डॉ. डी. बालसुब्रामण्यन

संपूर्ण मानव जीनोम में से मात्र 100 जीन्स ही एक चौथाई वैज्ञानिक शोध पत्रों और रिपोर्ट पर छाए हुए हैं।
मानव शरीर कोशिकाओं से बना होता है। शरीर के ये छोटे-छोटे कारखाने ही अधिकांश कार्रवाई को अंजाम देते हैं। ये ऊतकों का निर्माण करते हैं, ऊतक अंगों का निर्माण करते हैं और इनसे पूरे शरीर का निर्माण होता है। इस प्रकार कोशिका कामकाज का अंतिम बिंदु है। कोशिकाएं जो कुछ करती हैं उसके निर्देश उनके मुख्यालय यानी नाभिक के अंदर स्थित होते हैं। ये निर्देश गुणसूत्रों में सहेजकर रखे होते हैं। प्रत्येक गुणसूत्र पर यह सूचना जीन्स के रूप में अंकित होती है। जीन्स में यह सूचना संचित होती है कि कोई कोशिका क्या करेगी, और कोशिकाओं से बने ऊतक और अंग क्या करेंगे, और उन अंगों से बना शरीर क्या करेगा। जीन्स में उपस्थित सूचना में त्रुटियां ऊतक, अंग या शरीर की गड़बड़ी के रूप में झलकती है।

जीन्स में ये जानकारी डीएनए अणु के रूप में अंकित रहती है। प्रत्येक जीन चार अणुओं का लंबा अनुक्रम होता है। ये चार अणु क्षार कहलाते हैं। ये एक लंबी बहुलक शृंखला में गूंथे होते हैं। अंग्रेज़ी वर्णमाला में 26 अक्षर और विराम-चिन्ह होते हैं जबकि जीन्स की वर्णमाला में चार क्षार होते हैं जिन्हें ॠ, क्र, क् और च्र् कहते हैं। इन चार क्षारों का क्रम ही आनुवंशिक शब्द और विराम-चिन्ह बनाता है।

ज़िन्दगी की किताब
मानव जीनोम सूचनाओं का संग्रह है जो गुणसूत्रों के रूप में संगठित जीन्स में पाई जाती है। गुणसूत्र स्वयं कोशिकाओं के नाभिक में बंद होते हैं। इस प्रकार हमारा जीनोम हमारी ज़िन्दगी की किताब होता है जिसमें गुणसूत्र अध्याय समान होते हैं जो जीन के रूप में लिखे गए वाक्यों से बनते हैं। ये वाक्य स्वयं चार अक्षरों की जेनेटिक वर्णमाला में कूट रूप में संग्रहित रहते हैं।
जैसे ही कोशिका गुणसूत्रों में संग्रहित सूचना को पढ़ती है, वह अपना काम करने लगती है। इस कार्रवाई का महत्वपूर्ण हिस्सा जेनेटिक भाषा को वास्तविक क्रियाकारी अणुओं में तबदील या अनुवादित करने का होता है। इन क्रियाकारी अणुओं को प्रोटीन कहते हैं। कुल मिलाकर मामला यह है कि डीएनए रूपी सॉफ्टवेयर से कोड्स को पढ़ा जाता है और कोशिका (या शरीर) रूपी हार्डवेयर में कार्रवाई को अंजाम दिया जाता है।

जीव विज्ञान के इतिहास का यह एक रोचक तथ्य है कि डीएनए की प्रकृति व रासायनिक संरचना और जेनेटिक कोड को समझने से पहले ही जीन्स के बारे में समझना और उन्हें पहचानना शुरू हो गया था। सन 1856 और 1863 के बीच ऑस्ट्रियन मठवासी ग्रेगर मेंडल ने मटर के पौधों पर प्रयोग करते हुए पैतृक गुणों या कारकों की पहचान की थी (अब हम इन्हें जीन्स कहते हैं)। उन्होंने फूलों में रंग बनाने का काम करने वाले कारकों की पहचान की थी। यह बात भी पहचान ली गई थी कि हीमोफीलिया जैसे कुछ खानदानी रोग जीन्स में गड़बड़ी की वजह से होते हैं हालांकि इन्हें आणविक रूप में पढ़ना बहुत सालों बाद संभव हुआ।

