दूध के दांतों से प्राप्त की गई स्टेम कोशिकाओं से तंत्रिका कोशिकाओं का एक जाल बनाया गया है जो मस्तिष्क को समझने में मदद करेगा। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के  एलायसन मुओर्टी और उनके साथियों ने दूध के दांतों से ली गई स्टेम कोशिकाओं को कुछ वृद्धि कारकों के संपर्क में रखा तो वे नन्हे मस्तिष्क के रूप में विकसित हो गईं। अंतत: इनमें सेरेब्रल कॉर्टेक्स (मस्तिष्क की बाहरी सतह) की कम से कम 6 परतें बनीं।
सेरेब्रल कॉर्टेक्स वह हिस्सा है जो मनुष्यों में काफी उन्नत होता है और इसमें वे तंत्रिका परिपथ होते हैं जो जटिल विचारों तथा सामाजिक व्यवहार का नियंत्रण करते हैं। इनमें अन्य लोगों के साथ व्यवहार भी शामिल है।
मुओर्टी की टीम द्वारा बनाए गए ऐसे नन्हे मस्तिष्कों का आकार लगभग 5 मिलीमीटर है। ये उतने विकसित तो नहीं हैं जितना मनुष्य का मस्तिष्क होता है किंतु भ्रूणावस्था के मस्तिष्क जैसे तो हैं। मुओर्टी और उनके साथियों ने इन मस्तिष्कों की मदद से यह समझने की कोशिश की कि दिमाग का विकास सामाजिक व्यवहार पर कैसे असर डालता है। इसके लिए उन्होंने ऑटिज़्म और रेट सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के दूध के दांत की स्टेम कोशिकाएं प्राप्त कीं। ये दोनों ही संप्रेषण के हुनर में गड़बड़ी से सम्बंधित हैं। शोधकर्ताओं ने विलियम सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों की स्टेम कोशिकाओं से भी ऐसे नन्हे मस्तिष्क विकसित किए। विलियम सिंड्रोम में व्यक्ति अति-सामाजिक प्रकृति का हो जाता है।

टीम ने पाया कि ऑटिज़्म से पीड़ित बच्चों की स्टेम कोशिकाओं से विकसित नन्हे मस्तिष्क में तंत्रिका कनेक्शन्स की संख्या कहीं कम थी बनिस्बत विलियम सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के, जिनमें असामान्य रूप से ज़्यादा कनेक्शन्स देखे गए। इन दोनों तकलीफों से मुक्त बच्चों की स्टेम कोशिकाओं से निर्मित मस्तिष्कों में तंत्रिका कनेक्शन्स की संख्या इन दो के बीच पाई गई।
जब मुओर्टी के दल ने मृत व्यक्तियों से दान में प्राप्त मस्तिष्क का अध्ययन किया तो पाया कि उनमें भी ऐसे ही लक्षण नज़र आते हैं। इसी के साथ एक अन्य टीम के इसी प्रकार के अध्ययन में देखा गया है कि ऑटिज़्म पीड़ित मस्तिष्क में अवरोधी तंत्रिकाएं होती हैं जो मस्तिष्क से निकलने वाले संदेशों को रोकने का काम करती हैं।
इस अध्ययन के बाद मुओर्टी की योजना है कि वे इन नन्हे मस्तिष्कों को बाहर से उद्दीपन देकर देखने का प्रयास करेंगे कि इनमें कैसी प्रतिक्रिया होती है। इसके लिए वे कृत्रिम नेत्र ऊतक विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं जो प्रकाश की संवेदना को विद्युत संदेशों में बदलकर मस्तिष्क तक पहुंचाएगा।
इस तरह के अध्ययन से जहां यह समझने में मदद मिलेगी कि हममें सामाजिकता और सामाजिक व्यावहारिकता कैसे पैदा होती है, वहीं इनसे सम्बंधित दिक्कतों का उपचार मिलने की भी उम्मीद है। एक बात तो स्पष्ट है कि इस तरह के नन्हे कृत्रिम रूप से विकसित मस्तिष्क अध्ययन में काफी मददगार साबित हो रहे हैं। (स्रोत फीचर्स)