कई लोगों को मकड़ियों से नफरत होती है और कई लोगों को उनसे डर भी लगता है - इसी भावना को व्यक्त करने के लिए बना है शब्द एरेक्नेफोबिया। लेकिन वैज्ञानिकों को मकड़ियों की एक बात आकर्षित करती है - उनकी पतली कमर। कहते तो यहां तक हैं कि जिस रेत-घड़ीनुमा फिगर की कामना कई तारिकाएं करती हैं, वह मकड़ियों को तो सहज ही मिल गया है। और अब प्लॉस बायोलॉजी में प्रकाशित एक शोध पत्र बताता है कि इसके लिए मकड़ियों को डाएटिंग वगैरह नहीं करना पड़ता, बल्कि यह एक प्राचीन जीन का कमाल है।
इस शोध पत्र के लेखकों - विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय की एमिली सेटन और उनके साथियों - ने दक्षिण-पूर्वी कोलोरैडो के घास के मैदानों में तफरीह करते हुए टेक्सास ब्राउन टेरेंटुला (Aphonopelma hentzi) नामक मकड़ी के भ्रूण इकट्ठे किए। इन भ्रूणों के जीनोम के अनुक्रमण से उन्हें 12 ऐसे जीन्स मिले जो कमर के दोनों ओर की कोशिकाओं में विकास के दौरान अभिव्यक्त होते हैं। आम घरेलू मकड़ी (Parasteatoda tepidariorum) के भ्रूणों में इन 12 जीन्स को एक-एक करके निष्क्रिय करने पर पता चला कि इनमें से एक (जिसे नाम दिया गया है waist-less) कमर के उस विशिष्ट पिचके हुए हिस्से के लिए ज़िम्मेदार होता है जो मकड़ी के शरीर को दो भागों में बांटता है। जिन भ्रूणों में यह जीन नहीं होता वे एकदम गोल-मटोल आठ टांग वाली मकड़ी में विकसित हो जाते हैं।
शोधकर्ताओं का मत है कि waist-less जीन लाखों साल पहले अस्तित्व में आया था और कई प्रजातियों के भ्रूणीय विकास में अहम भूमिका निभाता है। लेकिन कीटों व केंकड़ानुमा जंतुओं ने इसे गंवा दिया। मकड़ियों में यह बना रहा और उन्हें उनकी पतली कमर देता रहा। (स्रोत फीचर्स)