किसी पौधे के कुछ जीन्स को खामोश करके उसकी सुरक्षा की जा सकती है। पौधे इस तकनीक का उपयोग कुदरती तौर पर भी करते हैं किंतु अब वैज्ञानिकों ने इसे प्रायोगिक तौर पर करके देख लिया है। और तो और, वैज्ञानिकों का ख्याल है कि इसका उपयोग फसल सुरक्षा के अलावा कई अन्य उद्देश्यों से भी किया जा सकेगा।
दरअसल, सिद्धांतत: तकनीक बहुत सरल है। जब कोई वायरस पौधे में घुसपैठ करता है तो पौधा उसके आरएनए को काट-पीट डालता है और उसके टुकड़ों से दोहरे आरएनए के टुकड़े बना लेता है। इन टुकड़ों का उपयोग पौधा अपने जीनोम में मैचिंग डीएनए को पहचानने के लिए करता है, जिन्हें नष्ट कर दिया जाता है। अब उस डीएनए द्वारा बनाया जाने वाला प्रोटीन नहीं बनता। जब वायरस को पौधे में वह प्रोटीन नहीं मिलता तो उसके लिए अपनी प्रतिलिपि बनाना असंभव हो जाता है। इस तरह से वायरस संख्या वृद्धि नहीं कर पाता और पौधा महफूज़ रहता है।
देखा जाए तो इस तकनीक का उपयोग करके किसी भी प्रोटीन के निर्माण को रोका जा सकता है। यदि इस तरह उपयुक्त आरएनए का छिड़काव किया जाए तो फसलों को किसी वायरस अथवा कीट का प्रतिरोधी बनाया जा सकता है। इस तकनीक की एक खूबी यह है कि इसमें पौधे की जेनेटिक संरचना में कोई फेरबदल नहीं किया जाता। सिर्फ उसकी कोशिकाओं को किसी आरएनए को पहचानकर नष्ट कराना सिखाया जाता है। एक मायने में यह टीकाकरण जैसा है। मगर इसके असर बहुत दिनों तक नहीं चलते।

चूंकि असर लंबे समय तक नहीं चलते, इसलिए फसल सुरक्षा के लिए ज़रूरी होगा कि छिड़काव बार-बार किया जाए जो बहुत महंगा पड़ेगा। अब ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैण्ड विश्वविद्यालय की नीना मित्तर और उनके साथियों ने इस समस्या का भी हल निकाल लिया है। प्रयोगों में उन्होंने पाया कि यदि छिड़कने से पहले आरएनए के घोल में नैनो कण मिलाकर छिड़काव किया जाए तो उसका असर लगभग 20 दिनों तक बना रहता है।
वैसे कई अन्य दल भी अलग-अलग उद्देश्य से इस तकनीक के उपयोग पर काम कर रहे हैं। जैसे कुछ टीमें फसलों को ज़्यादा पौष्टिक बनाने या सूखारोधी बनाने के लिए जीन खामोश करने की तकनीक पर प्रयोग कर रही हैं। सैद्धांतिक रूप में तो इस तकनीक का उपयोग मनुष्य व अन्य जंतुओं में किसी भी जीन को खामोश करने के लिए किया जा सकता है मगर फिलहाल वह लक्ष्य दूर लगता है। इसलिए प्रमुख रूप से फसल सुरक्षा पर ही ध्यान दिया जा रहा है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि जेनेटिक रूप से परिवर्तित (जीएम) फसलों के विरोधी भी इस तकनीक पर आपत्ति नहीं उठाएंगे। (स्रोत फीचर्स)