ज़ुबैर सिद्दिकी

अक्टूबर 10, 1967 में बाह्य अंतरिक्ष संधि को अमल में लाया गया। उस समय की महाशक्तियां सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका ने सहमति से यह निष्कर्ष लिया कि बाह्य अंतरिक्ष एक ऐसा स्थान माना जाएगा जिसको सभी देश साझा कर सकेंगे। इस संधि के बाद से कई संधियों का सिलसिला शुरू हुआ जिनमें दी रेस्क्यू एग्रीमेंट (1968), दी लाएबिलिटी कन्वेंशन (1972), दी रजिस्ट्रेशन कन्वेंशन (1976) और दी मून एग्रीमेंट (1984) शामिल हैं। हालांकि अमेरिका और सोवियत संघ ने इनमें से कुछ पर सहमति जताई और कुछ को आंशिक रूप से ही कुबूल किया।

समय के साथ काफी बदलाव आते गए और तकनीक भी विकसित होती गई। जहां पहले कक्षा में एक किलोग्राम वज़न भेजने के लिए 20,000 डॉलर की लागत आती थी वहां अब केवल 5000 अमेरिकी डॉलर में काम हो जाता है। साथ ही कई गैर सरकारी संस्थानों ने भी इसमें दिलचस्पी लेना शुरू किया और अन्य ग्रहों की यात्रा की कई परियोजनाओं पर काम किया जाने लगा।
अंतरिक्ष तक पहुंच को एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय हित माना जाने लगा और कई देश बाह्य अंतरिक्ष गतिविधियों में आगेे आने लगे। इस दौड़ में कई देशों ने खुद के लिए खतरे भी महसूस किए। जैसे मई 2013 में चीन के विज्ञान मिशन के बाद अमेरिका को खतरा महसूस होने लगा। खास तौर से जब चीन ने भूस्थिर कक्षा (पृथ्वी से लगभग 36,000 कि.मी.) में उपग्रह का प्रक्षेपण किया।

अंतरिक्ष गतिविधियों में हर वर्ष 40 अरब डॉलर खर्च करने वाला देश अमेरिका है। यह खर्च अन्य सभी देशों के संयुक्त खर्च से भी अधिक है। इसीलिए 1 जनवरी 2017 तक, कुल 1459 उपग्रहों में से 593 उपग्रह अकेले अमेरिका के हैं। इन्हीं सक्रिय और पुराने उपग्रहों के 5,00,000 से अधिक टुकड़े पृथ्वी की कक्षा में घूम रहे हैं जो एक बेसबॉल से लेकर स्कूल बस आकार तक के हैं।
अंतरिक्ष में शामिल देशों और भागीदारों की संख्या बढ़ भी रही है। 1959 में बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोगों पर संयुक्त राष्ट्र समिति (सीओपीयूओएस) के गठन के बाद से सदस्यों की संख्या 24 से अब 84 हो गई है। कुछ देश खुद की प्रक्षेपण क्षमताओं को विकसित करने में सक्षम हैं लेकिन अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी द्वारा प्रदान की जाने वाली जानकारी प्राप्त करने से कोई पीछे नहीं हटना चाहता है। साथ ही, निजी कंपनियों के माध्यम से भागीदारी भी हो सकती है।

अमेरिका में अंतरिक्ष मामले में बदलाव का मुख्य कारण अन्य देशों की सैन्य क्षमता विकसित करना है। कई देश दोहरी क्षमता विकसित कर नागरिक और सैन्य दोनों क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। अमेरिका सहित कई देश उसी मिसाइल-रक्षा प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं जो उपग्रह विरोधी हथियार के लिए इस्तेमाल होते हैं। फिर भी, अब तक, किसी भी देश ने स्पष्ट व आधिकारिक रूप से एक अंतरिक्ष हथियार संधि की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है।

