शर्मिला पाल

पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जो जीवन से संपन्न है। आज हम अपने चारों ओर जीवन की जो विविधता देखते हैं, उसे प्रकृति ने करोड़ों वर्षों की विकास यात्रा में रंग-रूप दिया है। इसे ही ‘जैव विविधता’ कहा जाता है जो अपने अस्तित्व के संतुलन के लिए पूरी तरह एक-दूसरे से जुड़ी है। दुर्भाग्यवश आज जैव विविधता संकट में है।
जिस तरह से हर गुज़रते दिन के साथ धरती के तापमान में वृद्धि हो रही है, हिमखंड तेज़ी से पिघल रहे हैं और समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, उसने समूची कुदरत के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है। कुदरत की संरचना में की जा रही छेड़छाड़ के चलते वायुमंडल में गैसों का संतुलन बिगड़ गया है। इसका असर कई स्तरों पर पड़ा है। फसल चक्र गड़बड़ाया है, धरती की उर्वरता कम हुई है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि पारिस्थितिकी चक्र गड़बड़ा गया है जिस कारण जैव विविधता पर संकट खड़ा होने लगा है। आज दुनिया भर में 50,000 से ज़्यादा पादप प्रजातियों में से 35 प्रतिशत प्रजातियां अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही हैं। हज़ारों किस्म के वृक्ष, पक्षी, स्तनधारी और कीट-पतंगे या तो विलुप्त हो चुके हैं या उसी दिशा में अग्रसर हैं। भारत में सफेद गिद्ध, काले कौए, सारस, मोर जैसे तमाम पक्षी लगातार संकट से घिरे हैं। जापानी सारस, चीनी चूहे और मंगोलियाई बिल्लियां तो विलुप्तप्राय हैं।

वनस्पति प्रजातियों पर संकट
कुदरत हिन्दुस्तान पर हमेशा से मेहरबान रही है। भारत में जंगलों, दलदली ज़मीन, समुद्री क्षेत्रों आदि में भरपूर जैव विविधता दिखती है। भारत में 350 स्तनधारी प्रजातियां, 1,224 से ज़्यादा पक्षी प्रजातियां, 408 किस्म के सांप, 197 किस्म के उभयचर प्राणी और 2,546 किस्म की मछलियां हैं। फलों और पौधों की भी 15,000 से ज़्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। लेकिन पिछले दो दशकों से लगातार बदल रहे कुदरत के मिज़ाज ने तमाम जंतु और वनस्पति प्रजातियों पर संकट की तलवार लटका दी है। जलवायु परिवर्तन और जंगलों की विलुप्ति के कारण बहुत-सी प्रजातियां देखते ही देखते लुप्त होती जा रही हैं। हो सकता है आने वाली पीढ़ियां सिर्फ चित्रों में ही चीते देख पाएंगी। अगर बहुत जल्द हमारे सामूहिक बर्ताव में कोई सामंजस्यपूर्ण परिवर्तन न हुआ तो जैव विविधता से सम्पन्न हिन्दुस्तान विपन्न हो जाएगा।

बीस प्रजातियों पर खतरा
सिर्फ भारत ही नहीं, एशिया के दूसरे देशों में भी यही स्थिति है। उदाहरण के लिए लोमड़ी एक ज़माने में हमारी संस्कृति की सबसे जीवंत प्रतीक और किस्से कहानियों की सबसे चतुर पात्र थी। अब वह तेज़ी से अस्तित्वहीन होने की तरफ बढ़ रही है। चीते का ज़िक्र न ही करें तो ठीक है। 1900 में जहां भारत सहित पूरी दुनिया में 1 लाख से ज़्यादा चीते मौजूद थे, वहीं आज इनकी संख्या 10,000 भी नहीं है। भारत में तो एक भी चीता नहीं बचा है। एशियाई शेर, भारतीय हाथी, एशियाई गधे और गैंडे तेज़ी से गायब हो रहे हैं। स्तनधारी जीवों में से 13 प्रजातियां लगभग विलुप्त हो चुकी हैं। 20 प्रजातियां दुर्लभ हुई हैं। जल्द ही इनकी संख्या में सुधार नहीं हुआ तो खत्म हो जाएंगी। पक्षियों की छह से ज़्यादा प्रजातियां लगभग गायब हो चुकी हैं। बया और गौरैया जो एक ज़माने में घर-घर फुदकते हुए देखी जा सकती थी, वे इतनी कम हो गई हैं कि जल्द ही विलुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल होने वाली हैं। काले कौओं का भी यही हाल है और सफेद गिद्ध तो शामिल हो ही चुके हैं। उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर पाया जाने वाला ताम्बई रंग का करैत सांप अब यदा-कदा ही दिखता है। सांपों की छह प्रजातियां तो बिलकुल लुप्त हो चुकी हैं और एक दर्जन से ज़्यादा सांप दुर्लभ हो चुके हैं। इनमें कई पानी वाले सांप भी शामिल हैं।

