प्रमोद भार्गव    

देश के महानगरों में तेज़ी से बढ़ते प्रदूषण से लोगों को भले ही स्वास्थ्य की दृष्टि से हानि उठानी पड़ रही हो, लेकिन कनाडा की एक कंपनी ने इससे भी चांदी काटने का ज़रिया ढूंढ लिया है। स्टार्टअप के रूप में शु डिग्री हुई वाइटेलिटी एयर कंपनी जल्दी ही भारत में बोतलबंद शुद्ध हवा बेचना शुरु करने वाली है। इस महीने के अंत में वह दिल्ली के बाज़ार में हवा की बोतलें उपलब्ध करा देगी। यह हवा 3 और 8 लीटर की बोतलों में उपलब्ध होगी। इनकी कीमत क्रमश: 1450 रुपए और 2800 रुपए होगी। बताया जा रहा है कि इस बोतल से एक सांस लेने की कीमत करीब 12.50 रुपए पड़ेगी।
व्यावसायिक बुद्धि और नवोन्मेष की ललक हो तो वाकपटु लोग गंजों को भी कंघी बेचने में कामयाब हो जाते हैं। कनाडा की कंपनी वाइटैलिटी एयर ने कुछ ऐसा ही अनूठा करिश्मा कर दिखाया है। कंपनी ने वनाच्छादित पहाड़ों और जंगलों की हवा को बोतलबंद पानी की तरह बेचने का धंधा शुरु किया है।
बोतलबंद हवा बेचने का यह अवसर दुनिया में बढ़ते वायु प्रदूषण ने दिया है। दूषित हवा से बेचैन और पीड़ित लोग इसे हाथों-हाथ खरीद रहे हैं। महानगरों में बढ़ते वायु प्रदूषण का कारण दूषित औद्योगिक कचरे और कारों से निकलते धुएं को माना जा रहा है। औद्योगिक घरानों के दबदबे के चलते औद्योगिक उत्पादन घटाना तो मुश्किल है, ऐसे में कारोबारियों को बोतलबंद हवा के रूप में नया सुरक्षा कवच मिल गया है। ज़ाहिर है, भारत समेत दुनिया के कई महानगरों में कारों पर नियंत्रण की जो मुहिम शुरु  हुई है, उसे धक्का लग सकता है। इसके उलट ये कारोबारी कार के साथ हवा की बोतलें बतौर उपहार देने का फंडा भी शुरु कर सकते हैं।

हवा में नाइट्रोजन 78 प्रतिशत और ऑक्सीजन 21 प्रतिशत होती है। इसके अलावा कार्बन डाईऑक्साइड 0.03 प्रतिशत और अन्य गैसें 0.97 प्रतिशत होती हैं। वैज्ञानिकों के आकलन के अनुसार पृथ्वी के वायुमंडल में करीब 6 लाख अरब टन हवा है। जीवनदायी तत्वों में से एक है हवा। कोई भी प्राणी भोजन और पानी के बिना तो कुछ समय तक जीवित रह सकता है, लेकिन हवा के बिना कुछ मिनट ही बमुश्किल जीवित रह सकता है। मनुष्य दिन भर में जो भी कुछ खाता-पीता है उसमें 75 फीसदी भाग हवा का होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य एक दिन में 22,000 बार सांस लेता है। इस तरह से वह प्रतिदिन 15 से 18 किलोग्राम यानी 35 गैलन हवा ग्रहण करता है। हवा दूषित हो तो मानव शरीर पर उसके दुष्प्रभाव पड़ना तय है।
राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मूल्यांकन कार्यक्रम के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल यह जानकारी देता है कि देश के किस शहर में वायु की शुद्धता अथवा प्रदूषण की स्थिति क्या है। इसके अंतर्गत कणीय पदार्थ का आकलन किया जाता है। प्रदूषित वायु में विलीन हो जाने वाले पदार्थ हैं, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड। प्रदूषण मंडल द्वारा तय मापदंडों के मुताबिक उस वायु को अधिकतम शुद्ध माना जाता है जिसमें प्रदूषकों का स्तर मानक मान के स्तर से 50 प्रतिशत कम हो। इस लिहाज़ से दिल्ली समेत भारत के जो अन्य शहर प्रदूषण की चपेट में हैं उनके वायुमंडल में सल्फर डाई ऑक्साइड का प्रदूषण कम हुआ है जबकि नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड का स्तर कुछ बढ़ा है। आजकल नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड देश के नगरों में वायु प्रदूषण का बड़ा कारक बन रही है।

