यूके स्थित दवा कंपनी ग्लैक्सो-स्मिथ-क्लाइन (जीएसके) ने हाल ही में घोषणा की है कि वह अपनी कैंसर रोधी दवाइयों को ज़्यादा-से-ज़्यादा ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचाने के लिए विभिन्न प्रयास करेगी। इनमें सबसे महत्वपूर्ण पहल यह होगी कि गरीब देश जीएसके की कैंसर-रोधी दवाइयों के जेनेरिक संस्करण बगैर किसी रॉयल्टी का भुगतान किए बना सकेंगे।
दरअसल, जीएसके ने 2009 में कतिपय रियायतों की घोषणा की थी। उन्हीं से आगे बढ़ते हुए उसने कहा है कि अब से वह अपनी दवाइयों के लिए कम आमदनी वाले देशों में पेटेंट का आवेदन नहीं करेगी। इसके अलावा वह इन देशों में उसकी दवाइयों के जेनेरिक संस्करणों का उत्पादन करने की इच्छुक कंपनियों को उदार शर्तों पर लायसेंस भी देगी। जीएसके के इस निर्णय का लाभ करीब 85 देशों में 2 अरब लोगों को मिलने की संभावना है।
जीएसके यह भी जांच रही है कि क्या वह अपनी प्रायोगिक दवाइयों को राष्ट्र संघ द्वारा समर्थित ‘पेटेंट संग्रह’ में शामिल करे। इस पेटेंट संग्रह में शामिल दवाइयां जब भी स्वीकृत होंगी तब वे कुछ देशों में सस्ते दामों पर उपलब्ध होंगी। ऐसी सस्ती कैंसर-रोधी दवाइयां महत्वपूर्ण होती जा रही हैं क्योंकि मनुष्य की औसत आयु बढ़ने के साथ कैंसर का प्रकोप भी बढ़ेगा।
वॉशिंगटन के एक एनजीओ नॉलेज इकॉलॉजी इंटरनेशनल ने कंपनी के इस कदम का स्वागत किया है और आव्हान किया है कि अन्य कंपनियां भी ऐसे उपायों पर विचार करें। रोश, नोवार्टिस, बायर जैसी कंपनियों को चाहिए वे अपनी कैंसर-रोधी दवाइयां अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए कुछ कदम उठाएं। अलबत्ता, अभी अन्य कंपनियों ने जीएसके के इस कदम पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है। (स्रोत फीचर्स)