प्रमोद भार्गव

आजकल हीरों के गहनों का व्यापार करने वाले चंपत हुए व्यापारियों की खूब चर्चा है। इन लोगों ने तो देश को आसानी से चूना लगा दिया, लेकिन ज़रा उन हीरा उत्खनन करने वाले मज़दूरों की भी पड़ताल करें जो पसीना बहाकर हीरे में चमक लाते हैं।

भू-गर्भ में कार्बन का कठोरतम रूप हीरा है। मन को प्रफुल्लित करने वाली अनूठी और बेशकीमती दौलत की खानें हैं विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल खजुराहो के आसपास पन्ना ज़िले के ग्राम मझगांव और छतरपुर के ग्राम बंदर में। इन्हीं खदानों के गर्भ में दबा पड़ा कोयला कई जटिल क्रिया प्रक्रियाओं से गुज़रने के बाद चमचमाते हीरे में परिवर्तित होता है। कभी आंध्र प्रदेश की गोलकुंडा और कुलूर की खानों से भी हीरे निकाले जाते थे, लेकिन अब ये खानें दंतकथाएं भर रह गई हैं। भारत में वर्तमान में केवल पन्ना और छतरपुर की खानें ही भारतीय खनिज विकास निगम के अंतर्गत हीरा उत्पादन के कार्य से जुड़ी हैं। किंतु अब इन खदानों का भी निजीकरण कर 60,000 करोड़ रुपए के हीरे निकालने की योजना बनाई जा रही है। भारत के अलावा दुनिया के 20 अन्य देशों में भी हीरे की खदानें हैं।

पहले हीरे के इतिहास पर नज़र डालते हैं। हीरा यानी एक रत्न है, जो कार्बन की एक किस्म है और अमूल्य व दुर्लभ है। हीरे को संस्कृत में हीरक, चंद्र, मणिवर, वज्रक, हीर, रत्नमुख्य, अभेद्य आदि नामों से जाना जाता है। हिंदी में हीरा, बंगाली में हिरे, मराठी में हिरा, गुजराती में हिरो, कन्नड़, तेलगु व तमिल में वज्र, फारसी में इल्माश, अंग्रेज़ी में डायमण्ड और लैटिन में प्यूकार्बन एडमस कहते हैं।

हीरे के व्यापार व आभूषणों में इसके इस्तेमाल की परंपरा बहुत पुरानी है। एक ज़माना था जब पूरी दुनिया में भारत की गोलकुण्डा (आंध्र प्रदेश) खानों से हीरे निर्यात किए जाते थे। पंद्रहवीं शताब्दी तक हीरों के गहने केवल राजा-महाराजाओं के उपयोग तक सीमित थे। युरोप में फ्रांस आधुनिक फैशन के आभूषण अपनाने में अव्वल था। सन 1734 में यहीं की ऐगन्स सोरल नाम की एक धनाढ्य महिला ने हीरे के गहने पहनकर राजा-महाराजाओं के मिथक को तोड़ने का दुस्साहस कर तहलका मचाया था। कालांतर में धनी व संभ्रात महिलाओं में हीरे के गहने पहनने ही होड़-सी लग गई और हीरा उच्च-स्तरीय जीवन का प्रतीक बन गया। इससे फ्रांस व अन्य युरोपीय देशों में हीरे की मांग बढ़ गई और भारत तीन सौ साल तक इन देशों में हीरों की आपूर्ति करता रहा।

फ्रांस के रत्नों के एक व्यापारी ने 1688 में भारत की यात्रा के दौरान गोलकुंडा खानों में हीरे के उत्खनन का वर्णन इस प्रकार किया है, “दक्षिण भारत के गोलकुंडा से लेकर कुलूर तक हीरे की खानें हैं। कुलूर की खानों से सौ साल से हीरा निकाला जा रहा है। इस धंधे से 50 हज़ार मज़दूर जुड़े हुए हैं। खानों में पुरुष खुदाई करते हैं, और स्त्रियां व बच्चे मिट्टी और पत्थर अलग करते हैं।”

1725 में ब्रााज़ील में हीरे की खान खोज निकाली गई और करीब 138 साल तक ब्रााज़ील हीरे की आपूर्ति करता रहा। 1888 में दक्षिण अफ्रीका में अनायास एक किसान के लड़के को खुदाई करते हुए हीरा मिला। इस हीरे को ‘स्टार ऑफ अफ्रीका’ नाम दिया गया। यह हीरा क्रय-विक्रय होता हुआ अंग्रेज़ों के हाथ लगा। बाद में अंग्रेज़ों ने दक्षिण अफ्रीका में हीरों की खानों की पड़ताल की और 1893 में डी बीयर्स कंपनी ने हीरे निकालना शुरू किया। ये खानें दुनिया का सबसे बड़ा खज़ाना साबित हुईं। रूस के यूराल पर्वत और ऑस्टे्रलिया में भी हीरे की कई खानें खोजी गईं।

