कोशिका-कृषि एक नया शब्द है जो जल्दी ही खाद्य नियामकों के लिए सिरदर्द बनने वाला है। प्रयोगशाला में मांस बनाना अब एक हकीकत बन चुका है और अपेक्षा की जा रही है कि इस साल के अंत तक ऐसा मांस बाज़ार में आ जाएगा जिसका उत्पादन करने में जंतुओं का उपयोग नहीं किया जाएगा।

हाल ही में मेम्फिसमीट नामक कंपनी ने घोषणा की कि उसने मुर्गे की कोशिकाओं को संवर्धित करके चिकन बनाने में सफलता पा ली है। कंपनी ने बतख का मांस भी बना लिया है। अब तो बस इसका औद्योगिक स्तर पर उत्पादन करने की प्रक्रिया शेष है। अब इसे मुर्गीपालन तो नहीं कहेंगे। इसी प्रक्रिया को नाम दिया गया है कोशिका-कृषि। कंपनी ने अपने द्वारा निर्मित चिकन को एक सम्मेलन में परोसा और सहभागियों का कहना था कि खाने में यह ठीक चिकन जैसा ही था। इससे पहले 2013 में पहला प्रयोगशाला-निर्मित हैमबर्गर भी प्रकट हुआ था मगर उसके ज़ायके को लेकर लोग बहुत आश्वस्तनहीं थे।

ऐसा जंतु-मुक्त मांस बनाने की प्रक्रिया यह होती है कि उस जंतु की कुछ कोशिकाएं ली जाती है और उन्हें प्रयोगशाला में किसी माध्यम में पनपने दिया जाता है। इसके बाद जब कोशिकाएं वृद्धि करके ऊतक का रूप लेने लगती हैं तो उन्हें एक नकली सांचे पर रखा जाता है। वे उस सांचे का आकार ग्रहण कर लेती है, जो हो सकता है कि मुर्गे की टांग जैसा हो।

इसी प्रकार से कुछ कंपनियों ने दूध और अंडे की सफेदी बनाने में भी सफलता हासिल कर ली है। यह सब जैव प्रौद्योगिकी के दम पर संभव हुआ है। अब सवाल यह है कि इन सर्वथा नए ढंग से पैदा किए गए उत्पादों का नियमन कौन व कैसे करेगा। उदाहरण के लिए पर्फेक्टडे नाम की कंपनी दूध व अन्य दुग्ध उत्पाद गाय की मदद के बगैर बनाने जा रही है। सवाल है कि क्या इनका नियमन दूध या दूध से बने पदार्थ मानकर किया जाएगा या अन्य किसी रूप में। (स्रोत फीचर्स)