चक्रेश जैन

विज्ञान की प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका साइंस और नेचर ने बीते दशक में वर्ष की अति महत्वपूर्ण दस या पन्द्रह वैज्ञानिक घटनाओं और शोधकार्यों का चयन कर सूची बनाने की अपनी तरह की एक नई परम्परा शु डिग्री की है। इस परम्परा के तहत वर्ष 2016 की दस चयनित सुर्खियों में गुरुत्वाकर्षण तरंगें, प्रोक्सिमा-बी ग्रह की खोज, पोर्टेबल डीएनए, डिज़ायनर प्रोटीन, मानव मेधा को कृत्रिम मेधा की चुनौती, प्रयोगशाला में चुहिया के अंडाणुओं का विकास आदि सम्मिलित हैं। विदा हो चुके वर्ष में जीन सम्पादन की नई विधा से विवादों की लहर उठी जो अभी थमी नहीं है।
गुज़रा साल ब्रह्मांड के नए रहस्यों पर से पर्दा हटाने और नवाचारों को उत्साहित करने के लिए याद किया जाएगा। इस वर्ष अंतरिक्ष में अभिनव और दिलचस्प प्रयोग हुए। खगोल शास्त्र के अनुसंधानकर्ता जीवन की संभावनाओं वाले नए ठिकानों की तलाश में लगे रहे। शोधकर्ताओं ने सफेद बालों के लिए उत्तरदायी जीन आईआरएफ-4 का पता लगा लिया। नेचर की एक रिपोर्ट के अनुसार अध्येताओं के एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने प्रसन्नता का जीन (एफएएएच) खोज लिया। 145 वैज्ञानिक संस्थानों की टीम ने प्रसन्नता का जीन पता लगाने के लिए लगभग तीन लाख लोगों पर अध्ययन किया। यही वह वर्ष है, जब छिपकली जैसी मछली (क्रिप्टोटोरा थैमोलिका) का पता चला। यह मछली नेत्रहीन है और छिपकली की भांति दीवारों पर चढ़ने में सक्षम है।

विज्ञान जगत की अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका साइंस की वर्ष 2016 की टॉप टेन उपलब्धियों की सूची में प्रथम स्थान गुरुत्वाकर्षण तरंगों को मिला है। 11 फरवरी को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में वैज्ञानिकों ने गुरुत्वाकर्षण तरंगों को देखने की घोषणा की। इनके अस्तित्व के बारे में अल्बर्ट आइंस्टाइन ने अपने सामान्य सापेक्षता सिद्धांत में भविष्यवाणी की थी। उन्होंेने कहा था कि अंतरिक्ष एक जाल की भांति है, जो किसी पिण्ड के भार से मुड़ता है। गुरुत्वाकर्षण तरंगें किसी तालाब में कंकड़ फेंकने से उठी लहरों की तरह हैं। ये विशाल पिण्डों की गति के कारण उत्पन्न होती हैं।
यह खोज लेज़र इंटरफेरोमीटर ग्रेवीटेशनल वेव ऑब्ज़रवेटरी (लिगो) द्वारा की गई। इस अंतर्राष्ट्रीय परियोजना में पन्द्रह देशों के एक हज़ार से अधिक वैज्ञानिकों ने योगदान किया। भारत के नौ वैज्ञानिक संस्थानों के पैंतीस वैज्ञानिकों ने इसमें हिस्सा लिया। वैज्ञानिकों का मानना है इस खोज से एक नए विषय गुरुत्व-तरंग खगोलिकी का जन्म हुआ है। गुरुत्वाकर्षण तरंगों की खोज से आगे चलकर तारों, आकाशगंगाओं और ब्लैक होल के बारे में अहम जानकारियां जुटाने में मदद मिलेगी। इस वर्ष के पूर्वार्द्ध में ही केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुत्वाकर्षण तरंगों पर शोध से जुड़े प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दे दी। इसकी स्थापना महाराष्ट्र के हिंगोली में की जाएगी।
 विदा हो चुके वर्ष 2016 में जीन सम्पादन की नई तकनीक क्रिस्पर कॉस-9 चर्चाओं के केंद्र में रही। इस तकनीक से सबसे अधिक प्रयोग सुअर के जीनोम सम्पादन में हुए हैं। दरअसल, इस तकनीक के साथ सामाजिक और नैतिक प्रश्न जुड़े हैं। बताते हैं कि जीनोम वैज्ञानिकों ने क्रिस्पर कॉस-9 तकनीक से डिज़ाइनर बेबी बनाने के प्रयास भी शु डिग्री कर दिए हैं। जीन एडिटिंग की नई तकनीक से चीन के वैज्ञानिक लु यू और उनके सहयोगियों ने फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित एक व्यक्ति का इलाज किया। स्वीडन में पहली बार क्रिस्पर कॉस-9 तकनीक से सम्पादित खाद्य का उपयोग किया गया।

