चीन के मध्यवर्ती क्षेत्र में विशाल अंडों का एक जखीरा मिला है जिनके बारे में माना जा रहा है कि ये पक्षीनुमा डायनासौर के अंडे हैं। डायनासौर की इस प्रजाति को बाईबाईलांग साइनेन्सिस नाम दिया गया है।
इससे पहले भी मध्य चीन के हेनान प्रांत में वृत्ताकर ढंग से जमे हुए डायनासौर अंडे मिल चुके हैं। ऐसा लग रहा था कि ये अंडे एक घोंसले में दिए गए थे जिसका व्यास कम से कम तीन मीटर रहा होगा। अंडे लंबाई में करीब 45 से.मी. (डेढ़-डेढ़ फुट) के थे और प्रत्येक का वज़न करीब 5 किलोग्राम था। उस समय से ही यह एक रहस्य था कि किस तरह के डायनासौर ने ऐसे बड़े-बड़े अंडे दिए होंगे। कुछ लोगों का मत था कि ये टायरेनोसौरस के अंडे हैं। किंतु इस नए अंडा जीवाश्म ने रहस्य से पर्दा उठा दिया है।

इस नए जीवाश्म में एक शिशु अंडा फोड़कर निकलता दिखाई दे रहा है। चट्टान की उम्र के आधार पर निष्कर्ष निकला है कि यह जीवाश्म 9 करोड़ वर्ष पुराना है। इस नवजात शिशु के डील-डौल के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि वयस्क होकर यह करीब 8 मीटर का हो जाएगा और वज़न 3 टन रहेगा। अंडे में से निकलते चूज़े के शरीर पर पंख थे, आदिम डैने थे और चोंच भी थी।
इन सबके आधार पर स्पष्ट है कि यह कोई पक्षीनुमा डायनासौर था जो उड़ने में असमर्थ था। अब माना जा रहा है कि ये अंडे विशालकाय ओविरेप्टोसौर ने दिए होंगे। ओविरेप्टोसौर एक ऐसा डायनासौर था जो आजकल के पक्षी कैसोवरी जैसे दिखता होगा, हालांकि उससे कहीं अधिक विशाल।
घोसलों में अंडे होने का मतलब है कि बाईबाईलांग अपने अंडों को सेता होगा। यह कल्पना ही विचित्र है कि तीन टन वज़नी कोई प्राणि अंडों पर बैठकर उन्हें सेता होगा। ऐसा माना जा रहा है कि ओविरेप्टोसौर की यह नई प्रजाति वह सबसे बड़ा डायनासौर रहा होगा जो अपने अंडों को सेने के अलावा अपने शिशुओं की देखभाल भी करता होगा। नेचर कम्यूनिकेशन्स में प्रकाशित इस विवरण में बताया गया है कि यह डायनासौर मृत पैदा हुआ होगा इसलिए इसका नाम बाईबाईलांग साइनेन्सिस रखा गया है (जिसका अर्थ है ‘चीन का शिशु ड्रेगन’)। (स्रोत फीचर्स)