धान की फसलों पर कई रोग लगते हैं। इनमें से कुछ रोग फफूंद व बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीवों की वजह से होते हैं। रोग लग जाने पर कई सारे रसायनों का छिड़काव करना होता है जो काफी महंगा साबित होता है।
जिस दूसरे तरीके पर वैज्ञानिक विचार करते रहे हैं वह जेनेटिक इंजीनियरिंग का है। यदि फसली पौधों में विभिन्न सूक्ष्मजीवों के खिलाफ प्रतिरक्षा के जीन्स जोड़ दिए जाएं तो वे रोगों से बच सकते हैं। इस तरीके की दिक्कत यह है कि यदि ये सारे प्रतिरक्षा जीन्स सदा सक्रिय रहेंगे तो पौधे को इसकी कीमत चुकानी होगी - कीमत है कि पौधे की वृद्धि धीमी पड़ जाएगी और दाने भी कम बनेंगे।
अब वैज्ञानिकों ने धान की एक ऐसी किस्म विकसित करने में सफलता प्राप्त की है जो सूक्ष्मजीवों का हमला होने पर ही अपने प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय करेंगी।

ड्यूक विश्वविद्यालय की ज़िनियन डॉन्ग कई वर्षों से इस विषय पर शोध करती आई हैं। उन्होंने खास तौर से एक जीन का अध्ययन किया है जो पौधों के प्रतिरक्षा तंत्र का महानियंत्रक है। NPR1 नामक यह जीन एरेबिडोप्सिस थेलियाना नामक पौधे में पाया जाता है। यह जीन इस पौधे की प्रतिरक्षा को चालू-बंद कर सकता है। वैज्ञानिकों की कोशिश रही है कि इस NPR1 जीन का उपयोग धान, गेहूं व अन्य फसलों में किया जाए। किंतु इसे उपयोगी बनाने हेतु एक ऐसा स्विच चाहिए जो ट्रेन के पंखों के समान इसे सिर्फ ज़रूरत के समय चालू करे और ज़रूरत न रहने पर बंद कर दे।

डॉन्ग की टीम ने चीन के हुआज़ोंग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर इस क्रियाविधि की खोज की घोषणा की है। उन्होंने पाया कि एरेबिडोप्सिस में प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय करने वाला एक प्रोटीन TBF1 होता है। डॉन्ग ने एरेबिडोप्सिस से इस TBF1 को बनाने का निर्देश देने वाले जीन का एक खंड लिया और उसे धान के पौधे के जीनोम में NPR1 जीन के नज़दीक जोड़ दिया।
ऐसा करने पर धान का जो पौधा प्राप्त हुआ, उसमें यह क्षमता है कि सूक्ष्मजीव का हमला होते ही वह अपने प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय कर देता है और जल्दी ही वह वापिस निष्क्रिय भी हो जाता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि उनके द्वारा विकसित धान की यह किस्म कतिपय बैक्टीरिया व फफूंदों के आक्रमण से ज़्यादा सुरक्षित रहती है। बहरहाल, इस सबको लेकर अभी फैसला होने में काफी वक्त लगेगा। (स्रोत फीचर्स)