सर्वोदय आंदोलन की वरिष्ठ नेत्री, चिकित्सक, गांधीवादी कार्यकर्ता और परमाणु ऊर्जा नीति की आलोचक डॉ. संघमित्रा गाडेकर का 28 अप्रैल की देर रात निधन हो गया। वे 78 वर्ष की थीं।
वे वेडछी (ज़िला सूरत, गुजरात) स्थित संपूर्ण क्रांति विद्यालय की प्रमुख रहीं। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक न्याय और पर्यावरण के क्षेत्र में मौन लेकिन प्रभावशाली भूमिका निभाई।
डॉ. संघमित्रा गाडेकर और उनके जीवनसाथी डॉ. सुरेन्द्र गाडेकर भारत में परमाणु ऊर्जा नीति के दो प्रमुख वैज्ञानिक आलोचक माने जाते हैं। इस युगल ने इन परियोजनाओं से जुड़े विकिरण जनित स्वास्थ्य जोखिमों और पर्यावरणीय खतरों पर ध्यान आकर्षित किया।
1980 और 90 के दशक में देश के विभिन्न परमाणु संयंत्रों— विशेषकर तारापुर, काकरापार, कुडनकुलम और राजस्थान एटॉमिक पावर स्टेशन के आस-पास स्थित गांवों में जाकर मेडिको-एंथ्रोपोलॉजिकल सर्वेक्षण किए जो दिखाते थे कि इन क्षेत्रों में जन्मजात विकृतियां, बांझपन, त्वचा रोग और कैंसर की घटनाएं औसत से अधिक थीं।
उन्होंने अपने चिकित्सकीय जीवन की शुरुआत उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य सेवा में की, जहां ग्रामीण महिलाओं की स्वास्थ्य स्थितियों ने उन्हें गहरा प्रभावित किया। बाद में वे बनारस के वसंत महिला महाविद्यालय से जुड़ीं और फिर संजीवनी अस्पताल, सराय मोहाना में लंबे समय तक सेवाएं दीं।
चिकित्सा उनके लिए केवल एक पेशा नहीं, सामाजिक चेतना का माध्यम था। वे गरीबों और वंचितों की सेवा को अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी मानती थीं। बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के शिविरों में भी उन्होंने मेडिकल छात्रों के साथ मिलकर सेवाएं दीं।
गुजरात दंगों के बाद जब अंजार क्षेत्र के मुस्लिम रंगरेज समुदाय सामाजिक बहिष्कार के शिकार हुए, तब डॉ. गाडेकर ने उनके साथ मिलकर जैविक रंगों से युक्त खादी उत्पादन की एक सामाजिक-आर्थिक पहल शुरू की। 
संपूर्ण क्रांति विद्यालय में उन्होंने युवाओं के लिए शिविर, संवाद, प्रशिक्षण और गांधी-विनोबा साहित्य का गहन अध्ययन शुरू करवाया। (स्रोत फीचर्स)