आम तौर पर माना जाता रहा है कि कॉर्निया के प्रत्यारोपण में जेंडर कोई बाधा नहीं है। मगर यू.के. में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि महिला को यदि किसी अन्य महिला का कॉर्निया लगाया जाए तो उसका शरीर उसे ज़्यादा आसानी से स्वीकार करता है।
यू.के. के 18,000 से ज़्यादा मरीज़ों के अध्ययन में पता चला है कि कॉर्निया का प्रत्यारोपण महिला में किया जाए तो उसके सफल होने की संभावना तब ज़्यादा होती है जब वह कॉर्निया किसी महिला से प्राप्त हुआ हो। इसके विपरीत पुरुषों में कॉर्निया प्रत्यारोपण की सफलता पर इस बात का कोई असर नहीं दिखा कि कॉर्निया स्त्री का था या पुरुष का। अमेरिकन जर्नल ऑफ ट्रांसप्लांटेशन में प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि फुक्स एंडोथीलियल रोग के मामले में महिलाओं में कॉर्निया प्रत्यारोपण तब 40 प्रतिशत कम असफल होता है जब कॉर्निया किसी महिला से प्राप्त किया गया हो। नेत्र रोग विशेषज्ञों ने इन परिणामों पर आश्चर्य व्यक्त किया है।

कॉर्निया आंख का आगे वाला पारदर्शी हिस्सा होता है। यही आंख को वक्रता प्रदान करता है और यहीं पर प्रकाश का सबसे अधिक अपवर्तन होता है अर्थात प्रकाश की किरणें मुड़ती हैं। कई कारणों से कॉर्निया क्षतिग्रस्त हो जाता है और इसकी वजह से अंधत्व तक पैदा हो सकता है। दुनिया भर में हर साल कॉर्निया के लाखों प्रत्यारोपण होते हैं। दरअसल जिसे नेत्रदान कहते हैं, उसमें कॉर्निया का ही उपयोग किया जाता है।
वैसे पहले किए गए अध्ययनों में कभी भी कॉर्निया के प्रत्यारोपण के मामलों में जेंडर की भूमिका नहीं देखी गई थी। जैसे, ऑस्ट्रेलिया की कॉर्निया प्रत्यारोपण एजेंसी के निदेशक केरिन विलियम्स का कहना है कि ऐसा कोई अंतर ऑस्ट्रेलिया में कभी नहीं देखा गया। उनको लगता है कि यू.के. में ऐसे नतीजों का एक कारण यह हो सकता है कि प्रत्यारोपण के लिए कॉर्निया की मैचिंग का उनका तरीका थोड़ा अलग है। वहां आम तौर पर मैचिंग के लिए ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन (एचएलए) की अनुकूलता देखी जाती है। एचएलए प्रोटीन्स ही शरीर को यह पहचानने में मदद करते हैं कि कौन-सी कोशिका अपनी हैं और कौन-सी पराई हैं। ऑस्ट्रेलिया में एचएलए मैचिंग नहीं की जाती। हो सकता है कि जेंडर का अंतर उन्हीं आबादियों में दिखता हो जिनका एचएलए मैचिंग करने के बाद प्रत्यारोपण किया जाता है। मगर उक्त अध्ययन के लेखक स्टीफन काये का कहना है कि उन्होंने जिन मरीज़ों का अध्ययन किया है, उनमें एचएलए मैचिंग नहीं किया गया था। उनके अनुसार सफलता की दर में अंतर अन्य कारणों से है जिनकी छानबीन ज़रूरी है।
वैसे इतना तो स्पष्ट है कि ठोस अंगों (जैसे हृदय, गुर्दे, फेफड़े वगैरह) के प्रत्यारोपण के मामलों में जेंडर का अंतर देखा गया है। कॉर्निया में भी यह फर्क होने का आशय यह है कि स्वास्थ्य के संदर्भ में इस बात पर ध्यान देने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)