शरीर में प्रोटीन जीन्स में लिखे गए संदेशों के आधार पर बनाए जाते हैं। हालांकि जीन्स के डीएनए के क्षार अनुक्रम को पढ़ना पिछले पचासेक वर्षों में ही संभव हुआ है, किंतु प्रोटीन्स में अमीनो अम्लों के क्रम को पढ़ना 1950 के दशक में प्रचलन में आ चुका था। वैज्ञानिकों ने बीमारियों से सम्बंधित प्रोटीन के गुणों का अध्ययन करना शुरू कर दिया था। कभी-कभी तो किसी प्रोटीन के अमीनो अम्ल अनुक्रम में एक छोटे-से बदलाव से भी प्रोटीन के गुणों में परिवर्तन हो सकते हैं और स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं सिर उठा सकती हैं। जैसा कि डॉ. लायनस पौलिंग और वर्नन इन्ग्राम ने 70 वर्षों पहले यह दिखा दिया था, हीमोग्लोबिन के अणु के अनुक्रम में अमीनो अम्ल ‘ग्लूटेमिक अम्ल’ की जगह ‘वैलीन’ जुड़ जाने पर इसके गुणधर्म में नाटकीय बदलाव आता है, जो एक किस्म के एनीमिया का कारण बन जाता है।

बीमारियों का जेनेटिक आधार
प्रोटीन अनुक्रम में इस तरह की त्रुटियां अक्सर मूल जीन्स के अनुक्रम में त्रुटि की वजह से पैदा होती है। जीन्स में डीएनए अनुक्रम को पढ़ना संभव हो जाने के बाद रोग के पीछे के जेनेटिक आधार को समझना संभव हो गया। इससे चिकित्सा आनुवंशिकी के क्षेत्र का जन्म हुआ। पिछले दो दशकों में जीन अनुक्रमण के काम में तेज़ विकास के चलते चिकित्सा आनुवंशिकी भी खूब फली-फूली। कैंसर आनुवंशिकी सबसे गहमा-गहमी का क्षेत्र है और कैंसर से सम्बंधित जीन्स का अध्ययन लोकप्रिय हो गया है। यही स्थिति अल्ज़ाइमर और अन्य तंत्रिका विकारों के मामले में भी है।

नेचर पत्रिका के 23 नवंबर के अंक में ‘ग्रेटेस्ट हिट्स ऑफ दी ह्रूमन जीनोम’ (मानव जीनोम के सफलतम हिस्से) की सूची प्रकाशित हुई है। इसमें बताया गया है कि मानव जीनोम में मौजूद 20 हज़ार या इससे कुछ अधिक प्रोटीन-निर्माता जीन्स में से केवल 100 जीन्स एक चौथाई से अधिक वैज्ञानिक शोध पत्र और रिपोर्टस के विषय हैं। और इन 100 में से भी मात्र 10 जीन्स पर सबसे ज़्यादा अध्ययन किए गए हैं, और ये सबसे ऊंची पायदान पर हैं।

इन 10 में से सबसे ऊपर पी-53 नामक प्रोटीन का जीन है। इस प्रोटीन की भूमिका ट¬ूमर्स के दमन में है। कोई आश्चर्य नहीं कि इसका अध्ययन 8479 शोध पत्रों में किया गया है। पी-53 के बाद टीएनएफ प्रोटीन का जीन है, जो ट्युमर नेक्रोसिस कारक नामक अणु का कोड है। इस कारक की भूमिका ट्युमर कोशिकाओं को मारने में है। इसके बारे में 5314 शोध पत्रों में चर्चा की गई है। सूची में पांचवी पायदान पर एपीओई नामक जीन है जिसका ज़िक्र 3977 पर्चों में किया गया है। यह प्रोटीन एपीओई का कोड है जो अल्ज़ाइमर रोग के ज़ोखिम से जुड़ा है। इनके अध्ययन के पीछे यह उम्मीद है कि यदि हम बीमारी का आणविक आधार समझ लें तो इलाज के बेहतर तरीके तैयार कर सकेंगे जो आनुवंशिकी आधारित होंगे। ये 10 सबसे लोकप्रिय जीन्स किसी फैशन परेड या गिनीज़ बुक रिकार्ड के नहीं बल्कि चिकित्सा आनुवंशिकी के माध्यम से मानव पीड़ा को कम करने के प्रयासों के प्रतिबिंब है। (स्रोत फीचर्स)