यह तो अब जानी-मानी बात है कि मनुष्यों की आंतों में पल रहे अरबों बैक्टीरिया पाचन और प्रतिरक्षा में मददगार होते हैं। दिलचस्प बात यह है कि ऐसे बैक्टीरिया यही भूमिका मधुमक्खियों में भी निभाते हैं।
न्यू हेवन स्थित कनेक्टीकट विश्वविद्यालय के वाल्डन क्वोंग ने मधुमक्खियों (एपिस मेलीफेरा) के साथ प्रयोग करके इस बात का खुलासा किया है कि उनकी आंतों के बैक्टीरिया उन्हें रोग-प्रतिरक्षा मुहैया कराते हैं। एपिस मेलीफेरा व्यापारिक रूप से महत्वपूर्ण प्रजाति है जो रेशम उत्पादन में भूमिका निभाती है। इसकी इल्ली प्यूपा में तबदील होते समय रेशम बुनती है।
क्वोंग ने कुछ मधुमक्खियां अपनी प्रयोगशाला में विकसित कीं। उन्होंने इन मधुमक्खियों को इस तरह पाला कि उनमें आंतों के बैक्टीरिया नदारद थे। बाद में इनमें से कुछ की आंतों में वे बैक्टीरिया प्रविष्ट करा दिए जो उनके छत्तों के साथियों के आमाशय में पाए जाते हैं।

देखा गया कि आंतों में बैक्टीरिया के अभाव से ग्रस्त मधुमक्खियों की तुलना में बैक्टीरिया-युक्त मधुमक्खियों में एपीडेसीन नामक प्रोटीन 28 गुना ज़्यादा बना। एपिडेसीन एक सूक्ष्मजीव-रोधी प्रोटीन होता है जो मधुमक्खियों को शरीर में प्रवेश करने वाले रोगकारी सूक्ष्मजीवों से बचाता है। इस प्रोटीन की खास बात यह है कि यह आंतों के बैक्टीरिया को कोई नुकसान नहीं पहुंचाता।
जब इन दो तरह की मधुमक्खियों को एशरीशिया कोली (ई. कोली) नामक बैक्टीरिया से संक्रमित किया गया तो बैक्टीरिया युक्त मधुमक्खियों की जीवित रहने की दर अपेक्षाकृत अधिक रही। रॉयल सोसायटी ओपन साइन्स में प्रकाशित इस शोध पत्र के लेखकों का कहना है कई अन्य कारकों के साथ-साथ आंतों में पलने वाले बैक्टीरिया इस व्यावसायिक प्रजाति को सुरक्षा प्रदान करते हैं। (स्रोत फीचर्स)