बढ़ते सीमेंट के जंगल
हमारे पारिस्थितिकी चक्र का बहुत मूल्यवान जीव है सांप। ये तमाम तरह के कीटों को अपना भोजन बनाकर कृषि उत्पादन को बढ़ावा देते हैं। लेकिन अब इनके रहने और गुज़र-बसर लायक माहौल खत्म होता जा रहा है। वास्तव में जैव विविधता पर सबसे ज्यादा संकट इसी बात का है कि तमाम जीव प्रजातियों के रहने के स्थान (प्राकृतवास) खत्म हो रहे हैं। शहरों के लगातार बढ़ते आकार और गायब होती हरियाली व बढ़ते कांक्रीट के जंगलों के चलते अब तमाम जीवों के प्राकृतवास शेष नहीं रहे। प्रदूषण, शोर, हर जगह इंसान की मौजूदगी, भारी प्रकाश, बढ़ती गर्मी और बदलते कुदरत के मौसम चक्र के चलते जैव विविधता का नाश हो रहा है।

रासायनिक उर्वरक
इंसान ने अपना पेट भरने के लिए ज़मीन को रासायनिक उर्वरकों से पाट दिया है। इसके एक नहीं कई नुकसान सामने आए हैं। लगातार रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से ज़मीन की उर्वरता कम हुई है। इन रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल का दूसरा बड़ा नुकसान यह है कि इसने मिट्टी से तमाम तरह के जीव-जंतुओं को खत्म कर दिया है जो ज़मीन को उर्वर बनाए रखने में भूमिका निभाते थे। साथ ही ये जीव-जंतु तमाम तरह के कीट-पतंगों की आजीविका हुआ करते थे। इसी वजह से कुदरत का कुनबा खुशहाल था, पारिस्थितिकी चक्र भरा-पूरा था।
कुल मिलाकर देखा जाए तो उत्पादन बढ़ाने के लिए रसायनों के भारी उपयोग से अंतत: जैव विविधता पर खतरा पैदा हुआ है। हालांकि इसके लिए संयुक्त राष्ट्र बेहद चिंतित है और 1992 के रियो डी जिनेरियो पृथ्वी सम्मेलन के समय से स्थिति को और खराब न होने देने तथा पर्यावरण को बेहतर बनाने आदि के प्रयास कर रहा है लेकिन विकासशील देशों की विकसित देशों जैसा बनने की ख्वाहिश ने इस रास्ते को बेहद मुश्किल बना दिया है।
पिछले कुछ दशकों के प्रयासों के चलते अब लोगों में जैव विविधता के संरक्षण के प्रति सजगता बढ़ी है। इसको बरकरार रखने और बेहतर बनाने के लिए कई तरह की मुहिमें चल रही हैं। जैव विविधता बैंकों का निर्माण किया जा रहा है, जहां तमाम तरह के पौधे, बैक्टीरिया, फफूंद तथा बीजों को संभालकर रखा जाता है। भारत सरकार ने भी हाल के वर्षों में जैव विविधता संरक्षण हेतु कई कानून बनाए हैं और देश में हर साल जैव विविधता बनाने और बचाए रखने के लिए बजट में बढ़ोतरी की जा रही है

लाभदायक जैव विविधता
सभी जीव एक-दूसरे पर निर्भर हैं। धरती पर ऐसी कोई भी जीव प्रजाति नहीं है जो किसी दूसरे पर निर्भर न हो। चूंकि जलवायु परिवर्तन के कारण तमाम जीव प्रजातियां प्रभावित हो रही हैं तो वे जिस पर निर्भर हैं या उन पर जो निर्भर हैं, उन पर भी एक बड़ा संकट मंडराने लगा है। विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों, जंतु प्रजातियों के खत्म होने, विलुप्त होने या नष्ट होने से समूची धरती को समस्या का सामना करना पड़ता है। जब पर्यावरण की क्षति होती है तो यह क्षति सबसे कीमत वसूलती है, चाहे इंसान हो, जानवर हो या पेड़ पौधे हों। जैव विविधता की मौजूदगी इंसान को हर तरह से लाभ पहुंचाती है। कई दवाइयां या तो पेड़ पौधों से बनती हैं या जानवरों से। दुर्भाग्य से अब आशंका पैदा हो रही है कि तमाम दवाइयों के लिए उनका अस्तित्व बचेगा भी या नहीं क्योंकि ये दवाइयां जिस कच्चे माल से तैयार होती थीं, कच्चे माल के उत्पादन का वह सोता लगातार सूख रहा है। जैव विविधता के कारण पर्यावरण का संतुलन बना रहता है। वातावरण में ज़रूरी गैसों का संतुलन बना रहता है। इसीलिए जैव विविधता को बरकरार रखना बहुत ज़रूरी है। जैव विविधता के चलते न सिर्फ जीवों और जीवित दुनिया में एक संतुलन बना रहता है बल्कि इससे इंसान को कई तरह के रोज़गार भी मिलते हैं। मसलन पर्यटन व्यवसाय में उछाल तभी आता है जब कोई क्षेत्र विशेष जैव विविधता के मामले में धनी हो। मध्य प्रदेश इसका जीता जागता उदाहरण है। अपने घने जंगलों और जैव विविधता की संपन्नता के चलते मध्य प्रदेश देश के कई दूसरे राज्यों के मुकाबले कहीं ज़्यादा पर्यटकों को अपनी तरफ खींचता है। कुल मिलाकर जैव विविधता का इंसान के रोज़मर्रा के जीवन में बहुत महत्व है। (स्रोत फीचर्स)