वर्तमान में अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और रूस ही हीरे के प्रमुख उत्पादक राष्ट्र हैं। नए शोध से पता चला है कि सबसे पहले हीरा प्राचीन भारत में ईसा से करीब चार सौ साल पहले खोजा गया था। लेकिन हीरे का गहनों में इस्तेमाल सबसे पहले रोम (इटली) में शुरू हुआ था।

समुद्र में समाई हीरक संपदा
आजकल हीरा खानों से ही नहीं बल्कि समुद्रों से भी निकाला जा रहा है। जब से जल के भीतर सांस लेने के उपकरण एक्वालंग का निर्माण हुआ है, तब से समुद्र में सैकड़ों साल पहले डूबे जहाज़ों को सतह पर लाने में कामयाबी मिलने लगी है। इन जहाज़ों में हीरे-जवाहरात के बेशकीमती खज़ाने मिल रहे हैं।
1885 में एक स्पेनी जहाज़ का पता लगा था जो 1622 में डूब गया था। इस जहाज़ के मलबे से तीस करोड़ डॉलर के हीरे-जवाहरात प्राप्त हुए। 1553 में 16 स्पेनी जहाज़ों का एक पूरा बेड़ा तूफान में फंसकर डूब गया था। इन जहाज़ों में से दो जहाज़ों का मलबा प्राप्त हुआ। इस मलबे में निकले हीरे-जवाहरातों की कीमत 18 लाख डॉलर थी! अभी भी समुद्र में अरबों के हीरे-जवाहरात समाए हैं, जिनकी तलाश जारी है। विश्व  प्रसिद्ध टाइटैनिक जहाज़ 1914 में डूबा था। उसका पता भी गोताखोरों ने लगाया और उसकी प्रतिकृति तैयार कर टाइटैनिक फिल्म भी बनाई गई। इस जहाज़ में भी हीरे मिले हैं।

मध्य प्रदेश की हीरा खानों से कीमती पाषण को निकालने के लिए रोज़ाना करीब डेढ़ हज़ार मज़दूर भारतीय खनिज विकास निगम द्वारा ठेकेदारों को पट्टे पर दिए गए भूखंडों में खुदाई करते हैं। प्रत्येक ठेकेदार को मात्र 625 वर्गफीट का पट्टा मिलता है और इसका प्रीमियम शुल्क भी लिया जाता है। खुदाई में हीरा मिलने पर 10 फीसदी हक ठेकेदार का होता है और 20 फीसदी सरकार अथवा निगम का। किंतु अब प्रदेश सरकार खदानें एक मुश्त ठेके पर देने की तैयारी कर रही है।

हीरों की खोज के लिए जिन गड्ढों में खुदाई की जाती है, उनमें भुरभुरी एवं दोमट मिट्टी होती है। इस मिट्टी के बीच-बीच में कार्बन की कठोर चट्टानें होती हैं। इसलिए इनकी खुदाई बेहद कठिन होती है। यदि पारखियों को हीरे की उम्मीद दिखती है तो ज़्यादा से ज़्यादा 20 फीट खोदकर ही हीरा मिल जाता है। गड्ढों से निकाला गया चट्टानों का करीब 500 टन चूरा एक निश्चित स्थान पर एकत्रित किया जाता है और फिर सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम के बीच पत्थरों के इन टुकड़ों को कूटा व तोड़ा जाता है। यहां कटीले तारों की बागड़ लगी रहती है और पहरेदारी के लिए बंदूकधारी मौजूद रहते हैं।

पत्थर तोड़ने के इस दुष्कर कार्य के बीच हीरे के पारखी कारीगरों को निगाहें चौकस रखनी होती हैं और पत्थर से हीरे को अलग करने का काम केवल एक हाथ से करना ज़रूरी होता है। मज़दूरों का दूसरा हाथ पीठ के पीछे बांध दिया जाता है, ताकि हीरा मिलने पर चोरी की संभावना न रहे। इस तरह से पांच सौ टन चट्टानों की हाड़-तोड़ तुड़ाई के बाद बमुश्किल 10-12 ग्राम हीरा चूरा मिलता है।

इन चट्टानों से मायावी पाषण के रूप में जो हीरा निकलता है वह कार्बन का कठोरतम रूप होता है। इस कच्चे हीरे का रूप गोल, लंबे अथवा अण्डाकार मुलायम पत्थर के जैसा होता है। बाद में कारीगरों के अनुभवी हाथ तराशकर इन्हें भांति-भांति के हीरों का आकार देते हैं। ये सभी आकार ज्यामितीय होते हैं। हीरा तराशने की प्रक्रिया से 10 से 12 बार तक गुज़रता है। इससे हीरा निखर जाता है और इसके मूल्य में इज़ाफा होता है। तराशने का काम अब मशीनों से भी होने लगा है, लेकिन हीरे के व्यापारियों व पारखियों को लगता है कि हीरे में जो जान कारीगर डालते हैं, वह मशीन से संभव नहीं है। तराशने के बाद हीरे पर पॉलिश की जाती है। हीरे के कारखानों में हीरे पर पड़े दागों को लेज़र किरणों से भी साफ किया जाने लगा है। अंत में इनका नामकरण कर मूल्य निर्धारित किया जाता है।

