यह देखा गया है कि लोगों को यदि कुछ कार्ड दिए जाएं जिन पर विभिन्न संख्याएं लिखी हों, और कहा जाए कि वे उन्हें एक लाइन में जमा दें, तो काफी संभावना रहती है कि वे उन्हें बाएं से दाएं बढ़तेे क्रम में जमा देंगे। अर्थात सबसे छोटी संख्या बाएं छोर पर रहेगी और सबसे बड़ी संख्या दाएं छोर पर। हां, यदि व्यक्ति जो भाषा बोलता है वह दाएं से बाएं पढ़ी जाती है, तो बात अलग है। दुनिया की अधिकांश भाषाएं बाएं से दाएं पढ़ी जाती हैं (हिब्राू और अरबी जैसे अपवादों को छोड़कर)।

क्या संख्याओं को बाएं से दाएं बढ़ते क्रम में जमाना एक कुदरती रुझान है या हम इसे सीखते हैं? एक ताज़ा अध्ययन बताता है कि नवजात शिशुओं में ‘कम’ और ‘ज़्यादा’ की समझ होती है और वे इन्हें ‘बाएं’ और ‘दाएं’ से जोड़कर देखते हैं। यह अध्ययन पेरिस देकार्ते विश्वविद्यालय की मनोवैज्ञानिक मारिया डोलोरस ने 80 नवजात शिशुओं पर किया जिनकी औसत उम्र 45 घंटे थी। कल्पना कीजिए कि इस प्रयोग में यह जानने की कोशिश की गई कि 2 दिन के बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है।

शोधकर्ताओं ने इसके लिए कुछ दृश्य-श्रव्य परीक्षण विकसित किए। बच्चों को ‘टा’ या ‘बा’ जैसे शब्द कई बार सुनाए गए। कुछ बच्चों को 6 बार तो शेष बच्चों को 18 बार। शोधकर्ताओं ने पुनरावृत्ति की संख्या को ‘कम’ और ‘ज़्यादा’ से जोड़कर देखा था। ये आवाज़ें सुनाने के बाद उन्हीं शिशुओं को एक कंप्यूटर के पर्दे पर अलग-अलग साइज़ के आयत दिखाए गए। जिन बच्चों ने 6 बार आवाज़ सुनी थी उन्हें छोटा आयत दिखाया गया और 18 आवाज़ सुनने वाले बच्चों को बड़ा आयत दिखाया गया।

इसके कुछ मिनट बाद यह प्रयोग फिर से दोहराया गया। जिन बच्चों को पहली बार में 6 आवाज़ें सुनाई गई थीं उन्हें इस बार 18 आवाज़ें सुनाई गर्इं इसके साथ ही उन्हें दो विकल्प दिए गए। उन्हें एक विभाजित पर्दे पर दाईं तथा बाईं ओर बड़े चतुर्भुज दिखाए गए। शोधकर्ता यह देखना चाहते थे कि बच्चे किस चतुर्भुज को ज़्यादा देर तक देखते हैं। मान्यता यह थी कि यदि बच्चे दाएं वाले चतुर्भुज को ज़्यादा देर तक निहारते हैं तो इसका मतलब यह होगा कि वे ‘ज़्यादा’ (दूसरे प्रयोग में सुनी गई 18 आवाज़ों) का सम्बंध ‘दाएं’ से जोड़ते हैं। इसके विपरीत 18 आवाज़ वालों को 6 ही आवाज़ें सुनाई गर्इं। और उन्हें छोटे वाले आयत दिखाए गए। उम्मीद थी कि वे ‘कम’ का सम्बंध ‘बाएं’ से जोड़ेंगे और उसे ज़्यादा देखेंगे।

और ठीक ऐसा ही हुआ। जिन बच्चों ने पहले 6 और उसके बाद 18 आवाज़ें सुनी थीं, उन्होंने अधिकांशत: दाएं वाले आयत को ज़्यादा देर तक देखा। यह प्रयोग कई बार दोहराया गया और परिणाम हर बार ऐसे ही रहे। करंट बायोलॉजी में प्रकाशित इस शोध पत्र से लगता है कि संख्याबोध काफी कम उम्र में ही हासिल हो जाता है या शायद यह जन्मजात ही होता है। यदि यह जन्मजात होता है तो उन बच्चों पर प्रयोग करने पर भी ऐसे ही परिणाम मिलने चाहिए जिनके माता-पिता दाएं-से-बाएं वाली भाषा का उपयोग करते हैं। (स्रोत फीचर्स)