हमारे दिमाग ने जिन स्मृतियों/यादों को संजो लिया होता है वे इतनी आसानी से नहीं मिटती, यहां तक कि नई यादों के बनने पर भी पुरानी यादें नहीं मिटती। हां, कभी-कभी ऐसा लग सकता है कि हम कई पुरानी बातें भूल चुके हैं लेकिन एक ट्रिगर मिलने पर वे वापस ताज़ा हो जाती हैं।
सवाल उठता है कि ऐसा होता कैसे है? नेचर पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से ऐसा लगता है कि वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब पा लिया है। चूहों पर अध्ययन कर उन्होंने बताया है कि मस्तिष्क नई और पुरानी यादों पर नींद के अलग-अलग चरणों में काम करता है, जो दोनों तरह की यादों को गड्ड-मड्ड होने से रोकता है।
वैज्ञानिक यह तो जानते थे कि मस्तिष्क नींद में ताज़ा अनुभवों को दोहराता है: जो तंत्रिकाएं जिस अनुभव से जुड़ी होती हैं, नींद में दोहराव के समय वही तंत्रिकाएं उसी क्रम में सक्रिय होती हैं। इस दोहराव के ज़रिए कोई अनुभव पक्की याद बन जाता है और हमारी यादों के खजाने का हिस्सा भी।
लेकिन इस बात को जानना बाकी था कि नई यादें बनने पर पुरानी यादें मिटती क्यों नहीं? इसे जानने के लिए कॉर्नेल युनिवर्सिटी के सिस्टम्स न्यूरोसाइंटिस्ट वेनबो टैंग और उनके साथियों ने चूहों के एक विचित्र गुण का फायदा उठाया: नींद के कुछ चरणों के दौरान उनकी आंखें थोड़ी खुली रहती हैं। शोधकर्ताओं ने नींद के दौरान उनकी एक आंख पर नज़र रखी। देखा गया कि गहरी नींद के एक चरण में चूहों की आंख की पुतलियां सिकुड़ कर छोटी होती हैं और फिर अपने मूल आकार में आ जाती हैं - ऐसा बार-बार होता है और प्रत्येक चक्र लगभग एक मिनट लंबा होता है। तंत्रिका रिकॉर्डिंग से पता चला कि मस्तिष्क में अधिकांश अनुभवों की पुनरावृत्ति तब हुई जब चूहों की पुतलियां छोटी थीं।
तो क्या पुतलियों के आकार और स्मृति बनने के बीच कोई सम्बंध है? इस विचार को परखने के लिए उन्होंने ऑप्टोजेनेटिक्स तकनीक का सहारा लिया। इसमें प्रकाश की मदद से मस्तिष्क में जेनेटिक रूप से परिवर्तित तंत्रिका कोशिकाओं की विद्युत गतिविधि को शुरू या बंद किया जा सकता है।
सबसे पहले उन्होंने परिवर्तित चूहों को प्लेटफॉर्म पर छिपी मिठाई खोजने के लिए प्रशिक्षित किया। प्रशिक्षण के तुरंत बाद जब चूहे सो गए तो उन्होंने ऑप्टोजेनेटिक्स की मदद से अनुभवों से जुड़ी तंत्रिका कोशिकाओं की सक्रियता को रोका। ऐसा उन्होंने दोनों चरणों में अलग-अलग किया – जब पुतलियां छोटी थीं और बड़ी थीं।
पाया गया कि जब छोटी-पुतली चरण में तंत्रिका कोशिकाओं की सक्रियता बाधित की गई थी, तब जागने पर चूहे मिठाई का स्थान पूरी तरह से भूल चुके थे। इसके विपरीत, यही प्रयोग बड़ी-पुतली चरण के दौरान करने पर, जागने के बाद चूहे सीधे मिठाई की जगह पर गए – इस मामले में उनकी ताज़ा यादें बरकरार थीं।
हालांकि ये नतीजे फिलहाल मात्र चूहों के लिए हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि मनुष्यों के मामले में भी ऐसा ही कुछ होता होगा। पक्के तौर पर कुछ कहने के लिए अधिक अध्ययन करने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)