नेचर मेडिसिन शोध पत्रिका में प्रकाशित एक शोध पत्र के मुताबिक भांग में पाया जाने वाला एक रसायन बूढ़े चूहों की संज्ञान क्षमता को बहाल कर सकता है और ऐसे आणविक परिवर्तन कर सकता है जो उन्हें युवा जैसा बना देते हैं। इस रसायन का नाम है टेट्राहाइड्रो कैनेबिनॉल (टीएचसी)।
पूर्व में किए गए अध्ययनों से पता चला था कि मनुष्यों में उम्र बढ़ने के साथ कैनेबिनॉइड तंत्र में गिरावट आने लगती है। कैनेबिनॉइड तंत्र का मतलब होता है कि स्तनधारियों के दिमाग की तथा अन्य हिस्सों की तंत्रिकाओं की सतह पर केनेबिस (भांग-सम्बंधी) रसायनों के लिए ग्राही होते हैं। शोधकर्ता जानना चाहते थे कि क्या टीएचसी देने से हालत में कोई सुधार आएगा।

इसे देखने के लिए जर्मनी के बॉन विश्वविद्यालय और इस्राइल के हिब् डिग्री विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने चूहों के तीन समूहों को 28 दिन तक टीएचसी (3 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम शारीरिक भार) की खुराक दी। पहले समूह के चूहे 2 माह के थे, दूसरे समूह के 12 व तीसरे समूह के 18 माह के थे।
टीम ने इन चूहों की संज्ञान क्षमता नापने के लिए कुछ मानक परीक्षणों का उपयोग किया। इसमें याददाश्त, वस्तु पहचानने और साथी को पहचानने की जांच की जाती है। परीक्षणों से पता चला कि टीएचसी उपचार के बाद युवा और बूढ़े चूहों के प्रदर्शन में जो गिरावट आई थी वह दुरुस्त हो गई। खुराक इतनी कम थी कि गतिविधि का स्तर बचपन की अवस्था तक तो बहाल नहीं हुआ किंतु उपचार का असर स्पष्ट था। अलबत्ता, शिशु चूहों में असर उल्टा रहा, उनके प्रदर्शन में गिरावट आई।
इस विचित्र परिणाम की व्याख्या क्या है? लगता तो ऐसा है कि टीएचसी बूढ़े चूहों को युवा और शिशु चूहों को बूढ़ा बना दे रहा है। बॉन विश्वविद्यालय के एंड्रास बिल्काई-गोर्ज़ो का मत है कि जब वही दवा शिशु चूहों को दी जाती है तो उनका कैनेबिनॉइड तंत्र अति सक्रिय हो जाता है जिसे उनका दिमाग संभाल नहीं पाता। दूसरी ओर बूढ़े चूहों में यह तंत्र कमज़ोर पड़ रहा था और टीएचसी इसे सामान्य स्तर पर ले आता है। (स्रोत फीचर्स)