पिछले दिनों जीन-संपादन की एक नई तकनीक क्रिस्पर-कास-9 का काफी हल्ला रहा था। कई शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का उपयोग एड्स वायरस के खिलाफ करने के प्रयास किए हैं। शुरुआती सफलता के बाद पता चला है कि एड्स वायरस (एचआईवी) किसी तरह बच निकलने में कामयाब हो जाता है - एक मायने में वह इस आक्रमण का प्रतिरोधी हो जाता है।
दरअसल कोई भी वायरस जब किसी जीव पर हमला करता है तो वह अपनी आनुवंशिक सामग्री (डीएनए) को मेज़बान जीव के डीएनए में जोड़ देता है और फिर मेज़बान की पूरी मशीनरी उस डीएनए की प्रतिलिपि (यानी वायरस) बनाने का काम करती है।
क्रिस्पर तकनीक वास्तव में बैक्टीरिया की प्रतिरोध प्रणाली पर आधारित है। यह देखा गया है कि जब बैक्टीरिया पर किसी वायरस का हमला होता है तो बैक्टीरिया उस वायरस के डीएनए के कुछ टुकड़ों को सहेज कर रख लेता है और उन्हें एक ऐसे एंज़ाइम (कास-9) से जोड़ देता है जो डीएनए को नष्ट करने का काम करता है। अगली बार जैसे ही डीएनए का वह खंड कहीं नज़र आता है तो कास-9 उसे तहस-नहस कर डालता है। अर्थात वायरस को नष्ट कर डालता है।

वैज्ञानिकों की कोशिश थी कि मनुष्य की प्रतिरक्षा कोशिकाओं में क्रिस्पर जोड़ दिया जाए। ऐसी कोशिकाओं में जब भी एड्स वायरस प्रवेश करेगा, क्रिस्पर उसे पहचानकर कास-9 की मदद से उसे नष्ट कर देगा। जब प्रतिरक्षा कोशिकाओं को प्रयोगशाला में इस तरह तैयार किया गया तो वे एड्स वायरस को नष्ट करने में सफल रहीं। मगर जल्दी ही वायरस के डीएनए में उन जगहों पर परिवर्तन देखे गए जिन्हें क्रिस्पर पहचानता था। यानी एक बार फिर प्रतिरक्षा कोशिकाओं के लिए वह वायरस अनजाना हो गया।
वैसे तो इस तरह के परिवर्तन सामान्य जीवन चक्र का हिस्सा होते हैं। मगर जिस तेज़ी से वायरस में ये परिवर्तन हुए, उनके आधार पर शोधकर्ताओं को लगता है कि यह सामान्य जीवन चक्र का परिणाम नहीं है। संभवत: क्रिस्पर और कास-9 मिलकर जिस जगह पर वायरस के डीएनए को तोड़ते हैं, वहां विशेष रूप से परिवर्तन हो रहे हैं।

तो क्या यह तकनीक नाकाम रहेगी? इस क्षेत्र के अग्रणी शोधकर्ता मैकगिल विश्वविद्यालय के वायरस वैज्ञानिक चेन लियांग का मत है कि वायरस में उपरोक्त उत्परिवर्तन समस्या ज़रूर हैं मगर इनसे पार पाया जा सकता है। उनका मत है कि इसके उपाय किए जा सकते हैं। ड्यूक विश्वविद्यालय के ब्रायन क्लेन का भी यही विचार है।
जैसे शोधकर्ताओं का विचार है कि वायरस को प्रतिरोध पैदा करने का मौका न मिले, इसके लिए पहला काम तो यह करना होगा कि उसके डीएनए पर एक साथ कई जगह हमला किया जाए। दूसरा इस नई तकनीक का उपयोग एड्स के सामान्य एआरटी उपचार के साथ तालमेल से करना भी एक अच्छी रणनीति हो सकती है। इस दृष्टि से कुछ क्लीनिकल परीक्षण करने की योजना भी बनाई जा चुकी है। (स्रोत फीचर्स)