शोधकर्ताओं को यह बात काफी समय से पता रही है कि जिन महिलाओं के परिवार में जुड़वां बच्चे होते हैं, उनके खुद के भी जुड़वां बच्चे होने की संभावना ज़्यादा रहती है। अब लगता है कि हम समझ पाए हैं कि ऐसा क्यों होता है।
इसके लिए किए गए अध्ययन को देखने से पहले यह समझ लेना ज़रूरी है कि जुड़वां बच्चे दो प्रकार के होते हैं - फ्रेटर्नल जुड़वां और मैटर्नल जुड़वां। फ्रेटर्नल जुड़वां ऐसे जुड़वां बच्चों को कहते हैं जो एक साथ दो अंडों के निषेचन से पैदा होते हैं। इनके बीच उतनी ही समानता होती है जितनी किन्हीं भी दो भाई बहनों के बीच होती है। फर्क सिर्फ इतना होता है कि किसी वजह से ये एक ही समय पर गर्भाशय में पलते हैं। दूसरी ओर, मैटर्नल जुड़वां बच्चे एक ही अंडे के निषेचन के बाद बने भ्रूण के दो हिस्सों में बंट जाने से पैदा होते हैं। यानी ये आनुवंशिक रूप से हूबहू एक-से होते हैं।
1987 में एम्सटर्डम के रिजे विश्वविद्यालय के एक युवा वैज्ञानिक डोरेट बूमस्मा ने जुड़वां बच्चों का एक डैटा बेस तैयार किया था जिसमें फिलहाल कुल 75,000 जुड़वां बच्चों की जानकारी है। और इन सभी के माता-पिता का सवाल यही रहा है कि उन्हें जुड़वां बच्चे क्यों हुए।

इस डैटा बेस से एक निष्कर्ष तो यह निकला था कि फ्रेटर्नल जुड़वां बच्चों के पैदा होने की दर पिछले दशकों में बढ़ी है। मसलन, यूएस में 1980 से 2011 के बीच फ्रेटर्नल जुड़वां बच्चों के जन्म में 76 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका एक कारण यह लगता है कि टेस्ट ट्यूब शिशु की मांग बढ़ी है और यह तकनीक ज़्यादा जुड़वां बच्चों को जन्म देती है। इसके अलावा एक कारण यह भी हो सकता है कि आजकल ज़्यादा उम्र की महिलाएं बच्चे पैदा कर रही हैं और उनमें भी अंडाशय से एक समय पर एक से अधिक अंडे विकसित होने की संभावना ज़्यादा होती है।
अब रिजे विश्वविद्यालय के हामदी मबारक की टीम ने इस बात को जेनेटिक स्तर पर समझने के प्रयास किए हैं। काफी हाथ-पैर मारने के बाद उन्होंने पता लगाया है कि दो ऐसे जीन्स हैं जिनमें एक-एक क्षार का परिवर्तन जुड़वां-प्रवृत्ति को बढ़ावा दे सकता है।
अमेरिकन जर्नल ऑफ ह्यूमैन जेनेटिक्स नामक शोध पत्रिका में उन्होंने बताया है कि इनमें से एक जीन है जो एफएसएच (फॉलिकल उत्प्रेरक हारमोन) का उत्पादन करता है। एफएसएच अंडाशय को अंडा तैयार करने का निर्देश देता है। शरीर में इस हारमोन की मात्रा कम-ज़्यादा होती रहती है मगर यदि इसकी मात्रा ज़्यादा समय तक लगातार अधिक बनी रहे तो अंडाशय एक से अधिक अंडे मुक्त कर देता है। फ्रेटर्नल जुड़वां बच्चे पैदा होने के लिए यह पहली शर्त है।

दूसरा जीन है एसएमएडी-3 जिससे यह निर्धारित होता है कि अंडाशय एफएसएच की बढ़ी हुई मात्रा पर क्या प्रतिक्रिया देगा। अभी एसएमएडी-3 की भूमिका को पूरी तरह से समझा नहीं गया है मगर यह तो स्पष्ट है कि एफएसएच और एसएमएडी-3 दोनों में एक-एक क्षार का परिवर्तन हो जाए तो फ्रेटर्नल जुड़वां पैदा होने की संभावना बढ़ जाएगी। (स्रोत फीचर्स)