हाल ही में करंट बायोलॉजी नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक जापान में टोक्यो के निकट चेरी के पेड़ धीरे-धीरे पहाड़ों पर ऊपर की ओर चढ़ रहे हैं और इस चढ़ाई में भालू उनके मददगार हैं।
पेड़-पौधों की टांगें तो होती नहीं। वे तो अपने पराग कणों को और बीजों को दूर-दूर तक ले जाने के लिए हवा, पानी, और जंतुओं पर निर्भर रहते हैं। इसलिए माना जाता है कि जलवायु में परिवर्तन आता है तो पेड़-पौधों को ज़्यादा जोखिम उठाना पड़ता है क्योंकि जंतुओं के विपरीत वे अपना स्थान छोड़कर कहीं नहीं जा सकते।
जापान के शोधकर्ता इसी समस्या पर विचार कर रहे थे। वे यह जानना चाहते थे कि बीजों को बिखराने वाले इन जंतुओं के क्रियाकलाप और गतिशीलता का असर पेड़-पौधों पर किस तरह होता होगा। इसे समझने के लिए उन्होंने जंगली चेरी (Prunus verecunda) का अध्ययन किया। इस पौधे को चुनने का एक कारण तो यह था कि यह ठंडे इलाकों में उगता है और जलवायु विशेषज्ञों का मत है कि जब इस इलाके में तापमान बढ़गा तो यह खतरे में पड़ जाएगा। दूसरा कारण यह था कि इसके फल स्थानीय भालू (Ursus thibetanus) के प्रिय हैं।

पौधे की गतिशीलता को देखने के लिए इन शोधकर्ताओं ने विभिन्न स्थानों पर इसके बीजों में ऑक्सीजन के समस्थानिकों की तुलना की। ऑक्सीजन के दो स्थिर समस्थानिक होते हैं और वातावरण में इनकी तुलनात्मक मात्राएं स्थान की ऊंचाई पर निर्भर करती है। यदि किसी स्थान पर पाए गए बीजों में ऑक्सीजन के समस्थानिकों का अनुपात ऐसा मिले जो कम ऊंचाई वाले स्थानों से मेल खाता हो, तो कहा जा सकता है कि ये बीज कम ऊंचाई पर उगने वाले किसी पौधे से आए हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया कि पहाड़ चढ़ने वाले भालू जंगली चेरी के फल खाकर अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर मलत्याग कर रहे हैं जिसकी वजह से बीज अधिक ऊंचाई पर पहुंच रहे हैं। यानी नए बीज मूल स्थान से 300 मीटर ऊपर थोड़े ठंडे स्थानों (तापमान में अंतर करीब 2 डिग्री सेल्सियस) पर पहुंचाए जा रहे हैं। यानी वास्तव में पौधा भालुओं की बैसाखी का सहारा लेकर पहाड़ चढ़ रहा है, जो एक अच्छी खबर है। अध्ययन के मुखिया वानिकी एवं वनोपज शोध संस्थान के शोजी नेओ का मत है कि शायद इस तरह के परस्पर सम्बंध के आधार पर यह पौधा जलवायु परिवर्तन की मार को झेलने में सफल हो जाएगा। (स्रोत फीचर्स)