एक नए अध्ययन से पता चला है कि आज जब यूएस के बच्चों से किसी वैज्ञानिक की तस्वीर उकेरने को कहा जाता है तो लगभग तीन में से एक बच्चा महिला वैज्ञानिक की तस्वीर उकेरता है। यह बहुत ही बड़ा बदलाव है क्योंकि 1960 से 1970 के दशक में बमुश्किल 100 में से केवल एक बच्चा महिला वैज्ञानिक का चित्र उकेरता था। समय के साथ, विज्ञान को मात्र पुरुषों से जोड़ने की धारणा बदली है, लेकिन आज भी यूएस के कई बच्चे विज्ञान को पुरुषों के पेशे के रूप में ही देखते हैं।

बच्चों द्वारा उकेरे गए चित्रों में लिंग भेद में बदलावकैसे आया इसका पता लगाने के लिए मनोवैज्ञानिक शोधकर्ताओं ने सन 1966 से सन 2016 के बीच हुए 78 ड्रॉ-ए-साइंटिस्ट (वैज्ञानिक का चित्र बनाओ) अध्ययनों के परिणामों का एक साथ विश्लेषण किया। इनमें बालवाड़ी से लेकर हाई स्कूल तक के तकरीबन 20,000 अमरीकी बच्चों से किसी वैज्ञानिक का चित्र बनाने के लिए कहा गया था।

1960 से 1970 तक के दशक में 99.4 प्रतिशत बच्चों ने पुरुष वैज्ञानिकों के चित्र उकेरेे। लेकिन 1985 से 2016 के बीच प्रकाशित अध्ययनों में यह आंकड़ा घट कर 72 प्रतिशत हो गया। 2010 के दशक में आकर यह आंकड़ा अत्यधिक घटा है। इस अवधि में हर तीन में से एक बच्चे ने वैज्ञानिक के रूप में महिला का चित्र उकेरा।
इलिनॉय के नार्थवेस्टर्न विश्व विद्यालय के मनोविज्ञानी डेविड मिलर का कहना है कि संभवत: नज़रिए में इस बदलाव का कारण वैज्ञानिक पेशे में महिलाओं की बढ़ती संख्या या अक्सर टीवी और बाल पत्रिकाओं में महिला वैज्ञानिक दर्शाना हो सकता है।

शोधकर्ताओं ने यह भी देखने का प्रयास किया कि जब बच्चे वयस्क होते जाते हैं तो उनमें लिंग भेद का नज़रिया बदलता है या नहीं। 1980 के दशक में 6 वर्ष की आयु की 30 प्रतिशत लड़कियों और 83 प्रतिशत लड़कों ने पुरुष वैज्ञानिक का चित्र उकेरा था। लेकिन 16 वर्ष की आयु की 75 प्रतिशत लड़कियों और 98 प्रतिशत लड़कों ने वैज्ञानिक के रूप में पुरुषों के चित्र उकेरे थे। मिलर का कहना है कि खास तौर पर अधिक आयु के बच्चों ने विज्ञान के साथ पुरुषों को जोड़कर देखा। इसका कारण यह हो सकता है कि भौतिकी जैसे कुछ क्षेत्रों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं होता है।

वेंकुवर स्थित ब्रिाटिश कोलंबिया विश्व विद्यालय के मनोविज्ञानी टोनी स्कमडर का कहना है कि “बच्चे जो देखते हैं वही चित्र बनाते हैं।” इस शोध से तो यही लगता है कि बच्चों को विज्ञान में महिलाओं की भूमिका के बारे में और जानने-समझने की ज़रूरत है। लिंगभेद आधारित इस नज़रिए को बदलने की सख्त ज़रूरत है क्योंकि यह बच्चों के भविष्य के चुनाव में बाधा पहुंचा सकता है। यदि यह नज़रिया बदलता है तो युवा लड़कियां विज्ञान के क्षेत्र में अपने लिए भविष्य की कल्पना कर सकती हैं। (स्रोत फीचर्स)