बीते वर्ष जापान के शोधकर्ताओं ने पूरी तरह प्रयोगशाला में चुहिया के अंडाणु विकसित कर शिशु पैदा किए। मॉलीक्युलर बायोलॉजी में कई नए प्रयोग हुए। पोर्टेबल डीएनए मशीन का निर्माण किया गया। समाज को डीएनए अणु के विभिन्न उपयोगों का लाभ मिल रहा है। गुज़रे साल डिज़ायनर प्रोटीन बनाने के प्रयासों में बड़ी सफलता मिली। इससे नई औषधि के सृजन का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
 वर्ष 2016 में ब्रह्मांड में नए ठिकानों के खोज अभियान में सफलता मिली। वैज्ञानिकों ने सौर मंडल में नौवां ग्रह खोज लिया। एक रिपोर्ट के अनुसार खगोलविदों ने एक करीबी सूर्य प्रॉक्सिमा सेंटौरी की परिक्रमा करते ग्रह प्रॉक्सिमा-बी का पता लगा लिया। यह पृथ्वी के आकार का है। इस ग्रह पर जीवन की काफी संभावनाएं हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने एक ऐसे क्षुद्र ग्रह की खोज की, जो पृथ्वी की कक्षा में मौजूद है। गुज़रे साल जनवरी में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर शून्य गुरुत्व में पहली बार फूल खिलाने की घोषणा की गई।
साल के उत्तरार्द्ध में नासा का अंतरिक्ष यान जूनो पांच साल की लंबी यात्रा के बाद सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति की कक्षा में पहुंचा। जूनो मिशन इस ग्रह पर पानी की मौजूदगी सहित विभिन्न वैज्ञानिक अनुसंधान करेगा। गुज़रे साल युरोप का रोज़ेटा अभियान धूमकेतु-67 पी से टकराने के बाद समाप्त हो गया।
इसी वर्ष 12 अक्टूबर को पेरिस में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान अंतरिक्ष में एक नया देश अस्गार्दिया बसाने की घोषणा की गई। विशेषज्ञों के अनुसार यह देश पृथ्वी के सभी नियमों और कानूनों से मुक्त होगा। इस प्रोजेक्ट के लिए जल्द ही रोबोटिक उपग्रह भेजा जाएगा। यह देश आगे चलकर संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनेगा। इसका अपना राष्ट्र गान और राष्ट्र ध्वज भी रहेगा। विदा हो चुके वर्ष 2016 में विख्यात भौतिक शास्त्री स्टीफन हॉकिंग ने अंतरिक्ष में जीवन की नई संभावनाओं को खोजने की सलाह दी।

वर्ष 2016 भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के लिए बड़ी सफलताओं का रहा। साल के शु डिग्री में सोलर सैटेलाइट लांच वेहिकल सी-31 प्रक्षेपण यान के ज़रिए इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम आईआरएनएसएस-1 ई का सफल प्रक्षेपण किया गया। 28 अप्रैल को इसी श्रृंखला का अंतिम और सातवां उपग्रह भेजा गया। इन उपग्रहों को नाविक नाम दिया गया है। नाविक उपग्रहों को भेजने के बाद भारत का अपना ग्लोबल पोज़ीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) हो गया है। नाविक उपग्रहों का उपयोग सैन्य और असैन्य दोनों कार्यों के लिए किया जा रहा है। इस वर्ष मई में स्वदेशी प्रौद्योगिकी से विकसित पुन: इस्तेमाल किए जाने वाले प्रक्षेपण यान को अंतरिक्ष में भेजा गया। गुज़रे साल 28 अगस्त को इसरो की शानदार सफलताओं में एक और अध्याय उस समय जुड़ गया, जब उसने स्वदेशी स्क्रैमजेट इंजन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने 23 जून को एक साथ बीस उपग्रह प्रक्षेपित किए। साल के उत्तरार्द्ध में 26 सितम्बर को पोलर सैटेलाइट लांच वेहिकल पीएसएलवी-सी 35 के ज़रिए आठ उपग्रहों को पृथ्वी की दो अलग-अलग कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। इसरो ने पिछले कुछ वर्षों से अपने कार्यक्रमों में विद्यार्थियों को सहभागी बनाकर एक अच्छी शुरुआत की है।

