हमारे पैरों तले की ज़मीन के नीचे पिघले लोहे की एक नदी बह रही है। यह लोहा लगभग सूरज की सतह के तापमान जितना गर्म है। और तो और, यह धारा रफ्तार पकड़ती जा रही है।
तरल पदार्थ की इस धारा की खोज युरोपीय एजेंसी द्वारा वर्ष 2013 में प्रक्षेपित तीन उपग्रहों के एक साथ उपयोग से संभव हुई थी। इन तीन उपग्रहों की तिकड़ी को स्वार्म कहते हैं। इन तीन उपग्रहों की खासियत यह है कि ये अंतरिक्ष से पृथ्वी की सतह से 3000 किलोमीटर की गहराई में हो रही चुंबकीय उथल-पुथल को भांप और माप सकते हैं। यह वह स्थान है जहां पृथ्वी का पिघला हुआ कोर केंद्र में उपस्थित ठोस मैंटल के संपर्क में है।
एक साथ तीन उपग्रहों की उपस्थिति का फायदा यह था कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में अन्यत्र हो रहे परिवर्तनों को अलग करके देखा जा सकता था कि कोर-मैंटल की संपर्क सतह पर क्या चल रहा है। यह तो जानी-मानी बात है कि पृथ्वी का चुंबकत्व बाहरी कोर में पिघले हुए लोहे की गति के कारण पैदा होता है। इसका मतलब है कि चुंबकत्व के अवलोकन व मापन की मदद से हमें पता चल सकता है कि इस हिस्से में तरल पदार्थ की गति किस तरह की है।
उपग्रह तिकड़ी स्वार्म ने उजागर किया है कि पिघले हुए लोहे की लगभग 420 किलोमीटर चौड़ी पट्टी तेज़ी से साइबेरिया के नीचे बह रही है और युरोप की ओर जा रही है। धीरे-धीरे इसकी रफ्तार तेज़ हुई है और फिलहाल यह 40-45 किलोमीटर प्रति वर्ष की गति से आगे बढ़ रही है। यह उस गहराई पर होने वाले आम प्रवाह की गति से तीन गुना ज़्यादा है।
गौरतलब है कि पृथ्वी का चुंबकत्व बदलता रहता है और कभी-कभी चुंबकीय ध्रुवों की अदला-बदली भी हो जाती है। ऐसा क्यों होता है इसे समझने के लिए द्रवित कोर में प्रवाह को समझना ज़रूरी है। दूसरी ओर, पृथ्वी के चुंबकत्व की बारीकियों को समझकर हम उसकी अंदरुनी संरचना के बारे में काफी कुछ समझ सकते हैं। ऐसा माना जा रहा है कि उपग्रह तिकड़ी स्वार्म द्वारा की गई यह खोज हमें एक कदम आगे ले जाएगी। (स्रोत फीचर्स)