इसी बीच अंतरिक्ष सुरक्षा को लेकर भी सवाल उठने लगे। वर्ष 2015 में क्षुद्र ग्रह बेल्ट में संभावित खनिज और जल संसाधनों को खोजने के कानून बनाए गए। हालांकि कई लोगों के अनुसार यह बाह्य अंतरिक्ष संधि के अनुच्छेद- II का उल्लंघन माना गया जिसमें यह बताया गया है कि चंद्रमा और आकाशीय निकाय किसी के अधीन नहीं हैं, और यह कानून संभवत: चंद्रमा, ग्रहों और क्षुद्र ग्रहों के पर्यावरण का दोहन करने की गुंजाइश देता है।
अंतरिक्ष यातायात को भी एयर ट्रैफिक कंट्रोल के बराबर माना गया है। इसमें यह जानकारी होना अनिवार्य है कि कौन-सा उपग्रह किस जगह पर है, किस दिशा में है, नियंत्रित है या अनियंत्रित है, या फिर दिशाहीनता से दिशा में आ गया है। अमेरिकी संयुक्त अंतरिक्ष संचालन केंद्र और अन्य निजी निकाय इस क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं लेकिन अभी भी कई उपग्रह मालिक, खासकर खुफिया एजेंसियां बहुत अधिक जानकारी साझा करने की इच्छुक नहीं हैं ।

अमेरिका ने पहले से ही बाहरी अंतरिक्ष संधि के अंतरिक्ष संचालन के समन्वय और सीमित करने के बहुपक्षीय नियमों को त्याग दिया है। बाह्य अंतरिक्ष संधि के तीन प्रमुख शस्त्र नियंत्रण प्रावधान अनुच्छेद-IV में मौजूद हैं, जिसमें अंतरिक्ष निकायों को शांति परियोजनाओं के लिए प्रयोग करना, परमाणु हथियारों को कक्षा में न भेजना और आकाशीय पिंडों पर किसी भी प्रकार के सैन्य ठिकानों, प्रतिष्ठानों या किलेबंदी करना वर्जित है।
वैसे शांतिपूर्ण प्रयोजनों के लिए सैन्य उपकरणों या सुविधाओं के उपयोग की अनुमति है, इसलिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के नागरिक कार्यक्रम अक्सर सैन्य क्षमताओं में सुधार करते हैं। शांतिपूर्ण कार्यों के नाम पर सामूहिक विनाश के हथियारों पर प्रतिबंध तो लग गया है लेकिन हथियारों पर नहीं। इन्हीं गतिविधियों और परीक्षणों का मलबा साफ होने में लंबा समय लग सकता है।

कई बार अंतरिक्ष स्टेशन को अंतरिक्ष में इन अवशेषों से टकराने से बचने के लिए पैंतरेबाज़ी करना पड़ती है।
वर्ष 2008 से लेकर 2014 के बीच चीन और रूस ने संयुक्त रूप से राष्ट्र संघ में बाहरी अंतरिक्ष में हथियारों की तैनाती की रोकथाम और धमकी या बाहरी अंतरिक्ष वस्तुओं के विरुद्ध बल के उपयोग के सम्बंध में पीपीडब्ल्यूटी को एक करार दिया। हर बार, अमेरिका ने प्रस्ताव को ‘मौलिक रूप से दोषपूर्ण’ कहकर खारिज कर दिया।

अंतरिक्ष कानून में आज बदलाव की आवश्यकता है, बाहरी अंतरिक्ष संधि का विस्तार या एक नई संधि तैयार करने की संभावना नहीं है। ज़रूरत से प्रेरित ‘सॉफ्ट लॉ’ अंतरिक्ष संचालन के नियमों को संशोधित करने का सबसे अच्छा विकल्प है। ‘सॉफ्ट लॉ’ में ऐसे नियम या दिशानिर्देश शामिल होते हैं जो कानूनी महत्व रखते हैं लेकिन बाध्यकारी नहीं हैं। ‘सॉफ्ट लॉ’ तब काम कर सकता है जब सभी दल अपना हित जानते हुए इसका पालन करें। यदि देश और कंपनियां एक उपयोगी क्षेत्र के रूप में अंतरिक्ष वातावरण को बनाए रखना चाहते हैं, तो विभिन्न प्रकार के संचालन नियमों का पालन करना होगा।

अंतरिक्ष दिशानिर्देशों का फोकस पर्यावरण संरक्षण और मलबे से बचाव होना चाहिए। टकराव से बचने के लिए आपसी समझ और राष्ट्रों के बीच भरोसा बढ़ाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
एक समन्वित मानव अंतरिक्ष मिशन, जिसमें विभिन्न राष्ट्र एक समान लक्ष्य की दिशा में एक साथ मिलकर काम करते हैं, वह बाहरी अंतरिक्ष संधि में सोचे गए अंतरिक्ष पर्यावरण का निर्माण कर सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)