इस वर्ष चीन ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम का विस्तार किया। पहली बार क्वांटम उपग्रह अंतरिक्ष में भेजा। मार्च में दुनिया के सबसे शक्तिशाली रॉकेट लांग मार्च-5 का प्रक्षेपण किया। इसका उपयोग ग्रहों के अन्वेषण के अलावा लोगों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए भी किया जाएगा।
26 सितंबर को वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआईआर ने अपनी स्थापना के पचहत्तर साल पूरे किए और समारोहपूर्वक प्लेटिनम जयंती मनाई। यह विश्व के सबसे बड़े वैज्ञानिक संगठनों में से एक है, जिसकी देश भर में 39 प्रयोगशालाएं हैं। वर्ष 2016 अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष के रूप में मनाया गया। इसका उद्देश्य दुनिया भर में दालों के महत्व के प्रति जागरूकता का विस्तार करना था। कृषि विश्वविद्यालयों में दालों के विभिन्न पक्षों पर विचार-गोष्ठियां और सम्मेलन सहित विभिन्न आयोजन हुए। गुज़रे साल के शु डिग्री में ही सिक्किम देश का पहला पूर्णत: जैविक कृषि राज्य बन गया। यहां 7500 हैक्टर कृषि क्षेत्र में जैविक खेती हो रही है।
वर्ष 2016 के दौरान जलवायु परिवर्तन से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर व्यापक विचार मंथन हुआ। पूरी दुनिया इससे प्रभावित हुई है। जलवायु परिवर्तन से जुड़े पेरिस संधि कॉप्स 21 पर 191 राष्ट्रों ने हस्ताक्षर किए और यह नवम्बर से लागू हो गया। भारत ने 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के अवसर पर इस संधि का अनुमोदन किया था।
इसी साल इंटरनेशनल यूनियन ऑफ प्योर एंड एप्लाइड केमेस्ट्रिी (आईयूपीएसी) ने आवर्त सारणी में पिछले वर्ष सम्मिलित चार नए तत्वों का नामकरण किया। इनके लिए निहोनियम, मास्कोवियम, टेनेसाइन और ओगनेशियन नाम प्रस्तावित हैं। इन चारों तत्वों की खोज 1999-2010 के दौरान हुई थी। पहली बार 1869 में प्रकाशित तत्वों की आवर्त सारणी में 63 तत्व थे।
गुज़रे साल भी रोबोट मनुष्य को चुनौती बनते दिखाई दिए। जानकारों का कहना है कि रोबोट की बढ़ती संख्या से आगे चलकर अवसरों की जंग शु डिग्री हो जाएगी। वर्ष के उत्तरार्ध में चीन की राजधानी पेइचिंग में आयोजित रोबोटिक्स सम्मेलन में दुनिया भर के रोबोट्स ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लिया। चित्रकारी और चिकित्सा से लेकर गाना गाने और रेस्तरां संभालने वाले रोबोट भी विकसित कर लिए गए हैं। रोबोट के फैलते साम्राज्य और वर्चस्व से इस वर्ष भी यह ज्वलंत प्रश्न फिर उठा कि क्या आगे चलकर रोबोट ललित कलाओं और मौलिक लेखन के मैदान में भी मनुष्य की बराबरी कर सकेंगे। वर्ष के अंत में एक सम्मेलन हुआ, जिसका विषय था ‘लव एंड सेक्स विथ रोबोट्स।’

