तीन दशक पहले तक माना जाता था कि मुंह के बैक्टीरिया प्रतिरक्षा तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं। तीन दशकों तक चले एक अध्ययन के अनुसार जो बच्चे अपना अंगूठा चूसते या नाखून चबाते हैं उनमें बाद में एलर्जी कम विकसित होती है।
हालांकि इस अध्ययन का सुझाव यह नहीं है कि बच्चों में ऐसी आदतों को प्रोत्साहित किया जाए, शोधकर्ताओं का कहना है कि परिणामों से पता चला है कि यह आदत युवावस्था तक एलर्जी से लड़ने में मदद कर सकती है।
न्यूज़ीलैण्ड में ओटेगो विश्वविद्यालय में श्वसन महामारी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रॉबर्ट हानकॉक्स का कहना है कि कई माता-पिता यह आदत छुड़वाने की कोशिश करते हैं और हमारे पास पर्याप्त साक्ष्य नहीं है कि माता-पिता को बदलने की सलाह दी जाए। हम निश्चित रूप से नाखून कुतरने या अंगूठा चूसने को बढ़ावा नहीं देंगे, लेकिन यदि किसी बच्चे में ऐसी आदत है जिसे छुड़वाना मुश्किल हो, तो कम से कम आप इतनी तसल्ली रख सकते हैं कि शायद यह आदत उसमें एलर्जी के खतरे को कम करे।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1972 या 1973 में न्यूज़ीलैण्ड में जन्में 1000 बच्चों पर किए जा रहे एक अध्ययन की जानकारी का उपयोग किया। शोधकर्ताओं ने बच्चों के माता-पिता से उनकी इस आदत के बारे में चार बार पूछा: जब ये बच्चे 5, 7, 9 और 11 वर्ष के थे। शोधकर्ताओं ने उन्हीं बच्चों में एलर्जी का टेस्ट भी किया जब वे 13 वर्ष की आयु के थे और जब वे 32 वर्ष की उम्र के हुए।
इससे यह निष्कर्ष निकला कि जो बच्चे अंगूठा चूसते थे या नाखून कुतरते थे उनमें से 38 प्रतिशत बच्चों में किसी एक एलर्जी की शिकायत मिली जबकि अन्य बच्चों में से 49 प्रतिशत में।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जिन बच्चों में ये दोनों आदतें थीं उनमें युवा अवस्था तक एलर्जी की दिक्कत कम बनी रहती है। जिन बच्चों में दोनों आदतें थीं, उनमें 13 वर्ष की उम्र तक एलर्जी की संभावना बहुत कम होती है बजाय उनके जिनमें इनमें से कोई एक ही आदत होती है। और यह प्रतिभागियों की उम्र 32 साल होने तक नज़र आया।
यह अध्ययन पहले किए गए एक अध्ययन के परिणामों के अनुरूप ही है जिसमें देखा गया था कि जो मांएं अपने बच्चों की चूसनी को अपने मुंह से साफ करती हैं, उनमें एलर्जी की संभावना कम होती है। (स्रोत फीचर्स)