चिकित्सा के क्षेत्र में अंगदान एक महत्वपूर्ण तकनीक बन गया है। किसी व्यक्ति द्वारा दान दिया गया अंग किसी दूसरे व्यक्ति के लिए जीवनदान हो सकता है। मरणोपरांत अंगदान भी एक जीवनदायी कदम साबित हुआ है। मगर इसमें एक दिक्कत होती है। इस संदर्भ में, किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसके अंग को संरक्षित रखना और ग्राही व्यक्ति तक पहुंचने के बाद उसका काम करना सबसे बड़ा अवरोध साबित होता है। आम तौर पर अंग को अतिशीतल वातावरण में संरक्षित किया जाता है। ऐसे वातावरण में बहुत देर तक रखना पड़े तो जब अंग को प्रत्यारोपण के लिए वापिस सामान्य तापमान पर लाया जाता है, तो ऊतकों में क्षति शु डिग्री हो जाती है और अंग बेकार हो जाता है।
अब साइन्स ट्रांसलेशन मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध पत्र में इस समस्या का एक समाधान सुझाया गया है। शोधकर्ताओं ने ऊतक को शीत-संरक्षित करने से पूर्व उसमें लौह ऑक्साइड के नैनो कण प्रविष्ट करा दिए। फिर जब इसे सामान्य तापमान पर लाने के लिए गर्म करने का समय आया तो इसे एक चुंबकीय क्षेत्र में रखा गया। चुंबकीय क्षेत्र में लौह ऑक्साइड के उपरोक्त नैनो कण ऊष्मा के स्रोत बन गए और ऊतक बगैर किसी क्षति के सामान्य तापमान पर आ गया।

अभी शोधकर्ताओं ने मूलत: एक अवधारणा के प्रमाण के रूप में प्रयोग किए हैं। इसे एक चिकित्सा तकनीक बनने में काफी समय लगने की संभावना है। शोधकर्ताओं ने फिलहाल किसी अंग पर नहीं बल्कि मात्र ऊतकों पर काम किया है। सबसे पहले तो उन्होंने मानव कोशिकाओं को शीत-संरक्षित करके वापिस कामकाजी अवस्था में लाने के प्रयास किए। इसके बाद सुअर की धमनियों और हृदय के वाल्व के साथ प्रयोग किए। ये ऊतक 1-2 मिलीमीटर आकार के होते हैं। शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि इतने बड़े ऊतक को शीत-संरक्षित करने के बाद पुन: गर्म करने के दौरान कोई क्षति नहीं हुई। शोधकर्ताओं ने करीब 50 मिलीमीटर तक के ऊतक को बगैर किसी क्षति के पुन: गर्म करने में सफलता प्राप्त की है। उन्होंने यह भी देखा कि ये ऊतक जैविक दृष्टि से कार्यक्षम थे। फिलहाल गर्म करने के लिए जिन तकनीकों का उपयोग होता है वे 1-2 मिलीमीटर के ऊतकों पर ही कारगर रहती हैं।

अलबत्ता, अभी इस विचार को तकनीक में बदलने में समय लगेगा क्योंकि किडनी जैसे अंग 450 से लेकर 500 मिलीमीटर तक के होते हैं। इसे देखते हुए कई लोग मान रहे हैं कि इस तकनीक का उपयोग पहले-पहल हृदय के वाल्व जैसे अंगों पर संभव हो पाएगा। बड़े अंगों को इस तकनीक से संरक्षित करने और पुन: गर्म करने में एक बड़ी समस्या यह है कि लौह ऑक्साइड के नैनो कणों को पूरे अंग में एकरूप ढंग से कैसे पहुंचाया जाए ताकि चुंबकीय क्षेत्र में रखे जाने पर अंग एकरूप ढंग से गर्म हो। (स्रोत फीचर्स)