वर्ष 2016 में चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार जापान के योशिनोरी ओशुमी को ऑटोफैजी से सम्बंधित शोधकार्य के लिए दिया गया। भौतिकी का नोबेल सम्मान डेविल टूलेस, डंकन हाल्डेन और माइकल कोस्टरलिट्ज़ को पदार्थ के विलक्षण रूपों की व्याख्या के लिए प्रदान किया गया। रसायन विज्ञान का नोबेल ज्यां पियरे, फ्रेज़र स्टोडार्ट और बर्नार्ड फेरिंगा को आणविक मशीनों के सृजन और विकास में अहम योगदान के लिए दिया गया।
2016 के उत्तरार्द्ध में पर्यावरण्विद और गांधीवादी विचारक अनुपम मिश्र हमारे बीच नहीं रहे। उन्होंने जल, जंगल और ज़मीन को स्वदेशी और वैज्ञानिक तरीकों से बचाने की दिशा में ऐतिहासिक योगदान किया। ‘राजस्थान की रजत बूंदें’ और ‘आज भी खरे हैं तालाब’ उनकी चर्चित पुस्तकें हैं।
इसी वर्ष भौतिकविद और केंद्र में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री रहे प्रोफेसर एमजीके मेनन का 22 नवम्बर को निधन हो गया। वे दूसरे वैज्ञानिक थे जो राज्य सभा में निर्वाचित होकर पहुंचे थे। आज़ादी के बाद उनके नेतृत्व में भारतीय विज्ञान में नए कार्यक्रमों और योजनाओं की शुरुआत हुई। मार्च में जैव प्रौद्योगिकी विभाग के संस्थापक सचिव डॉ. एस. रामचन्द्रन का निधन हो गया। उन्होंने देश में जैव प्रौद्योगिकी में रिसर्च को बढ़ावा देने की दिशा में अहम योगदान किया था।

 इस वर्ष 3 नवम्बर को वरिष्ठ विज्ञान पत्रकार हरीश अग्रवाल का अवसान हो गया। उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक नवभारत टाइम्स में विज्ञान का नियमित पृष्ठ शु डिग्री किया था और अपनी अलग पहचान स्थापित की थी। हरीश अग्रवाल ने लोकप्रिय विज्ञान लेखन को समृद्ध करने की दिशा में विशेष योगदान किया। 13 नवम्बर को विज्ञान लेखक और देशबन्धु में ब्यूरो चीफ रह चुके देवेन्द्र उपाध्याय की मृत्यु हो गई। उन्होंने कृषि विज्ञान सहित अनेक वैज्ञानिक मुद्दों पर आलेख लिखे और विज्ञान पत्रकारिता का विस्तार किया।
25 दिसंबर को अमेरिकी खगोलविद वेरा रुबिन का देहांत हो गया। पहली महिला खगोलशास्त्री रुबिन ने इस तथ्य की पुष्टि की थी कि ब्रह्मांड का अधिकांश भाग डार्क मेटर है। उन्होंने लगभग 200 निहारिकाओं का अध्ययन किया।
कार्बन के एक नए अपररूप बकीबॉल की खोज के लिए चर्चित रहे सर हेरॉल्ड क्रोटो का निधन 30 अप्रैल को हो गया। इस खोज के पहले हम कार्बन के तीन अपररूपों काजल, हीरा और ग्रेफाइट के बारे में ही जानते थे। क्रोटो को इस खोज के लिए 1996 में रसायन शास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने वैज्ञानिक के साथ एक विज्ञान संचारक के रूप में भी अपनी पहचान बनाई।

नोबेल पुरस्कार विजेता रॉजर सीन 24 अगस्त को दुनिया में नहीं रहे। पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करने का नया कीर्तिमान स्थापित करने वाले अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री जॉन ग्लेन की 8 दिसंबर को मृत्यु हो गई। जॉन ग्लेन सर्वाधिक उम्र के व्यक्ति थे, जिन्हें अंतरिक्ष यात्रा के लिए चुना गया था।
भारत में पूरे साल नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न आयोजन हुए। राष्ट्रपति भवन में मार्च में नवाचार उत्सव आयोजित किया गया। वर्ष 2010-2020 को नवाचार दशक के रूप में मनाया जा रहा है।
विदा हो चुके वर्ष के परिदृश्य के विश्लेषण से स्पष्ट है कि समाज में मूलभूत विज्ञान की अपेक्षा प्रोद्योगिकी हावी रही। यह तो जानी-मानी बात है कि वैज्ञानिक अनुसंधानों की समाज के विकास में अहम भूमिका रही है। अब आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन को रोकने और पृथ्वी से विलुप्त हो रहे जीव-जन्तुओं को बचाने में भी है। (स्रोत फीचर्स)