प्रयास ऊर्जा समूह

यह आलेख प्रयास (ऊर्जा समूह) और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च द्वारा तैयार किया गया है।
घरों में बिजली का सबसे बुनियादी उपयोग प्रकाश के लिए किया जाता है। अनुमान है कि कुल आवासीय बिजली की खपत में प्रकाश का हिस्सा 18 से 27 प्रतिशत के बीच होता है। 2013 में, भारत में लगभग डेढ़ अरब प्रकाश उपकरण बेचे गए; उनमें से आधे तो फिलामेंट बल्ब थे जबकि सीएफएल (31 प्रतिशत) और ट्यूब-लाइट (16 प्रतिशत) और एलईडी बल्ब का हिस्सा नगण्य था। 2014 में, सरकार ने घरों में एलईडी बल्ब को बढ़ावा देने के लिए एक कार्यक्रम शुरू किया था और बाद में इसे ‘उजाला’ (उन्नत ज्योति बाय अफोर्डेबल एलईडी फॉर ऑल यानी सभी के लिए किफायती एलईडी द्वारा उन्नत ज्योति) का नाम दिया गया।

उन्नत ज्योति इसलिए कहा गया क्योंकि एलईडी बल्ब कम बिजली खर्च करते हैं, लंबे समय तक चलते हैं और इनमें पारे का उपयोग नहीं होता है। संभवत: दुनिया में अपनी तरह के इस सबसे बड़े कार्यक्रम के ज़रिए, 27 करोड़ से अधिक एलईडी बल्ब बिना सरकारी सब्सिडी के बेचे गए। तो इस कार्यक्रम ने भारत के प्रकाश उद्योग और उपभोक्ता व्यवहार को किस तरह बदला है? कार्यक्रम डिज़ाइन के कौन-से हिस्से उपयोगी रहे और कहां सुधार किया जा सकता है? इन सवालों के जवाब के माध्यम से भारत में ऊर्जा दक्षता में सुधार के लिए डिज़ाइन किए गए भविष्य के कार्यक्रमों में सुधार किए जा सकते हैं। इस आलेख में, हमने अपनी हाल की रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों पर चर्चा की है जहां हमने ‘उजाला’ कार्यक्रम के प्रभाव को समझने के लिए निर्माताओं, खुदरा विक्रेताओं, परिवारों और विभिन्न हितधारकों का सर्वेक्षण किया है।

अभिनव कार्यक्रम
उजाला कार्यक्रम को लागू करने की ज़िम्मेदारी सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी ऊर्जा दक्षता सेवा लिमिटेड (ईईएसएल) को दी गई थी। कंपनी ने प्रतिस्पर्धी बोली के कई चक्रों के माध्यम से निर्माताओं से थोक में एलईडी बल्ब खरीदे। बड़ी मात्रा और बिक्री के आश्वासन के चलते बल्ब निर्माताओं को प्रोत्साहन मिला जिससे पहले चक्र में जो बोली 310 रुपए प्रति एलईडी बल्ब थी वह अगले चक्रों में कम होते-होते 38 रुपए प्रति एलईडी बल्ब तक आ पहुंची। ईईएसएल ने ये बल्ब स्थानीय बिजली वितरण कंपनियों (डिसकॉम) के साथ समन्वय से अनुबंधित विक्रेताओं के माध्यम से सीधेे उपभोक्ताओं को बेचे। इस तरह से, खुदरा आपूर्तिशृंखला को दरकिनार करके अंतिम वितरण मूल्य को और नीचे लाया गया। नतीजतन, उजाला के तहत एलईडी बल्ब की वर्तमान कीमत 70 रुपए है, जो दुकानों में उपलब्ध एलईडी बल्ब की कीमत से लगभग आधी है। और सरकार या डिसकॉम द्वारा इसमें कोई सब्सिडी नहीं दी गई है। सार्वजनिक जागरूकता पैदा करने के लिए ईईएसएल ने अभिनव विपणन अभियान भी आयोजित किए।

बिक्री अधिक, कीमतें कम
उजाला कार्यक्रम ने भारत में एलईडी प्रकाश उपकरण उद्योग को बदल डाला है। 2014 के बाद से तीन वर्षों में एलईडी बल्ब की मांग 50 गुना बढ़ी है, जबकि खुदरा बाज़ार मूल्य (उजाला कार्यक्रम के अलावा) एक तिहाई रह गया है। एलईडी की कीमतों में कमी का वैश्विक रुझान तो है ही, साथ में उजाला कार्यक्रम के तहत पैदा की गई मांग के कारण भी कीमतों में गिरावट आई है। भारत की एलईडी बल्ब उत्पादन क्षमता भी काफी बढ़ गई है। आज देश में लगभग 176 पंजीकृत उत्पादन इकाइयां मौजूद हैं।

