आजकल चिकित्सा के क्षेत्र में पेसमेकर जैसे कई यंत्रों का उपयोग किया जाता है जो शरीर पर या शरीर के अंदर लगाए जाते हैं। एक समस्या यह होती है कि इन्हें लगातार विद्युत की ज़रूरत होती है। अब इलेक्ट्रिक ईल नामक मछली से प्रेरित एक लचीले और पारदर्शी ऊर्जा स्रोत का उपयोग ऐसे उपकरणों या कृत्रिम अंग को विद्युत सप्लाई करने के लिए किया जा सकेगा। नेचर पत्रिका में वर्णित प्रोटोटाइप के अनुसार, यह नमक और पानी के घोल से चलता है, लेकिन शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि भविष्य में इसे शरीर में ही उपस्थित द्रवों से चलाना संभव होगा।

एन आर्बर स्थित मिशिगन विश्वविद्यालय में रासायनिक इंजीनियर थॉमस श्रोडर के अनुसार उनके द्वारा विकसित कृत्रिम इलेक्ट्रिक अंग में कई विशेषताएं हैं जो परंपरागत बैटरी में नहीं होती हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि यह उतना ज़हरीला नहीं है। दूसरी कि यह इलेक्ट्रोलाइट घोल से चलता है जिनकी आपूर्ति आसानी से की जा सकती है।

श्रोडर और उनके सहयोगियों को जैव-अनकूल विद्युत स्रोत डिज़ाइन करने की प्रेरणा इलेक्ट्रिक ईल (Electrophorus electricus) से मिली, जो 600 वोल्ट के ज़ोरदार झटके से अपना बचाव करती है। यह ईल विशेष विद्युत-जनक कोशिकाओं (इलेक्ट्रोसाइट्स) का उपयोग करके बिजली के शक्तिशाली झटके पैदा करती है। ये इलेक्ट्रोसाइट्स शरीर में ऊपर से नीचे तक सभी अंगों में पाई जाती हैं। इन कोशिकाओं के अंदर विद्युत-विच्छेद पदार्थों (इलेक्ट्रोलाइट) की सांद्रता में अंतरों की वजह से आयनों का प्रवाह होता है जिसकी वजह से बिजली उत्पन्न होती है। हालांकि प्रत्येक कोशिका बहुत कम वोल्टेज पैदा करती है, लेकिन ईल में ये हज़ारों की संख्या में सिरीज़ में जुड़े होते हैं जिससे काफी उच्च वोल्टेज प्राप्त होता है।

श्रोडर की टीम ने इलेक्ट्रोसाइट्स की रचना की अनुकृति बनाने के लिए पॉलीएक्लामाइड और पानी से बने चार अलग-अलग हाइड्रोजेल्स का उपयोग किया और लगभग 2,500 ऐसी इकाइयों को एक साथ रखा। इस कृत्रिम व्यवस्था ने 110 वोल्ट का विभवांतर उत्पन्न किया। किंतु इसका कुल विद्युत उत्पादन ईल की तुलना में बहुत कम था क्योंकि ईल की कोशिकाएं पतली होती हैं और इस वजह से उनका प्रतिरोध कम होता है।
सिद्धांतत:, इस कृत्रिम बैटरी द्वारा उत्पन्न बिजली कार्डिएक पेसमेकर जैसे मौजूदा अत्यंत कम बिजली से चलने वाले उपकरणों को चलाने के लिए पर्याप्त है। अलबत्ता, शोधकर्ताओं का विचार है कि प्रणाली के प्रदर्शन को सुधारा जा सकता है। जैसे हाइड्रोजेल झिल्ली को पतला करके प्रतिरोध को कम किया जा सकता है।

ईल अपनी इलेक्ट्रोसाइट्स के बीच विद्युत-विच्छेद पदार्थ की सांद्रता में अंतर बनाए रखने के लिए चयापचय ऊर्जा का उपयोग करती है। श्रोडर की टीम अंतत: इसी क्षमता के उपयोग की व्यवस्था बनाना चाहती है। उनका कहना है कि यह अकल्पनीय नहीं है कि एक दिन हम ऐसा कृत्रिम विद्युत अंग बना लेंगे जो शरीर के विभिन्न तरल पदार्थों का उपयोग कर सकेगा। (स्रोत फीचर्स)