एडिनबरा विश्वविद्यालय के मार्क वुडहाउस का कहना है कि जल्दी ही हम एक ऐसे मुकाम पर पहुंचने वाले हैं जहां मनुष्यों की बनिस्बत जानवर ज़्यादा एंटीबायोटिक दवाइयों का सेवन करेंगे। यदि ऐसा हुआ तो मनुष्यों का स्वास्थ्य खतरे में होगा।
कई विशेषज्ञों का मत है कि तमाम रोगजनक बैक्टीरिया तेज़ी से एंटीबायोटिक दवाइयों के प्रतिरोधी होते जा रहे हैं। एंटीबायोटिक औषधियों का अंधाधुंध उपयोग इसके लिए ज़िम्मेदार है। एंटीबायोटिक का एक प्रमुख उपयोग जानवरों में वृद्धि को बढ़ाने के लिए किया जाता है। पहले ऐसा माना जाता था कि यह प्रतिरोध उत्पन्न करने में कोई योगदान नहीं देता। किंतु अब लग रहा है कि जानवरों के लिए एंटीबायेटिक का इस्तेमाल प्रतिरोध की समस्या में प्रमुख योगदान देता है।

मसलन, कोलिस्टिन नामक एक औषधि का उपयोग मनुष्यों में बहुत कम होता है मगर पशुओं में बहुतायत से होता है। 2015 में कोलिस्टिन के प्रतिरोधी बैक्टीरिया की खोज हुई थी और अब ऐसे बैक्टीरिया दुनिया भर में मौजूद हैं। युरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी का मत है कि यह प्रतिरोध पशुओं में पैदा होकर फैला है। संक्रामक रोगों से लड़ने के लिए कोलिस्टिन को एक प्रमुख औषधि माना जा रहा था।
एंटीबायोटिक प्रतिरोध की समस्या की विकरालता को देखते हुए राष्ट्र संघ की आम सभा ने देशों से अपील की है कि वे अपने यहां इन दवाइयों का सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित करने हेतु कदम उठाएं। वैसे राष्ट्र संघ की इस अपील में ऐसे कदमों को स्पष्ट रूप से निरूपित नहीं किया है किंतु ऐसा एक कदम यह होगा कि पशु शालाओं में इन दवाइयों का उपयोग रोका जाए।
वैसे तो विश्व खाद्य संगठन ने भी पशुओं में एंटीबायोटिक के उपयोग को रोकने की सिफारिश की है मगर दिक्कत यह है कि इनका कोई विकल्प भी नज़र नहीं आता। खास तौर से विकासशील देशों में पशुओं को स्वस्थ रखने व उत्पादन बढ़ाने के लिए इनका उपयोग बढ़ता जा रहा है। य़ुरोपियन मेडिसिन्स एजेंसी के मुताबिक युरोपीय संघ के देश तो पशु शालाओं में एंटीबायोटिक उपयोग में 25 गुना कमी तो आसानी से कर सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)