बचपन में चश्मे लगे बच्चों को चश्मिश और कंदील जैसे मज़ाक का सामना करना पड़ता है। लेकिन जल्द ही यह मज़ाक हम में से ज़्यादातर को सहना पड़ सकता है। ऑस्ट्रेलिया के ब्रायन हॉल्डेन विज़न इंस्टीट्यूट की नई रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक विश्व की लगभग आधी आबादी निकटदृष्टि से पीड़ित होगी जिसे लेंस से ठीक करने की ज़रुरत पड़ेगी। 2000 में विश्व की एक तिहाई आबादी इससे पीड़ित थी। निकटदृष्टि से आशय है कि व्यक्ति को समीप की वस्तुएं तो साफ दिखाई देती हैं मगर दूर की चीज़ें धुंधली दिखने लगती हैं।
आम तौर पर इस दृष्टिदोष की ज़िम्मेदारी कंप्यूटर स्क्रीन पर पढ़ने के मत्थे मढ़ी जाती है, लेकिन साक्ष्य इस परिकल्पना का समर्थन नहीं करते हैं। हाल ही में हुए अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि लोग, विशेष तौर पर बच्चे, बहुत कम समय घर से बाहर बिताते हैं। अध्ययन बताते हैं कि ज़्यादा लंबे समय तक सूरज की रोशनी में न रहना और घर में ज़्यादा समय बिताने का सम्बंध निकटदृष्टि से होता है।
बहरहाल, पहले किए गए अध्ययनों से पता चला था कि आनुवंशिकता भी इसमें कुछ भूमिका निभाती है। पहले यह माना जाता था कि निकटदृष्टि पूरी तरह आनुवंशिक है लेकिन वास्तव में यह एक सामाजिक रोग है। यह कहना है ऑस्ट्रेलिया नेशनल युनिवर्सिटी के नेत्र विज्ञान शोधकर्ता आयन मोर्गन का। हाल में हुए अध्ययनों से इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सका है कि जो बच्चे तीन साल तक प्रतिदिन 40 मिनट से ज़्यादा समय घर से बाहर यानी सूरज की रोशनी में बिताते हैं तो उनमें निकटदृष्टि होने की संभावना कम होती है। यह भी कहा जा रहा है कि ज़्यादा सकल घरेलू उत्पाद वाले देशों में निकटदृष्टि दोष ज़्यादा पाया जाता है। (स्रोत फीचर्स)