एक हालिया अध्ययन का दावा है कि पृथ्वी के अपने चुंबकीय क्षेत्र में घूर्णन से बिजली उत्पन्न की जा सकती है। हालांकि अध्ययन में एक विशेष उपकरण से मात्र 17 माइक्रोवोल्ट की बेहद कम विद्युत धारा उत्पन्न की गई है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि यह प्रभाव वास्तविक है और इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा सकता है तो यह बिना प्रदूषण के बिजली उत्पादन का नया तरीका हो सकता है। खास तौर पर दूरदराज़ के इलाकों और मेडिकल उपकरणों के लिए यह तकनीक बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। यह शोध प्रिंसटन युनिवर्सिटी के क्रिस्टोफर चायबा के नेतृत्व में किया गया और फिज़िकल रिव्यू रिसर्च में प्रकाशित हुआ है।
आम तौर पर चुंबकीय क्षेत्र में एक सुचालक को घुमा कर बिजली उत्पन्न की जाती है, जैसा कि पावर प्लांट्स में होता है। पृथ्वी का भी एक चुंबकीय क्षेत्र होता है, और जब पृथ्वी घूमती है तो इस चुंबकीय क्षेत्र का एक हिस्सा स्थिर बना रहता है। सैद्धांतिक रूप से, यदि कोई चालक पृथ्वी की सतह पर रखा जाए तो वह इस चुंबकीय क्षेत्र से गुज़रकर विद्युत धारा उत्पन्न कर सकता है। हालांकि, पृथ्वी के सामान्य चुंबकीय क्षेत्र में ऐसा नहीं होता, क्योंकि चालक के अंदर मौजूद आवेश खुद को इस तरह व्यवस्थित कर लेते हैं कि बिजली पैदा ही नहीं हो पाती।
लेकिन चायबा और उनकी टीम का दावा है कि उन्होंने इस समस्या का हल खोज लिया है; खास आकार में बना एक खोखला बेलन पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से बिजली बना सकता है।
इस परिकल्पना को जांचने के लिए वैज्ञानिकों ने मैंगनीज़, ज़िंक और आयरन वाले चुंबकीय पदार्थ से एक विशेष उपकरण बनाया। उन्होंने 17 माइक्रोवोल्ट की बहुत हल्की विद्युत धारा दर्ज की, जो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के सापेक्ष उपकरण की स्थिति बदलने पर भी बदल रही थी। लेकिन जब उन्होंने खोखले सिलेंडर की जगह ठोस सिलेंडर का उपयोग किया तो बिजली पैदा नहीं हुई।
विस्कॉन्सिन-यूक्लेयर विश्वविद्यालय के पॉल थॉमस जैसे कुछ वैज्ञानिक इस प्रयोग को विश्वसनीय मानते हैं लेकिन फ्री युनिवर्सिटी ऑफ एम्स्टर्डम के रिंके विजनगार्डन जैसे अन्य वैज्ञानिकों को संदेह है। विजनगार्डन ने 2018 में इसी तरह का प्रयोग करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली थी। उनका मानना है कि चायबा की परिकल्पना सही नहीं हो सकती। उनके मुताबिक चायबा के दल ने काफी सावधानी बरती है लेकिन यह भी संभव है कि दर्ज किया गया वोल्टेज तापमान में बदलाव जैसी अन्य वजहों से आया हो।
फिलहाल, यह अध्ययन वैज्ञानिक समुदाय में बहस का विषय बन गया है। अगर आगे के प्रयोग इन नतीजों की पुष्टि कर पाते हैं तो यह बिजली उत्पादन के नए रास्ते खोल सकता है। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - June 2025
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