आपने कई बार कमेंटेटर को यह बोलते सुना होगा कि अब तो बल्लेबाज़ को गेंद फुटबॉल के बराबर दिख रही है। फुटबॉल के बराबर शायद न दिखती हो मगर एक बल्लेबाज़ का कथन है कि जब वे अच्छे से बल्लेबाज़ी करते हैं तो उन्हें गेंद थोड़ी बड़ी ज़रूर दिखने लगती है। और अब एक अध्ययन से भी इस बात की पुष्टि हुई है।
अमेरिकन एसोसिएशन फॉर दी एडवांसमेंट ऑफ साइन्स की वार्षिक बैठक में कोलेरैडो विश्वविद्यालय की जेसिका विट ने अपने छोटे से अध्ययन का ज़िक्र किया। वे जानना चाहती थीं कि क्या बेहतर प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी अपने पर्यावरण को अलग ढंग से देख पाते हैं। इसके लिए उन्होंने सॉफ्टबॉल प्रतिस्पर्धा का रुख किया।
जब खेल सम्पन्न हो गए तो उन्होंने खिलाड़ियों को अपने बूथ पर आमंत्रित किया। उन्हें एक पोस्टर दिखाया गया। पोस्टर पर कई अलग-अलग साइज़ के गोले बने थे। खिलाड़ियों को बताना था कि उनके ख्याल से गेंद की साइज़ का गोला कौन-सा है।

जेसिका विट के मुताबिक अनुभूति को नापने का यही एक तरीका है क्योंकि अनुभूति तो एक अंदरुनी चीज़ होती है। जब खिलाड़ियों से यह सवाल पूछा गया तो बेहतर बल्लेबाज़ी करने वालों ने बड़ा वाला गोला चुना और कहा कि गेंद उस गोले के बराबर होती है। मतलब है कि उन्हें वाकई गेंद बड़ी दिखती है। अर्थात हम सब गेंद को एक ही नज़र से नहीं देखते।
इसके बाद विट ने कई अन्य खेलों के खिलाड़ियों पर भी ऐसे ही प्रयोग किए। हर बार उत्तरों से पता चलता था कि अच्छे खिलाड़ी अपने पर्यावरण को थोड़ा अलग नज़रिए से देखते हैं। जैसे उन्होंने पाया कि जो गोल्फ खिलाड़ी गेंद को ज़्यादा बेहतर ढंग से सुराख में डालते हैं, उन्हें वह सुराख थोड़ा बड़ा नज़र आता है। यही स्थिति फुटबॉल खिलाड़ियों के बारे में भी देखी गई। उन्हें गोल के खंभों के बीच की दूरी ज़्यादा बड़ी नज़र आती है।
विट का कहना है कि उनका अध्ययन यह भी दर्शाता है कि हम जो कुछ देखते हैं, उस पर हमारी क्रिया करने की क्षमता का असर पड़ता है। अर्थात हमारा प्रदर्शन हमारी दृष्टि को प्रभावित करता है। और मुख्य बात यह है कि हम सब दुनिया को थोड़ा अलग-अलग ढंग देखते हैं और आपका दृष्टिकोण आपके लिए अनूठा होता है। (स्रोत फीचर्स)