सैटेलाइट हमें खराब मौसम की चेतावनी तो देते ही हैं, साथ ही वैज्ञानिक सैटेलाइट डैटा का उपयोग एक विश्व व्यापी समस्या के संदर्भ में भी कर रहे हैं: हैज़ा फैलने की भविष्यवाणी।
प्रति वर्ष लाखों लोग हैज़ा के शिकार होते हैं और हज़ारों काल के गाल में समा जाते हैं। अक्सर लोगों को यह अंदाज़ नहीं लग पाता है कि महामारी फैलने वाली है। समय रहते चेतावनी मिल जाए, तो चिकित्सकों को तैयारी का समय मिलेगा और वे पुनर्जलन घोल (ओआरएस), दवाइयां, टीके आदि जमा करके रख सकेंगे। इससे बीमारी फैलने से रोकने में मदद मिलेगी और जीवन बचाए जा सकेंगे।

मई 2017 में वैज्ञानिकों की एक टीम ने सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर यमन में महामारी का पूर्वानुमान लगाने की कोशिश की थी और इसकी भविष्यवाणी भी की थी। जून तक यह बीमारी महामारी की तरह फैल गई।
गौरतलब है कि हैज़ा पानी के ज़रिए फैलने वाली बैक्टीरियल बीमारी है। इसके कारण आंतों में तकलीफ होती है और निर्जलीकरण का सामना करना पड़ता है। यह बीमारी चंद घंटों या दिनों में विकराल रूप ले लेती है। अधिकांश मामले विकासशील देशों में होते हैं जहां काफी बड़ी आबादी अस्वच्छ माहौल, झुग्गियों और शरणार्थी शिविरों में रहती है।

हैज़ा दो तरह से फैल सकता है: स्थानीय रूप से या महामारी के रूप में। तटवर्ती इलाके हैज़ा प्रकोप के क्षेत्र हैं। समुद्री हैज़ा के बैक्टीरिया सूखे व गर्म मौसम में फलते-फूलते हैं और ऊंचे ज्वार के साथ तटों पर पहुंच जाते हैं। तटवर्ती शहर और कस्बे हैज़ा से संक्रमित हो जाते हैं मगर अधिकांश स्थानों पर ऐसा प्रकोप नियमित अंतराल पर होता रहता है जिसकी वजह से यहां के बाशिंदे संक्रमण की ऐसी घटनाओं को लेकर तैयार होते हैं।
दूसरी ओर, वेस्ट वर्जीनिया युनिवर्सिटी के अंतरप्रीत जूटला का कहना है कि महामारी नुमा हैज़े का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल होता है। ऐसी महामारियां अचानक प्रकट हो सकती हैं। लोग तैयार नहीं होते। इसी समस्या से निपटने के लिए जूटला और उनके साथियों ने यमन का अध्ययन किया।

जूटला और उनकी टीम ने सैटेलाइट की मदद से पूरे एक वर्ष तक यमन के तापमान, जल संग्रहण, वर्षा और भूमि की निगरानी की। इस जानकारी को अपने द्वारा विकसित एल्गोरिदम में रखने पर टीम को उन इलाकों का अंदाज़ा लगा जहां हैज़ा फैलने की आशंका सबसे अधिक थी। उनके इस विश्लेषण के कुछ सप्ताह बाद ही यमन में हैज़ा फैला और लगभग उसी पैटर्न में फैला जैसी कि उनके मॉडल ने भविष्यवाणी की थी। वैसे उन्हें इतनी हद तक साम्य की उम्मीद नहीं थी क्योंकि उन्होंने अपना मॉडल बंगाल डेल्टा और अफ्रीका के आंकड़ों के आधार पर तैयार किया था। वे यह सारी सूचना समय रहते यमन नहीं पहुंचा पाए थे क्योंकि वहां युद्ध के चलते काफी उथल-पुथल थी।

किंतु उन्हें लगता है कि सैटेलाइट द्वारा इस तरह की भविष्यवाणी बीमारी के प्रसार को रोकने में सहायक हो सकती है। इस संदर्भ में साउथ डैकोटा स्टेट युनिवर्सिटी के इकॉलॉजिस्ट माइकल विम्बर्ले कहते हैं कि इस तरह की भविष्यवाणी करने में सफलता से आत्म विश्व ास पैदा हुआ है। इस मॉडल की विशेषता यह है कि इसमें विभिन्न तरह के डैटा का एक साथ उपयोग किया गया है। (स्रोत फीचर्स)