आम तौर पर संक्रामक रोगों के लिए जो टीके दिए जाते हैं उनमें उस रोग को पैदा करने वाले सूक्ष्मजीव या तो मृत रूप में या अत्यंत दुर्बल रूप में अथवा उनके द्वारा बनाए जाने वाले प्रोटीन मौजूद होते हैं। सारे सूक्ष्मजीवों की कोशिकाओं की सतह पर कुछ पहचान चिंह होते हैं जिन्हें एंटीजन कहते हैं। जब वह सूक्ष्मजीव मृत अथवा दुर्बल अवस्था में शरीर में डाला जाता है तो प्रतिरक्षा तंत्र उन एंटीजन को पहचानकर उनके खिलाफ एंटीबॉडी बनाता है। एक मायने में प्रतिरक्षा तंत्र ने उस सूक्ष्मजीव को पहचान लिया है और दुबारा आने पर शरीर तुरंत उसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगेगा।

मगर अब जिस तरह के टीकों की बात हो रही है वे प्रोटीन के रूप में नहीं होंगे। नए किस्म के टीकों में वे जीन्स होंगे जो सूक्ष्मजीव में उक्त प्रोटीन बनाने के लिए ज़िम्मेदार हैं। कोशिका में प्रवेश करने के बाद ये जीन्स वे प्रोटीन बनाने लगते हैं। शरीर इन प्रोटीन्स को पहचान लेता है और अगली बार इनसे सामना होने पर इन्हें दबोचने को पहले से तैयार रहता है।
यह देखा गया है कि स्वयं प्रोटीन्स के निर्माण की बजाय उनको बनाने वाले जीन्स का उत्पादन ज़्यादा आसान होता है। यह ज़्यादा सस्ता भी होगा। और सबसे बड़ी बात यह है कि एक ही टीके में कई सारे जीन्स जोड़े जा सकेंगे ताकि वे विभिन्न रोगाणुओं के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान कर दें। और तो और, यदि कोई रोगाणु उत्परिवर्तित हो जाता है तो नए रोगाणु के जीन को टीके में जोड़ना बहुत मुश्किल नहीं होगा। यह स्थिति फ्लू के संदर्भ में देखी गई है। हर वर्ष जब फ्लू का वायरस प्रकट होता है, तो एक नए रूप में सामने आता है और पुराना टीका कारगर नहीं रहता। जीनोमिक टीके में फेरबदल करना भी आसान होगा।

फिलहाल जीनोमिक टीकों का विकास सरकारी व निजी दोनों स्तरों पर जारी है। ऐसे कुछ टीकों के क्लीनिकल परीक्षण भी शुरू हुए हैं जिनमें यह जांच की जा रही है कि जिनोमिक टीके प्रतिरक्षा तंत्र को कितना उकसा पाते हैं और क्या ये सुरक्षित हैं। इनमें पक्षी फ्लू, इबोला, हिपेटाइटिस सी, एचआईवी के अलावा स्तन, फेफड़ों, व प्रोस्टेट कैंसर के टीके शामिल हैं।

एक ओर जहां टीकों के क्लीनिकल परीक्षण जारी हैं वहीं इनके उत्पादन व शरीर में पहुंचाने की टेक्नॉलॉजी को परिष्कृत करने सम्बंधी शोध भी जारी है। दिक्कत यह है कि ये टीके मुंह से नहीं दिए जा सकेंगे और इंजेक्शन देने का मतलब होता है कि चिकित्सा सुविधाएं उच्च स्तर की होनी चाहिए। इसलिए नाक के रास्ते टीके देने पर अनुसंधान किया जा रहा है। (स्रोत फीचर्स)