किसी भी देश के विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का सर्वाधिक महत्व है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हर साल 11 मई को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी सम्मान प्रदान किए जाते हैं।
वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकी विदों के अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि आज भारत एक प्रौद्योगिकी शक्ति के रूप में उभर रहा है। इस दिशा में इसरो द्वारा मंगलयान का प्रक्षेपण अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में मील का पत्थर है। इसरो ने इस साल 100 से भी अधिक उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करके विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में देश की दक्षता प्रदर्शित की है।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने भी अनुसंधान के क्षेत्र में विकास के नए आयाम छुए हैं। विभाग के सहयोग से रोटावायरस टीके (रोटावैक) का विकास किया गया है। पूरी तरह स्वदेशी रोटावैक विदेशी टीकों से सस्ता और प्रभावी है। रोटावैक से उन्नत अन्य उत्पादों का भी परीक्षण किया जा रहा है। इसके अलावा अन्य दवाओं से सम्बंधित क्लीनिकल ट्रायलों के नतीजे बहुत अच्छे निकले हैं। उम्मीद है कि देश में एम्स की तर्ज पर खुलने वाले नए संस्थान स्वास्थ्य क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा देंगे।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग देश भर के विश्वविद्यालयों को शोध कार्य में सहायता करने के अलावा तीस मीटर दूरबीन, लार्ज हेड्रान कोलाइडर जैसी अंतर्राष्ट्रीय योजनाओं में सहभागी है। विभाग द्वारा महिला वैज्ञानिकों के लिए विशेष योजनाएं चलाई जा रही हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की मदद से सूर्यज्योति नामक सौर लैम्पों का विकास किया गया है। ऐसी प्रौद्योगिकियां पर्यावरण हितैषी होने के साथ-साथ ही बड़े वर्ग के लिए उपयोगी भी हैं।
कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत में बारिश के पूर्वानुमान का बड़ा महत्व है। भारतीय मौसम विभाग मौसम के सटीक पूर्वानुमान के साथ ही चक्रवातों का अनुमान लगा पाने में सफल रहा है। इससे जान-माल की हानि को रोका जा सका है। कृत्रिम वर्षा जैसे कार्यक्रम भी प्रौद्योगिकी दक्षता का प्रमाण है।
कई ऐसी नई फसल किस्मों का विकास किया जा रहा है जो बदलती जलवायु के अनुकूल हों। इसके अलावा खाद्यान्न भंडारण सम्बंधी प्रौद्योगिकियों ने अनाज की बर्बादी को कम किया है।

अभी तक हमारे देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में हो रहे अनुसंधान कार्यों में सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा तीन चौथाई और निजी क्षेत्र का हिस्सा एक चौथाई ही है। आज सार्वजनिक क्षेत्रों में अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा देने सम्बंधी नीतियों की मांग की जा रही है ताकि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के मध्य पारस्परिक समन्वय स्थापित हो जिससे समाज को ज़्यादा लाभ हो।
देश भर में ऐसा माहौल निर्मित करने का विचार व्यक्त किया जा रहा है जिसमें विश्वविद्यालय, प्रयोगशालाओं एवं अनुसंधान केंद्रों के बीच उचित समन्वय हो ताकि नवीन अनुसंधानों को बढ़ावा मिले। इसके अलावा वैज्ञानिकों एवं अनुसंधानकर्ताओं को ऐसा माहौल उपलब्ध होना चाहिए जहां वे बिना रोकटोक अपने खोज कार्यों को आगे बढ़ा सकें।
यह सच है कि विज्ञान एवं उसके अनुप्रयोगों के लाभकारी रूपों के चलते राष्ट्र और समाज विकास के मार्ग पर अग्रसर हैं। लेकिन इसकी रफ्तार बढ़ाने और समावेशी विकास के लिए आवश्यक है कि ऐसी नवाचारी प्रौद्योगिकियों का विकास किया जाए जो ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में सहायक हों। (स्रोत फीचर्स)