प्रदूषण मंडल ने उन शहरों को अधिक प्रदूषित माना है जिनमें वायु प्रदूषण का स्तर निर्धारित मानक से डेढ़ गुना अधिक है। यदि प्रदूषण का स्तर मानक से डेढ़ गुना हो तो उसे उच्च प्रदूषण कहा जाता है। और यदि प्रदूषण मानक स्तर के 50 प्रतिशत से कम हो तो उसे निम्न स्तर का प्रदूषण कहा जाता है। वायुमंडल को प्रदूषित करने वाले कणीय पदार्थ कई पदार्थों के मिश्रण होते हैं। इनमें धातु, खनिज, धुएं, राख और धूल के कण शामिल होते हैं। इन कणों का आकार भिन्न-भिन्न होता है। इसीलिए इन्हें वगीकृत करके अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है।
पहली श्रेणी के कणीय पदार्थों को पीएम-10 कहते हैं। इन कणों का आकार 10 माइक्रान से कम होता है। दूसरी श्रेणी में पीएम-2.5 श्रेणी के कणीय पदार्थ आते हैं। इनका आकार 2.5 माइक्रान से कम होता है। ये कण शुष्क व द्रव दोनों रूपों में होते हैं। वायुमंडल में तैर रहे दोनों ही आकारों के कण मुंह और नाक के ज़रिए श्वास नली में आसानी से प्रविष्ट हो जाते हैं। ये फेफड़ों तथा हृदय को प्रभावित करके कई तरह के रोगों के जनक बन जाते हैं।
वैसे तो अमेरिका और मध्य पूर्व के कई देशों में हवा का कारोबार खूब कुलांचें मारने लगा है, लेकिन चीन के वायुमंडल में छाए वायु प्रदूषण से इसमें भारी उछाल आया है। हालत यह है कि चीन में लोग उपहार के तौर पर बोतलबंद हवा अपने रिश्तेदारों और मित्रों को देने लगे हैं।
प्रश्न है कि हवा का यह कारोबार भारत में कितना कारगर साबित होगा? उल्लेखनीय है कि विश्व आर्थिक मंच ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दुनिया के 20 प्रदूषित शहरों में 18 एशिया में हैं। इनमें भी 13 भारत में हैं। भारत में वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बढ़ते वाहन और उनका सह उत्पाद प्रदूषित धुंआ माना जा रहा है। हवा में घुलते इस ज़हर का असर केवल महानगरों में ही नहीं छोटे शहरों में भी प्रदूषण का सबब बन रहा है। यही कारण है कि दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, अमृतसर, इंदौर और अहमदाबाद जैसे शहरों में प्रदूषण खतरनाक स्तर को लांघने को तत्पर दिखाई दे रहा है।

