अरबों वर्षों में पृथ्वी के वातावरण में काफी परिवर्तन हुए हैं, जिससे जीवन के विकास की दिशा तय हुई। वैज्ञानिकों ने ध्रुवों पर जमा बर्फ की परतों से पिछले 60 लाख वर्षों का वायुमंडलीय डैटा निकाला है, लेकिन यह डैटा पृथ्वी के 4.5 अरब साल के इतिहास का बहुत छोटा हिस्सा है।
प्राचीन समय में वायु में कौन-से घटक कितनी मात्रा में थे, इसका पता वैज्ञानिक केवल चट्टानों और खनिजों में छिपे अप्रत्यक्ष प्रमाणों से लगाते आए हैं। लेकिन अब, एक नई तकनीक से अधिक सटीक जानकारी मिल रही है - प्राचीन चट्टानों, लवणों और लावा में फंसे सूक्ष्म वायु बुलबुलों का विश्लेषण।  
वैज्ञानिक यह जानते हैं कि 4.5 अरब वर्ष पूर्व जब पृथ्वी का निर्माण हुआ, तब उसकी सतह पिघली हुई चट्टानों (मैग्मा) से ढंकी थी। इस मैग्मा से रिसी गैसों, और आगे चलकर ज्वालामुखी विस्फोटों, क्षुद्रग्रहों की बौछार के कारण मुक्त गैसों ने एक प्रारंभिक वातावरण बनाया। समय के साथ, नाइट्रोजन अपनी स्थिरता के कारण मुख्य गैस बन गई, जबकि हाइड्रोजन और हीलियम जैसी हल्की गैसें अंतरिक्ष में विलीन हो गईं। ऑक्सीजन लगभग न के बराबर थी, जब तक कि लगभग 3 अरब साल पूर्व प्रकाश-संश्लेषण करने वाले सूक्ष्मजीवों ने इसे धीरे-धीरे वातावरण में छोड़ना शुरू नहीं किया।
फिर, वैज्ञानिक यह भी जानते थे कि चट्टानों में प्राचीन वायु कैद हो सकती है, लेकिन इन गैसों को निकालना और विश्लेषण करना बेहद कठिन था। अब, वैज्ञानिक एक वैक्यूम-सील प्रेस में प्राचीन चट्टानों को धीरे-धीरे दाब बढ़ाते हुए कुचलते हैं, जिससे उसमें फंसी हुई गैस निकलती है। इस गैस का विश्लेषण मास स्पेक्ट्रोमीटर से किया जाता है। 
सर्वप्रथम भू-रसायनविद बर्नार्ड मार्टी ने 2010 के दशक में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के क्वार्ट्ज़ और बैराइट भंडारों में फंसी गैस का विश्लेषण किया था। और पहली बार 3 अरब साल से भी अधिक पुराने वायुमंडलीय नमूने उपलब्ध कराए। उसके बाद से इस तकनीक के इस्तेमाल से कई अध्ययन हुए हैं।  
ऑक्सीजन की उपस्थिति : पहले वैज्ञानिक मानते थे कि लगभग 80 करोड़ साल पहले तक पृथ्वी के वातावरण में ऑक्सीजन बहुत कम थी, और तभी इसके स्तर में अचानक वृद्धि हुई, जिससे जंतुओं का विकास संभव हुआ। लेकिन विभिन्न अध्ययन अलग-अलग निष्कर्ष देते हैं।
“बोरिंग बिलियन”: वैज्ञानिक 1.8 अरब से 80 करोड़ साल पहले के कालखंड को “बोरिंग बिलियन” (नीरस अरब) कहते हैं, क्योंकि इस दौरान जलवायु, टेक्टोनिक्स और जैव विकास में कोई खास बदलाव नहीं दिखता था। लेकिन 1.4 अरब साल पुराने लवण के क्रिस्टलों से पता चला है कि उस समय ऑक्सीजन स्तर अपेक्षा से अधिक था। इससे यह संकेत मिलता है कि जटिल जीवन के विकास के लिए अनुकूल परिस्थितियां उस समय मौजूद रही होंगी।
नोबल गैसें : नोबल गैसें, जैसे आर्गन, नीऑन और ज़ीनॉन, रासायनिक रूप से अन्य तत्वों के साथ अभिक्रिया नहीं करतीं। इसलिए वे पृथ्वी के वायुमंडलीय परिवर्तनों को समझने में उपयोगी होती हैं।
भारत में 2 अरब साल पुराने उल्कापिंड टकराव स्थल के अध्ययन से पता चला है कि उस समय ज्वालामुखीय गतिविधि कई करोड़ वर्षों तक धीमी हो गई थी, जिससे पृथ्वी के आंतरिक भाग से गैसों का उत्सर्जन भी कम हुआ। इसी प्रकार, ग्रीनलैंड की 3 अरब साल पुरानी चट्टानों में फंसी गैसों के अध्ययन से यह संकेत मिला कि ये गैसें प्राचीन पृथ्वी के मेंटल और समुद्री जल से आई थीं। 
ये खोजें हमें यह समझने में मदद करती हैं कि पृथ्वी का वायुमंडल कैसे बना और विकसित हुआ। इन खोजों के बावजूद, वैज्ञानिकों ने अभी केवल सतह को ही कुरेदा है। भविष्य की संभावनाएं कई हैं। वे और भी प्राचीन चट्टानों के नमूने इकट्ठा करेंगे, गैस निकालने की तकनीकों में सुधार करेंगे और यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि क्या ये वायुमंडलीय सुराग जीवन की उत्पत्ति को समझने में मदद कर सकते हैं। (स्रोत फीचर्स)