ति के स्वास्थ्य की हालत, ऋतु वगैरह भी अन्य कारक हैं।
यह खोज डेंगू वैक्सीन के सावधानीपूर्वक उपयोग के बारे में भी आगाह करती है। (स्रोत फीचर्स)