नरेन्द्र देवांगन


कई लोग प्राय: रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा नामक आनुवंशिक रोग से अथवा वृद्धावस्था में होनेे वाले मांसपेशीय विकार से अंधे हो जाते हैं। दरअसल जब प्रकाश पुतली में प्रवेश करता है तब आंख का लेंस इसे फोकस करता है। इसके बाद यह मध्य भाग में स्थित विट्रियस ह्यूमर नामक जेली से होता हुआ रेटिना तक पहुंचता है।
रेटिना पर यह प्रकाश कोेशिकाओं की पारदर्शी परत से होता हुआ संवेदनशील छड़ और शंकु (रॉड्स और कोन्स) कोशिकाओं तक पहुंचता है। छड़ तथा शंकु कोशिकाएं प्रकाश से उद्दीप्त होकर तंत्रिकाओं के माध्यम से विद्युत आवेगों को मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं। मस्तिष्क में स्थित कुछ विशेष केंद्रों में इन आवेगों के आधार पर उस वस्तु के रंग, गति और अन्य गुणों का बोध होता है। इसी के अनुरूप हमें वस्तु दिखाई देती है।
ऐसा माना जाता है कि मस्तिष्क तक विद्युत आवेग पहुंचाने वाली छड़ व शंकु कोशिकाओं में खराबी होने के कारण अंधापन होता है। इस दिशा में मैसाचुसेट्स के अनुसंधानकर्ताओं ने सराहनीय कार्य किया है। उन्होंने एक ऐसी माइक्रोचिप बनाई है जो छड़ व शंकु कोशिकाओं के बदले तंत्रिकाओं को स्वयं उद्दीप्त करेगी।

मार्च 1996 में अंधे खरगोशों पर प्रयोग में जब इस माइक्रोचिप को उद्दीप्त किया गया तो देखा गया कि गैंगलियॉन कोशिकाओं को संकेत मिलते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों ने मनुष्य में इसके इस्तेमाल पर शंका व्यक्त की थी।
अलबत्ता, मैसाचुसेट्स के वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत के फलस्वरूप, अब मनुष्यों के लिए विज़न चिप उपलब्ध है। इसमें एक सौर पैनल लगा हुआ है जिसका सम्बंध माइक्रो इलेक्ट्रोड्स से है। रेटिना की सतह पर स्थित गैंगलियॉन कोशिकाओं को माइक्रो इलेक्ट्रोड्स के संपर्क में लाते ही ये कोशिकाएं उद्दीप्त हो जाती हैं।
उल्लेखनीय है कि माइक्रो इलेक्ट्रोड जिन कोशिकाओं को छूते हैं, सिर्फ वे ही उद्दीप्त होती हैं। उद्दीप्त कोशिकाएं प्रकाश-तंत्रिका द्वारा सारे संकेत मस्तिष्क तक पहुंचाती हैं। सर्वप्रथम बनी चिप में मात्र 20 माइक्रो इलेक्ट्रोड लगे हैं। इन्हें अब 100 तक आसानी से बढ़ाया जा सकता है।
रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा से पीड़ित एक अंधे रोगी की आंख में विज़न चिप के सिर्फ एक इलेक्ट्रोड को डालने के पश्चात उसके दिमाग में स्पष्ट चित्र बनता पाया गया। उसने रंग के साथ-साथ चित्र की आकृति को बारीकी से परखा। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि अधिक इलेक्ट्रोड लगाने पर और भी अच्छे परिणाम मिलेंगे। इस दिशा में शोध जारी है।

देखने के लिए दो अलग-अलग चश्मों पर लगे कैमरों तथा कंप्यूटरों की मदद ली जाएगी। कंप्यूटर तस्वीर को अपने भीतर समा कर इसे लेसर किरणों में बदल देगा। लेसर किरणें विज़न चिप पर केंद्रित हो कर चित्र को विशेष अंक संकेतों में परिवर्तित करेंगी। विज़न चिप रेटिना के उसी भाग को उद्दीप्त करेगी जिसकी आवश्यकता होगी।
इस तरह का उपचार केवल जन्म के बाद अंधे होने वाले व्यक्तियों के लिए ही संभव है क्योंकि जन्मांध व्यक्तियों के मस्तिष्क में दृश्य प्रणाली विकसित नहीं हो सकती। नवजात अंधे शिशुओं में इस तकनीक का प्रयोग करना तो और भी कठिन है। बहरहाल, आज के इस अनुसंधान से करीब 20 करोड़ दृष्टि-बाधित लोगों को फायदा होेने का अनुमान है। (स्रोत फीचर्स)