जर्मनी में एक 27 वर्षीय अध्ययन से पता चला है कि कीट बायोमास में लगभग 75 प्रतिशत की कमी आई है। यह जानकारी किसी कृषि क्षेत्र से नहीं बल्कि प्रकृति संरक्षण क्षेत्रों से मिली है जो जैव विविधता के संरक्षण के लिए ही तैयार किए गए हैं। बायोमास से तात्पर्य यह होता है कि उस जीव में उपस्थित कुल पदार्थ। जब कीट बायोमास की बात होती है तो कीटों की संख्या या प्रकार नहीं बल्कि सारे कीटों के कुल पदार्थ की बात होती है।
रैडबाउंड विश्वविद्यालय के डी क्रून और कैस्पर हालमैन ने अपने अध्ययन के लिए जर्मनी के क्रेफेल्ड कीट वैज्ञानिक सोसायटी के साथ सहयोग किया। क्रेफेल्ड की यह टीम पिछले दो दशकों से अधिक समय से संरक्षित क्षेत्रों में कीट बायोमास डैटा जमा कर रही है।

इसके लिए क्रेफेल्ड टीम ने 1989 से लेकर 2016 तक 63 विभिन्न प्राकृतिक स्थानों पर कीट आकर्षित करने के लिए जाल तैयार किए। टीम ने विभिन्न ऋतुओं और कुछ वर्षों के अंतर में 37 स्थानों से एक बार और 26 स्थानों से दो बार नमूने जमा किए। इन वर्षों के आंकड़ों से पता चल रहा था कि कीटों की आबादी में 80 प्रतिशत की गिरावट आई है। इसलिए शोधकर्ताओं ने कुछ स्थानों से पुन: नमूने लिए ताकि गलती की कोई गुंजाइश न रहे।
किंतु गिरावट का रुझान जारी रहा और 27 वर्षों में कीट संख्या में लगभग 82 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है। कीट इस पृथ्वी पर करोड़ों वर्षों से मौजूद हैं और उनकी संख्या में कमी आना खतरे की निशानी है। इससे अंदेशा होता है कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र में कहीं न कहीं असंतुलन है।   

शोधकर्ताओं के अनुसार इस कमी की व्याख्या केवल जलवायु परिवर्तन के आधार पर नहीं की जा सकती है। इसके पीछे कई अन्य कारण मौजूद हैं, जैसे खेती में कीटनाशकों का उपयोग, पर्यावरणीय क्षति, और मानव द्वारा अधिक से अधिक ज़मीन का उपयोग। शोधकर्ता अब और गहराई से ऐसी प्रजातियों के विशेष समूह पर अध्ययन कर रहे हैं जो परागण, पोषण चक्र और कीटभक्षी पक्षियों को प्रभावित करते हैं।
यह अध्ययन एक क्षेत्र में किया गया है। इसके ज़रिए काफी अधिक जानकारी भी प्राप्त हुई है लेकिन इस अध्ययन को पूर्णत: पक्का नहीं माना जा सकता है। इसको एक अटकल के रूप में माना जाए तो बेहतर है। इस पर और अधिक अध्ययन करने के लिए जंगलों और नमभूमि क्षेत्रों में भी काम करना होगा जो कीट आबादी के लिए सबसे अधिक उत्पादक क्षेत्र हैं। (स्रोत फीचर्स)