डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

19वीं सदी में मनुष्य की औसत आयु लगभग 31 वर्ष थी और आज यह 68 है।


एक औसत मनुष्य कितनी उम्र जीता है? 1900 में दुनिया भर में मनुष्य की औसत आयु लगभग 31 वर्ष थी जबकि आज यह 68 वर्ष है। यह इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि जानलेवा संक्रमणों पर दवाइयों के ज़रिए जीत हासिल की जा सकी है जो पहले संभव नहीं था। हमारी औसत आयु को बढ़ाने में स्वास्थ्य के तौर-तरीकों ने मदद की है। संपूर्ण पोषण, व्यायाम और अच्छी आदतें (आप की मर्ज़ी से परिभाषित) इसकी वजह हैं। इस संदर्भ में आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक दवाइयां और टॉनिक जैसे कुछ शास्त्रोक्त तरीके हैं। इनमें से प्रत्येक के बारे में हम जितना ज़्यादा सीखते हैं उतना ही यह समझ में आता है कि वे कैसे शरीर को तंदुरुस्त बनाए रखने में मददगार (या बाधक) होते हैं।
उम्र के अनुसार शरीर कमतर कार्यकुशल होता जाता है। बुढ़ापा आने लगता है और हम इससे लड़ने के तरीके खोजने लगते हैं। किसी बूढ़े शरीर की तुलना में जवान शरीर सामान्यत: ज़्यादा तंदुरुस्त होता है। इसी संदर्भ में हिन्दू पौराणिक कथाओं का मार्कंडेय ग्रीक पौराणिक कथाओं के टाइथोनस से आगे निकल जाता है। मार्कंडेय हमेशा सोलह साल का बना रहना चाहता था जबकि टाइथोनस को मात्र अनंत जीवन मिला था, अनंत यौवन नहीं। मार्कंडेय ने जान लिया था कि युवा शरीर ज़्यादा तंदुरुस्त होता है।

क्या होता है जब हमारी उम्र बढ़ती है? शरीर के कई हिस्से होते हैं जो एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं और एक-दूसरे के साथ अंतर्सम्बंध बनाते हैं। यदि उनमें से एक कमज़ोर पड़ता है तो यह कमज़ोरी दूसरे अंगों में भी झलकती है और इस प्रकार हमारा पूरा शरीर कमज़ोर होता जाता है। हम शरीर-रचना और शरीरक्रिया-विज्ञान को जितना ज़्यादा समझते जाते हैं उतनी ज़्यादा अच्छी तरह हम पूरे शरीर को तंदुरुस्त और कामकाजी बनाए रख सकते हैं। उदाहरण के लिए शकर का अत्यधिक सेवन रक्त, गुर्दे, तंत्रिकाओं और आंखों की क्रिया को प्रभावित करता है। धुम्रपान से फेफड़े और शरीर के अन्य हिस्से प्रभावित होते हैं। अत्यधिक भोजन और कम व्यायाम शरीर को आलसी और अकार्यक्षम बनाता है। एक घटक या शरीर के एक हिस्से में अक्षमता हमारे पूरे स्वास्थ को प्रभावित करती है। यदि हमारा हृदय कुशलता से रक्त पंप नहीं करता तो यह हमारे पूरे मेटाबॉलिज़्म को प्रभावित करता है। हृदय रोग विशेषज्ञ इस पंप को ठीक करने का प्रयास करते हैं और अक्सर कामयाब रहते हैं। ऐसा करने के लिए वे स्टेंट लगाते हैं ताकि रक्त प्रवाह बहाल हो सके। यहां तक कि वे खराब हो चुके हृदय को हटा कर एक कामकाजी हृदय का प्रत्यारोपण भी कर सकते हैं।

