सुबोध जोशी

सभी खेल रोचक होते हैं और बच्चों-बड़ों दोनों को समान रूप से आकर्षित करते हैं। खेल सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है। इनसे बच्चों का शारीरिक, भावनात्मक और सामाजिक विकास बेहतर ढंग से होता है और उनमें अनेक उपयोगी गुणों का विकास होता है जो भावी जीवन की परिस्थितियों में उनके लिए सहायक होते हैं। टीम भावना, हार-जीत दोनों को समभाव से लेना (खेल भावना), बेहतर प्रयास करना, उपलब्ध साधनों का भरपूर उपयोग करना, मायूस नहीं होना आदि गुण खेलों से विकसित होते हैं जो जीवन भर काम आते हैं। खेल एक लाभदायक व्यवसाय भी बन सकता है।

समावेशित और समानता आधारित समाज की दिशा में अग्रसर विश्व में प्रयास हो रहे हैं कि जो कुछ सामान्य लोगों को प्राप्त है वह सब भिन्न-सक्षम लोगों को भी समान रूप से मिले। खेल का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है और चलनबाधिता, दृष्टिबाधिता, श्रवणबाधिता, बौद्धिक नि:शक्तता और बहु-नि:शक्तता की चुनौती का सामना कर रहे बच्चों और व्यक्तियों के लिए भी संगठित रूप से अनेक प्रयास किए जा रहे हैं ताकि वे भी अवसर पाकर भागीदारी कर सकें और सारे लाभ उन्हें भी मिल सकें।
भिन्न-सक्षम लोगों के लिए पैरालम्पिक, डेफलम्पिक, स्पेशल ओलंपिक आदि अंतर्राष्ट्रीय संगठन हैं जो भिन्न-सक्षमता के अनुरूप खेलों का चयन करके उनके मापदंड, नियमन, प्रशिक्षण, प्रतियोगिताओं के आयोजन आदि की दिशा में कार्य करते हैं। खेलों को भिन्न-सक्षम लोगों की स्थिति एवं ज़रूरतों के हिसाब से अनुकूलित और परिवर्तित किया जाता है। सारी प्रक्रिया सामान्य खेलों की प्रक्रिया की तरह सुनियोजित होती है। भिन्न-सक्षम लोगों के लिए होने वाले अनेक खेलों में से एक रोचक खेल है दृष्टिबाधितों का क्रिकेट!

जी हां, चौंकिए मत! दृष्टिबाधित भी सामान्य खिलाड़ियों की तरह क्रिकेट का लुत्फ उठाते हैं और उन्हें खेलते हुए देखने वाले जानते हैं कि उनका क्रिकेट भी उतना ही रोचक और विधिवत है जितना सामान्य क्रिकेट। इसे ब्लाइंड क्रिकेट के नाम से जाना जाता है। इसकी शुरुआत 1922 में ऑस्ट्रेलिया में मेलबोर्न में दो फैक्ट्री कामगारों की रचनात्मकता से हुई। शीघ्र ही 1922 में वहां विक्टोरियन ब्लाइंड क्रिकेट एसोसिएशन स्थापित हो गया। दुनिया का पहला ब्लाइंड क्रिकेट टेस्ट मैच पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका के बीच खेला गया था जिसमें पाकिस्तान विजयी रहा था।
दृष्टि सम्बंधी समस्या को वर्गीकृत किया जाता है - पूर्ण अंधत्व, आंशिक अंधत्व और अल्प दृष्टि। इनके क्रिकेट को इसी वर्गीकरण के हिसाब से अनुकूलित किया गया है। इसका संचालन वर्ल्ड ब्लाइंड क्रिकेट काउंसिल द्वारा 1996 से किया जा रहा है और इसके अंतर्गत देशों की अपनी-अपनी राष्ट्रीय परिषदें हैं।