हमारा सर्वेक्षण बताता है कि उजाला कार्यक्रम का लाभ लेने वाले घरों में एलईडी बल्ब अब प्रकाश का एक प्रमुख स्रोत है। अधिकांश परिवारों ने यह भी कहा कि जब अभी लगा हुआ एलईडी बल्ब खराब हो जाएगा तो वे बाज़ार से नया एलईडी बल्ब खरीद लेंगे।

फिलामेंट बल्ब हटा नहीं है
एलईडी बल्ब की बढ़ती मांग ने फिलामेंट बल्ब की बजाय सीएफएल की मांग का स्थान लिया है। 2016 में लगभग 81 करोड़ फिलामेंट बल्ब बेचे गए, अर्थात पिछले वर्ष की तुलना में इनकी बिक्री में 5 प्रतिशत की गिरावट आई जबकि 2013 की सर्वोच्च बिक्री के बाद से सीएफएल की बिक्री में एक तिहाई की गिरावट आई। हमारा सर्वेक्षण इस प्रवृत्ति की पुष्टि करता है क्योंकि हमने यह देखा कि उजाला एलईडी बल्ब की एक बड़ी संख्या की खरीदी सीएफएल की जगह उपयोग करने के लिए की गई, इसके बाद उन्होंने फिलामेंट बल्ब और ट्यूब लाइट्स को हटाया।
जब लोग सीएफएल को एलईडी से बदलेंगे, तो वास्तव में उतनी अधिक बचत नहीं कर पाएंगे। पुणे में परिवारों के हमारे नमूने में विभिन्न आय वर्गों के परिवार थे। किसी उच्च आय वाले घर की तुलना में कम आमदनी वाले घर में एक औसत एलईडी बल्ब ने 2.5 गुना अधिक बचत प्रदान की। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि कार्यक्रम को कम आय वाले परिवारों पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

गुणवत्ता और वारंटी महत्वपूर्ण है
सर्वेक्षण में देखा गया कि पुणे में 2 प्रतिशत एलईडी बल्ब कार्यक्रम शुरू होने के एक साल के अंदर बेकार हो चुके थे, जबकि शुरुआत के तीन साल बाद पुडुचेरी में 14 प्रतिशत एलईडी बल्ब बेकार हुए। पुणे में बेचे जाने वाले बल्बों में 3 साल की वारंटी थी, जबकि पुडुचेरी में बेचे गए बल्बों की 8 साल की वारंटी थी। अलबत्ता, बहुत कम परिवारों ने अपने बेकार बल्बों की जगह नए बल्ब लगाए। वारंटी के तहत दोषपूर्ण बल्बों को न बदल पाने के निम्नलिखित कारण सामने आए: सरकारी कार्यक्रम से कम अपेक्षाएं, सस्ते एलईडी बल्बों में दोष को स्वीकार करने की अधिक तैयारी, वारंटी के बारे में अज्ञानता और बदलने की प्रक्रिया में परेशानियां।

निष्कर्ष के तौर पर, उजाला ने भारत में सब्सिडी-रहित, थोक खरीद मॉडल का उपयोग करके एलईडी बल्ब के लिए एक बड़ा और टिकाऊ बाज़ार तैयार किया है। एलईडी बल्ब की मांग में कई गुना वृद्धि हुई है और खुदरा बाज़ार मूल्य (उजाला कार्यक्रम के अलावा बेचे गए एलईडी बल्बों) एक तिहाई गिरा है। इसमें एलईडी बल्ब के बारे में एक महत्वपूर्ण जागरूकता भी पैदा हुई है, जिसने बढ़ती मांग में योगदान दिया है। आगे बढ़कर, ईईएसएल कार्यक्रम की सख्त निगरानी और मूल्यांकन सुनिश्चित करने की व्यवस्था बना सकता है। इसके अलावा, कार्यक्रम में कम आय वाले घरों और छोटे वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है जो अभी भी फिलामेंट बल्ब खरीद रहे हैं। (स्रोत फीचर्स)