केंद्रीय प्रदूषण मंडल देश के 121 शहरों में वायु प्रदूषण का आकलन करता है। इसकी एक रिपोर्ट के मुताबिक देवास, कोझिकोड एवं तिरूपति को अपवादस्वरूप छोड़ दें तो बाकी सभी शहरों में प्रदूषण एक बड़ी समस्या के रूप उभर रहा है। इसकी वजह तथाकथित वाहन क्रांति है। जिस गुजरात को हम आधुनिक विकास का मॉडल मानकर चल रहे हैं वहां भी प्रदूषण के हालात भयावह हैं। कुछ समय पहले टाइम पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के चार प्रमुख प्रदूषित शहरों में गुजरात का वापी भी शामिल है। यहां 400 किलोमीटर लंबी औद्योगिक पट्टी है। इन उद्योगों में कामगार और वापी के रहवासी कथित औद्योगिक विकास की बड़ी कीमत चुका रहे हैं। वापी के भूगर्भीय जल में पारे की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानक से 96 प्रतिशत ज़्यादा है। यहां की वायु में धातुओं के कण बड़ी संख्या में हैं जो फसलों पर कहर ढहा रहे हैं।
देश में फैल रही इस ज़हरीली हवा की पृष्ठभूमि में बोतलबंद हवा का कारोबार भारत में शुरु होने जा रहा है, उसका विस्तार दिन-दूना रात-चौगुना फैलने की उम्मीद है। लेकिन इससे शंका यह उभरती है कि हवा का कारोबार कहीं प्रदूषण मुक्ति के स्थायी समाधान के उपायों पर भारी न पड़ जाए। इस बोतलबंद हवा की जानकारी आने से पहले दिल्ली में बड़ी कारों के पंजीयन पर रोक और एक दिन सम और दूसरे दिन विषम संख्या की कारों को चलाने की व्यवस्था शुरु हुई है। हवा को स्वच्छ बनाए रखने के ये उपाय कारगर और बहुजन हितकारी हैं। लेकिन अब कार निर्माता कंपनियां बोतलबंद हवा के ज़रिए शुद्ध हवा का विकल्प उपहार में देकर सरकार के समक्ष नई कारों के पंजीयन से रोक हटाने का सुझाव रख सकती हैं। क्योंकि जब दिल्ली सरकार ने सम-विषम संख्या की कारें चलाने का फार्मूला पेश किया था तब ये कंपनियां इस फार्मूले को लागू करने के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय चली गई थीं। न्यायालय ने दलील दी थी कि आपको कारें बेचने की पड़ी है जबकि लोगों के प्राण जोखिम में हैं। वैसे भी बोतलबंद हवा वायु की शुद्धि का तात्कालिक व्यक्तिगत उपाय तो है लेकिन वायुमंडल से प्रदूषण मुक्ति का व्यापक एवं स्थायी हल कतई नहीं है।

वाइटैलिटी एयर कंपनी ने 2014 में प्रयोग के तौर पर हवा भरी थैलियां बेचने की शुरूआत की थी। उस वक्त किसी को अंदाज़ा नहीं था कि यह पहल भविष्य में वाणिज्यिक दृष्टि से कितनी महत्वपूर्ण होने जा रही है। कंपनी के संस्थापक मोसेज लेम का कहना है कि उनके द्वारा बाज़ार में लाई गई थैलियों की पहली खेप तुरंत बिक गई। इससे उनके हौसले को बल मिला और फिर इस कारोबार को फुलटाइम व्यवसाय में बदल दिया। कंपनी ने हाल ही में चीन में बोतलबंद हवा का व्यापार शुरु किया है। पहले दिन ही 500 बोतलें हाथो-हाथ बिक गईं और अब अमेरिका व मध्य पूर्व के देशों के बाद चीन बोतलबंद हवा का सबसे बड़ा खरीदार देश बन गया है। भारत में खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी इस ज़हरीली हवा के चलते कंपनी भारत में कारोबार करने जा रही है। कंपनी के संस्थापक लेम का कहना है कि 2015 की गर्मियों में कनाडा के कलागेरी नामक स्थान पर जंगल में आग लग गई थी, तब पूरे क्षेत्र में धुआं ही धुआं फैल गया था। लोगों को सांस लेना मुश्किल हो रहा था। तब उन्हें बोतलबंद हवा बाज़ार में उतारने का आइडिया मिला। भारत में इसी महीने यह कंपनी बाज़ार में शुद्ध हवा का कारोबार शु डिग्री करने जा रही है। यही वह समय है जब उत्तराखण्ड और हिमाचल प्रदेश के जंगल जल रहे हैं। जंगलों के जलने से उठा धुआं उत्तरी भारत में इस कारोबार को फलने-फूलने का उत्तम अवसर देगा। लेकिन कृत्रिम हवा की यह उपलब्धता यह आशंका भी उत्पन्न करती है कि कहीं भारत में वायु प्रदूषण से मुक्ति के जो उपाय हो रहे हैं उनको ठेंगा न लगा दे? क्योंकि बोतलबंद पानी आने के बाद जल स्रोतों का भी यही हश्र हुआ है। (स्रोत फीचर्स)