भारत की आज़ादी के बाद से पन्ना की हीरा खदानों से हीरा उत्खनन का काम पूरी तरह भारतीय खनिज विकास निगम ने संभाला हुआ है। इसके पहले व्यापारी ही पन्ना रियासत को कर चुकाकर हीरा उत्खनन का कार्य करते थे। इन खदानों से सरकार को प्रति वर्ष हज़ारों करोड़ की आमदनी होती है। किंतु हीरा खानों में काम करने वाले मज़दूरों की हालत नितांत दयनीय है। इन मज़दूरों को प्रति माह पांच-छह हज़ार रुपए मज़दूरी मिलती है और इन्हें सुबह आठ बजे से शाम 3-4 बजे तक खटना पड़ता है। पत्थर के टुकड़े से हीरे को चुनते वक्त हथौड़ा पीटते-पीटते इनके हाथों में छाले पड़ जाते हैं और प्रक्रिया से जो धूल के कण उड़ते हैं, वे इनके मुंह से शरीर में प्रवेश कर इन्हें दमा, खांसी और क्षय रोग के स्थाई मरीज़ बना देते हैं। खानों पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की व्यवस्था नहीं है। ज़िला प्रशासन यहां धनाढ्यों के लिए डायमंड पार्क के निर्माण और हीरा तराशने व पालिश करने के संयंत्र लगाने की कोशिशों में तो लगा है लेकिन मज़दूरों के लिए प्रशासन की कोई योजना प्रस्तावित नहीं है।

खानों से हीरा निकलने के बाद सरकार इसकी नीलामी करती है। नीलामी मुंबई अथवा पन्ना में की जाती है। नीलामी में व्यापारी बोली लगाकर हीरा खरीदते हैं। हीरा व्यापार के प्रमुख केंद्र सूरत, जयपुर, नवसारी और पालनपुर में हैं। मुंबई हीरा व्यापार और तस्करी का अंतर्राष्ट्रीय केंद्र है। पूरी दुनिया में अकेला भारत हीरे का 80 फीसदी उत्पादन करता है। लेकिन हीरे के कारोबार में लंदन की डी बीयर्स कंपनी का 14 फीसदी दखल है। 1966 तक भारत केवल 11 करोड़ रूपए के हीरे निर्यात करता था; यह निर्यात अब पचास हज़ार करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच गया है।
कोहिनूर, कुलानीन, रीजंट, होप, ओरलॉफ, ग्रेट मुगल आदि दुनिया के कुछ प्रसिद्ध हीरे हैं।

हीरों की किस्में
हीरों की किस्में शुद्धता व चमक के आधार पर तय की जाती हैं। प्रमुख रूप से हीरे की तीन किस्में हैं, जेम हीरा, पीला हीरा और औद्योगिक हीरा। लेकिन जैसे-जैसे हीरे के व्यापार का विस्तार हो रहा है और तराशने की तकनीकों में विकास होता जा रहा है, वैसे-वैसे इनकी किस्में भी बढ़ती जा रही हैं। अब बाज़ार में हीरे की 6 किस्में आसानी से सुलभ हैं। असली-नकली हीरे की जांच करने का काम मानव पारखियों के अलावा मशीनें भी करने लगी हैं।

शुद्ध हीरा पीलापन लिए चमकदार व पारदर्शी होता है। सबसे मूल्यवान हीरा लगभग रंगहीन, सुस्पष्ट लाल या नीलापन लिए हुए होता है। यदि हीरे में पीलेपन की चमक अधिक है तो जानिए, उसमें अशुद्धि की मात्रा भी अधिक है। हालांकि हीरे के पारखियों का दावा है कि शत-प्रतिशत शुद्ध हीरा दुर्लभ ही है। प्राचीन भारत में हीरों के चार प्रकार प्रचलित थे। जाति व्यवस्था के अनुसार, सफेद वर्ण का हीरा ब्रााहृण, लाल वर्ण का हीरा क्षत्रिय, पीले वर्ण का वैश्य और काले रंग का हीरा शूद्र माना जाता था। ब्रााहृण हीरा रसायन के काम आता था एवं सर्व सिद्धिदायक माना जाता था, क्षत्रिय हीरा रोग नाशक, वैश्य हीरा धन देने वाला और शूद्र हीरा व्याधियों को नष्ट करने वाला माना जाता था। हीरे का आयुर्वेद में भी बड़ा महत्व रहा है। (स्रोत फीचर्स)