भाव्या खुल्लर एवं नवनीत कुमार गुप्ता

अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारत के सुगंधित चावल की किस्म ‘बासमती’ की लोकप्रियता के कारण इसकी नकली किस्में भी प्रचलित हैं। इस समस्या से निपटने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों ने भारत में ही उगाई जाने वाली प्रामाणिक बासमती चावल की पहचान करने की नई तकनीक का विकास कर लिया है।
अहमदाबाद स्थित भौतिकी अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने हालिया अध्ययन में पाया है कि प्रामाणिक बासमती चावल की पहचान करने के लिए उसमें उपस्थित स्ट्रॉन्शियम नामक खनिज तत्व की मदद ली जा सकती है।
भारत में उगाए जाने वाले बासमती चावल में स्ट्रॉन्शियम उच्च मात्रा में पाया जाता है (प्रति किलोग्राम चावल में लगभग 0.2 से 5.2 मिलीग्राम)। बासमती चावल में स्ट्रॉन्शियम की इतनी अधिक मात्रा का कारण गंगा के मैदानी भाग में उपस्थित अत्यधिक उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी, हिमालयी नदियों में मिलने वाले सिलिकेट और कार्बोनेट चट्टानों के अंश एवं सिंचाई के लिए उपयोग किए गए पानी को बताया गया है। बासमती चावल में स्ट्रॉन्शियम की मात्रा के आधार पर पहचाना जा सकता है कि यह चावल कहां उगाया गया है।

शोधकर्ताओं ने पिछले फसल चक्र के दौरान पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड आदि राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में उगाए जाने वाले बासमती चावल के 87 नमूने लेकर उनकी तुलना अन्य देशों में उगाए गए चावल के नमूनों से की। इस अध्ययन से पता चला है कि भारत में उगाए जाने वाले बासमती चावल में स्ट्रॉन्शियम की मात्रा अन्य देशों में उगाई गई सुगंधित किस्मों से अलग है। फूड कैमेस्ट्री नामक जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में कहा गया है कि “संयुक्त राज्य अमेरिका में उपजे चावल के नमूनों में स्ट्रॉन्शियम की कम मात्रा के आधार पर बासमती चावल और टेक्समती (अमेरिका के बाज़ार में बिकने वाली किस्म) में अंतर किया जा सकता है।”
अन्य देशों में उगे चावलों की किस्मों को पहचान करने के अलावा स्ट्रॉन्शियम की मात्रा के आधार पर उत्तर प्रदेश और अन्य प्रदेशों जैसे हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड में उपजे चावलों की पहचान में भी मदद मिलेगी। अध्ययन में कहा गया है कि “अंतर-क्षेत्रीय तुलना से पता चलता है कि स्ट्रॉन्शियम अनुपात उत्तरप्रदेश में उपजे चावलों को अन्य राज्यों में उगाए गए चावलों से पृथक करने में सहायक साबित होता है।”
बासमती चावल, अपनी विशेष महक, लंबे आकार और विशिष्ट स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। भारत प्रति वर्ष बाहरीन, युरोप एवं खाड़ीदेशों को बासमती का निर्यात करके लगभग पांच अरब डॉलर का राजस्व प्राप्त करता है।
इस तकनीक से पूर्व एक अन्य समूह ने बासमती चावल की प्रामाणिकता की पहचान के लिए डीएनए आधारित विधि विकसित की थी जिसके द्वारा बासमती चावल को अन्य किस्मों से अलग पहचाना जा सकता है। लेकिन वह बहुत महंगी विधि है। इसलिए बासमती चावल की विभिन्न किस्मों की पहचान करने के लिए भविष्य में स्ट्रॉन्शियम की मात्रा का उपयोग किया जाएगा। (स्रोत फीचर्स)