कोशिकाओं (जैसे रक्ताधान में), ऊतकों (आंखों के कॉर्निया) या यहां तक कि शरीर के पूरे अंग (हृदय, गुर्दे) का प्रत्यारोपण अंगों की मरम्मत करने के आम तरीके बन गए हैं। आज कोशिका विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति के चलते शोधकर्ता शरीर के घटकों - जैसे कोशिकाएं, ऊतक और अंगों - के निर्माण की कोशिशें कर रहे हैं। स्टेम कोशिका आधारित तरीके से विभिन्न प्रकार की कोशिकाएं प्रयोगशालाओं में बनाई जा सकती हैं और बनाई जा रही हैं हालांकि अभी तक ऊतक नहीं बनाए जा सके हैं। लेकिन वह दिन दूर नहीं जब ऊतक और सामान्य अंग भी उपलब्ध होंगे। इसके लिए जीव वैज्ञानिकों को इंजीनियर्स और डिज़ाइनर्स के साथ मिलकर काम करना होगा। उदाहरण के लिए, हमारे रक्षा क्षेत्र ने डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नेतृत्व मेंे रक्त वाहिकाओं में डाले जाने वाले धातु के स्टेंट बनाए और पोलियो रोगियों के लिए पैरों की हड्डियों की जगह इस्तेमाल होने वाले हल्के वज़न की मिश्र धातु बनाई। ऐसे कार्यों में जैविक सामग्री के इस्तेमाल के करीब पहुंचते हुए यूएस के एक समूह ने 20 साल पहले एक मानव मूत्राशय बनाकर एक युवक के शरीर में प्रविष्ट कराया। वह अच्छी तरह काम भी कर रहा है। इसी तरह मानव कान की बायोइंजीनियरिंग भी अपनी राह पर है। आईआईटी हैदराबाद और एल.वी. प्रसाद आई इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के बीच सहयोग से आंखों के कॉर्निया के बायोपिं्रटिंग के प्रयास जारी हैं। इसके तहत वास्तविक कोशिकाओं की परत-दर-परत जमाकर कॉर्निया पिं्रट करने का लक्ष्य है (कुछ हद तक इंकजेट पिं्रटर के समान)। एक नया लक्ष्य जैव-संश्लेषित अंग का पुनर्जनन है।

इसी तरह का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य एकदम नए सिरे से शु डिग्री करके एक पूरी मानव आंख बनाने का है। शोधकर्ता कहते हैं कि यदि छिपकली अपनी कटी पूंछ या सेलेमैंडर अपनी आंख को दोबारा उगा सकते हैं, तो क्यों हम अपने अंदर छुपे सेलेमैंडर को जगा नहीं सकते? उनका मतलब यह है कि इस उभयचर जंतु में देखें कि कैसे उसके जीन्स उसकी आंखों का निर्माण करते हैं और फिर हम अपने समकक्ष जीन्स से यही करवाने का प्रयास कर सकते हैं। जैव-चिकित्सा विज्ञान ने उस युग का रुख कर लिया है जहां खराब या नाकाम हो चुके शारीरिक अंगों को प्रयोगशाला में बनाकर प्रत्यारोपित किया जा सकेगा। यह कैलिफोर्निया के डॉ. ऑबरे डी ग्रे का एक साहसिक लक्ष्य है। उन्होंने बुढ़ाने की क्रिया से लड़ने हेतु च्कग़्च् की स्थापना की है। उनका कहना है कि 150 साल जीने वाला व्यक्ति हमारे साथ है और कौन जाने हम जल्द ही 1000 से ज़्यादा सालों तक जीवित रह सकेंगे।

मुझे याद है, 1970 के दशक में मेरे पास एक फोर्ड प्रीफेक्ट कार थी। पहले हमने उसके टायर बदले, फिर कार्बुरेटर, फिर इंजिन को बदला और वॉल्व, वायपर्स बदले। इसके बाद कार का रंग-रोगन करवाया और कानपुर छोड़ने से पहले उसे बेच दिया। जनरल मैकआर्थर कहते थे कि सैनिक कभी नहीं मरते, वे सिर्फ ओझल हो जाते हैं। डॉ. ऑबरे डी ग्रे का कहना है कि पुराने शरीर शायद कभी न मरें, उन्हें तो बस दुरुस्त किया जाएगा। (स्रोत फीचर्स)