दृष्टिबाधितों के लिए प्रथम एक-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय विश्व कप क्रिकेट प्रतियोगिता 1998 में भारत में आयोजित हुई थी जिसमें दक्षिण अफ्रीका ने पाकिस्तान को फायनल में हराया था। इसके बाद पाकिस्तान ने 2002 में दक्षिण अफ्रीका और 2006 में भारत को फायनल में हराया। सन 2014 में भारत ने पाकिस्तान को फायनल में हराकर प्रतियोगिता जीती। सन 2012 में भारत में दृष्टिबाधितों की प्रथम टी-20 विश्व कप प्रतियोगिता आयोजित हुई। हाल ही में भारत ने पाकिस्तान को फायनल मैच हराकर टी-20 विश्व कप जीता है।
वर्ल्ड ब्लाइंड क्रिकेट काउंसिल ने ब्लाइंड क्रिकेट के लिए कुछ नियम बनाए हैं। ब्लाइंड क्रिकेट के नियम सामान्य क्रिकेट नियमों में दृष्टिबाधितों के अनुकूल आवश्यक परिवर्तन करके बनाए गए हैं।
प्रत्येक टीम में 11 खिलाड़ी होते हैं जिनमें 4 पूर्णत: दृष्टिहीन खिलाड़ी होना अनिवार्य है। शेष खिलाड़ी आंशिक रूप से दृष्टिहीन और अल्पदृष्टि वाले होते हैं। खेल सामग्री की बात करें तो गेंद में सबसे ज़्यादा अनुकूलन किया गया है। यह क्रिकेट की सामान्य गेंद से काफी बड़ी होती है और इसमें छर्रे भरे होते हैं ताकि खिलाड़ी इसकी आवाज़ सुन सकें। स्टंप भी अधिक बड़े होते हैं ताकि अल्पदृष्टि वाले खिलाड़ी उन्हें देख कर  और दृष्टिहीन खिलाड़ी उन्हें छूकर बैटिंग और बॉलिंग के लिए दिशा पहचान सकें। स्टंप्स धातु के खोखले पाइप से बनाए जाते हैं। ऐसे तीन स्टंप लगाए जाते हैं और वे फ्लोरोसेंट नारंगी, पीले आदि रंग के होते हैं।

खेल के दौरान अंपायर और बॉलर द्वारा विशेष रूप से श्रव्य संकेत दिए जाते हैं, जैसे गेंद डालते वक्त बॉलर द्वारा ‘प्ले’ (खेलो) चिल्लाया जाना ज़रूरी है। पूर्णत: दृष्टिहीन बल्लेबाज़ के लिए गेंद कम से कम दो टप्पे और अल्पदृष्टि बल्लेबाज़ के लिए कम से कम एक टप्पा खाकर बल्लेबाज़ की ओर जानी चाहिए, लुढ़कती हुई नहीं। दृष्टिहीन बल्लेबाज़ को ‘स्टंप’ आउट नहीं किया जा सकता और दो बार पगबाधा (एलबीडब्ल्यू) पाए जाने पर उसे आउट घोषित किया जा सकता है। दृष्टिहीन फील्डर टप्पे पर गेंद पकड़ता है तो उसे कैच माना जाता है।
गेंद पट्टी सीमेंट कांक्रीट की बनाई जाती है और उसकी लम्बाई सामान्य क्रिकेट की गेंद पट्टी जितनी ही होती है। बाउंड्री अधिकतम 90 मीटर की ना होकर 40 मीटर की होती है जिसे सफेद रेखा और निर्धारित अन्तराल से लगी झंडियों से चिन्हित किया जाता है ।
ब्लाइंड क्रिकेट खेलने और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं आयोजित करने में भारत ने हमेशा तत्परता दर्शाई है। सन 2014 में एक-दिवसीय विश्व कप और हाल ही में टी-20 विश्व कप में भारतीय टीम की जीत गौरव का विषय है। जीत के शिल्पकार खिलाड़ियों को सिर्फ प्रशंसा नहीं बल्कि वही दर्जा, सम्मान, मान्यता और लाभ मिलने चाहिए जो सामान्य क्रिकेट में जीतने पर मिलते हैं। (स्रोत फीचर्स)